यूं नियति नटी नर्तित हो,
श्रंखला तोड़ जाती है।
सम्बन्धों की मृदु छाया ,
आभास करा जाती है॥
ईश्वरता और अमरता ,
कुछ माया की सुन्दरता।
शिव सत्य स्वयं बन जाए,
जीवन की गुण ग्राहकता॥
जग में पलकों का खुलना,
फिर सपनो की परछाई।
आसक्त-व्यथा का क्रंदन,
कहता जीवन पहुनाई॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
30.8.09
लो क सं घ र्ष !: यूं नियति नटी नर्तित हो....
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