भड़ास फॉर मीडिया ने पत्रकार जरनैल सिंह को मीडिया हीरो चुना है। हीरो चुना गया उसको बधाई,जिसने चुना उसका आभार। कोई किसी की नज़रों में कुछ भी हो सकता है।किसी को क्या एतराज! सो हमें भी नहीं है। हो भी तो जरनैल सिंह या यशवंत जी का क्या! यहाँ सवाल एतराज का नहीं, दूसरा है। वह यह कि मीडिया में लगातार नकारात्मक को बढ़ावा मिल रहा है। कुछ भी बुरा करो, मीडिया उसे हाथों हाथ ले लेता है। लपक लेता है। मुद्दा बना देता है। बुरा करने वाला अख़बारों के पन्नों पर छाया रहता है। न्यूज़ चैनल पर दिखाई देता है। वह कितने दिन मीडिया में रहता है, यह उस बन्दे की समाज में पोजीशन तय करती है। बड़ा तो कई दिन सुर्ख़ियों में रहेगा,वरना दो चार दिन में निपटा दिया जायेगा। कोई इन्सान अच्छा काम करता है। उपलब्धि प्राप्त करता है। तब उसको अपनी तस्वीर अख़बार में छपवाने के लिए अख़बारों के दफ्तरों के चक्कर निकालने पड़ते हैं। चैनल के लिए तो ये कोई खबर ही नहीं होती। हाँ, कुछ बुरा कर दिया,सनसनी फैला दी,तो आपको किसी पत्रकार के आगे गिड़गिड़ाने की जरुरत नहीं है। सब भाई लोग विद कैमरे अपने आप आपको खोजते हुए आपके पास चले आयेंगें। आप कहोगे,प्लीज़ फोटो नहीं। किन्तु फोटो उतरेंगी,अख़बार में छपेंगी। आपका धेला भी खर्च नहीं होगा। इसमें किसी का कोई कसूर नहीं, जमाना ही ऐसा आ गया।
दुनिया भर में सकारात्मक सोच के पाठ पढाये जाते हैं। सेमीनार होते है। पता ही नहीं कितने ही आदमी इस सब्जेक्ट पर लिखकर नाम,दाम कमा चुके। यह सिलसिला समाप्त नहीं हुआ है। इसके बावजूद सब तरफ नकारात्मक सोच का बोलबाला है। कोई भी अख़बार चाहे वह कितने ही पन्नों का हो,उठाकर देखो,पहले से अंतिम पेज तक,आपको नकारात्मक समाचारों का जमघट मिलेगा। पोजिटिव समाचार होगा किसी कोने में। वह भी दो चार लाइन का। इसलिए नए साल में सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि आज से क्या अभी से केवल और केवल नेगेटिव काम ही करेंगे। जिस से हमारा भी नाम सुर्ख़ियों में रहे। हम भी यह बात साबित कर सकें कि बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा। होगा,जरुर होगा। सभी को नया साल मुबारक। हैपी न्यू इयर में सभी को हैपी हैपी न्यूज़ मिलती रहे।
31.12.09
बदनाम होंगे तब ही नाम होगा
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर 0 comments
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नया साल मुबारक
मुबारक हो आपको
ये नवबर्ष
मिले सदा आपको
खुशी और हर्ष
खुदा से है ये आरजू
रखे आपको सलामत
भूल से भी कोई
आए न कयामत
खुशियों में बीते
आपका हर पल
मुबारक हो आपको
ये नवबर्ष
Posted by राजीव कुमार 0 comments
Posted by मेरी आवाज सुनो 7 comments
लो क सं घ र्ष !: चिट्ठाजगत के चिट्ठाकारों को
लोकसंघर्ष परिवार की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं
सुमन
लोकसंघर्ष का
सादर प्रणाम
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सलाह
“अक्ल ये कहती है सयानो से बनाए रखना
दिल ये कहता है, दीवानो से बनाए रखना
लोग टिकने नही देते कभी चोटी पर
जान पहचान ढलानो से बनाए रखना
जाने किस मोड पे मिट जाए निशा मंजिल के
राह के ठौर- ठिकानो से बनाए
हादसे हौसले तोडेंगे सही है फिर भी
चन्द जीने के बहानो से बनाए रखना
शायरी ख्वाब दिखाएगी कई बार
मगर
दोस्ती गम के फसानो से बनाए रखना
आशिया दिल मे रहे आसमान आंखो मे
यू भी मुमकिन है उडानो से बनाए रखना
दिन को जो दिन रात को जो रात नही कहते है
फांसले उनके बयानो से बनाए रखना...। (संकलित)
मित्रो,
कुछ पंक्तिया अपने सोए हुए अहसास को कुरेद जाती है ऐसा मैने महसुस किया जब उपरोक्त पंक्तिया मैने कही पर पढी थी..। इसके रचयिता का नाम तो मुझे ज्ञात नही है लेकिन जो भी है बात बडे कांटे की कही है सो अब ये आपको सौप रहा हू..। अगर कोई बन्धु इसके रचयिता का नाम जानता हो तो मुझे भी बताने का कष्ट करे ताकि किसी महफिल मे इसको पढने से पहले उनको सादर आभार व्यक्त किया जा सके..।
डा.अजीत
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दस्तावेज...गुजरते वक्त का अहसास
“पुराने पत्र
पुराने मित्र
और
पुरानी यादे
कभी पुरानी नही हो पाती है
इनमे हर बार एक खास नयापन होता है
अपनेपन की भीनी-भीनी सुगन्ध के साथ
कभी यू ही बिना किसी विशेष कारण की उदासी
और बिना वजह का हास्य- विनोद
इनके गम्भीर साक्षी होते है
ये पुराने पत्र
जिनमे घुली होती है
अपनेपन की मिठास
अधिकार के साथ शिकवे-शिकायत
और सबसे बडी बात
एक सहज स्वाभाविकता मन को मन से जोडने की
बिना किसी औपचारिक मानसिक भूमिका के
कभी पीडा तो कभी महत्वकाक्षाओ
के ये सांझे दस्तावेज
हमेशा विकट अवसाद के क्षणो मे
एक इंच मुस्कान लाने की स्थाई क्षमता रखते है
हम आज जब
दूनियादारी से पीडित होकर
अशांत/असहज जीने के आदी से हो गये है
तब इन पत्रो की विषय-विस्तु
समय के उतार चढाव को नकार कर
एक विचित्र गर्व से भर देती है अपने मित्र चयन पर
मन होता है नियति को धन्यवाद भेजने का...
और अतीत से जुडी हर यादे
अपने साथ दूर तक ले जाती है
जहा सिर्फ हम और हमारे अतीत की यादो का कारवा
उदासी की गर्द को उडाता हुआ
बेपरवाह निकल पडता है
अपनो के बीच से
अपनो तक
और आज जब बहुत से
पुराने मित्र अपरिहार्य कारणो से
लौकिक रुप से सम्पर्क मे नही है
तब ये पत्र/यादे ही है
कि उनके साथ न होने का अहसास
टीस की बजाए
बोझिल और औपचारिक दूनिया मे
बिना स्वार्थ के उर्जा देता है
और खिन्न चेहरे पर
एक इंच मुस्कान लाने का अवसर
और
शायद उन्हे भी...”
डा.अजीत
अपना स्नेह यहा भी बरसाते चले-
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HAPPY NEW YEAR
नए साल पर दो काम मीडिया ने अच्छा किया - एक तिवारी जी की पोल- पट्टी खोली दूसरी राठौर को उसकी औकात दिखा दी .पर दुःख की बात है कि हमारे देश में न्याय के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ता है .
जाते जाते एक real joke - कोलकाता में पुस्तक -मेले में गाडियो के सही ढग से नहीं लगे होने पर मैंने वह खड़े एक पुलिस अधिकारी से कहा कि इस तरह तो किसी कि भी गाड़ी चोरी हो सकती है . आप लोग कुछ करते क्यों नहीं? उसने कहा - कुछ नहीं कर सकते maam मैंने इन्सुरांस कंपनी के नीचे अपनी गाड़ी पार्क की थी . किसी ने चोरी करली.
Posted by imnindian 0 comments
नित नवीन सृजन करे.....!
नित नवीन सृजन करे ।
खिले फूल,महके गुलशन
सरस किरणों का स्वागत करे.............!
गुंजित भंवरे,गुनगुन गान
रिमझिम फूहार की कामना करें
जीवन हो सरल
दिशायें दिप्तमान नवीन प्रहर का इन्तजार करे.....................!
नव वर्ष नव कल्पना
नित नवीन सृजन करे।
भ्रम दुख किचिंत न हो
सुखों की एक रागिनी
एक नवगीत को साज आवाज़ दे...................!
नव वर्ष नव कल्पना
नित नवीन सृजन करे।
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sunita sharma
freelancer journalist
uttarakhand
Posted by Sunita Sharma Khatri 1 comments
अशोक जी कहानी निशांत चतुर्वेदी की जुबानी...
सलाम ज़िन्दगी पर इस बार अशोक जी के सन्दर्भ में निशांत चतुर्वेदी की जुबानी .......मिस यू अशोक सर
THIS IS NOT A END......IT CAN NEVER BEEN A END ...LIFE IS A JOURNEY AND THE MOMNENT IS LIVED TOGETHER ….LOVE ,JOY ,HAPPINESS,SARROW,PAIN &THE BATTALE FOR TOGETHER ARE THE AMBITION OF HUMAN IT CANNOT BE ACHIEVED ALONE…….
to continue........
Posted by आशीष जैन 0 comments
नाली साफ करा दो, लोग गिरने वाले हैंःःःःःःःःःः
पियक्कड़ों की हर नुक्कड़ में लगेंगी महफिलें
लड़खड़ाते कदमों का नाली ही मुकाम होगा।।
नया साल शुरू होने वाला है। उसका सुरूर छाने लगा है। लोगों ने रात का कोटा एक रात पहले ही रख लिया है। पुलिस कहती है दस बजे के बाद पियोगे तो पेलेंगे। हम कहते हैं रोक के दिखाओ। साले हम तो जरूर पिएंगे। कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
अबे खुशी तो असली हम ही मनाएंगे। तुम, पालक खाने वालों क्या जानो नए साल की खुशी। पुराने साल भी आलू खाई थी और नए साल में भी आलू ही खाओगे। कभी पनीर का टुकड़ा मुंह में गिर गया तो खुशी का लम्हा मान लिया। अबे हमसे सीखो भले ही भीख मांगनी पड़े, लेकिन चिली पनीर से नीचे समझौता नहीं करते हैं। तुम साले क्या जानो मुर्गे और लेग पीस का जायका। मछली, झोर और रायता। अण्डा करी और मक्खन का तड़का। आलू खाने वाले क्या समझेंगे इसका मर्म। ऐसों को तो भगवान ने भी नहीं छोड़ा इसीलिये तो यमराज रूपी महंगाई को इनके पीछे छोड़ दिया। अब बेटा दाल खा के दिखाओ। हम भी देखें। थाली में कितनी सब्जी ले रहे हो जरा बताओ। विटामिन की कमी हो रही है। आयरन पूरा नहीं मिल रहा है। हड्डियां आवाज करने लगी हैं। जरा सी हवा चली नहीं कि नजला हो गया। अब सर्दी तीन दिन से पहले थोड़े ही जाएगी। तब तक तो उसे परिवार में बांट दोगे क्योंकि कसम खाई है कि रूमाल मुंह में नहीं रखोगे।
पुराना साल कई वादों, इरादों में ही बीत गया। अब बेटा नए साल में क्या करना है। पापा कसम सच बता रहे हैं सुरीली का गाना तो नहीं सुनेंगे। कुछ कमाल ही करेंगे। अबे कहने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना भी पड़ेगा। वरना नया साल भी निकल जाएगा और पता भी नहीं चल पाएगा। और बेटा सच तो ये ही है कि अभी पालक खा लो वरना ’नशीला पानी’ लीवर खराब कर देगा और इसी पालक, मूंग से ही जीवन जीना पड़ेगा। तब सालों अफसोस करोगे कि ’पानी’ क्यों पिया, पालक ही पी लेते। चलो, समझो तो भला नहीं तो रामभला। मैं भी कोशिश ही कर सकता हूं। तुम्हारे ही शब्दों में प्रयास किया है। नहीं तो कह दो नरक निगम वालों से नाली साफ करा दो, हम गिरने वाले हैं।
नया साल सभी के लिए मंगल होःःःःःःःःःःःःःः
हार्दिक शुभकामनाएंःःःःःःःःःःःःःःः
-ज्ञानेन्द्र
Posted by gyanendra kumar 0 comments
30.12.09
लो क सं घ र्ष !: नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
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राजनीती और ज्योतिषों की पूछ
आज बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ झारखण्ड में सब कुछ संपन्न हो चुका है ,गुरूजी ने राज्यके नए मुख्यमंत्री के रूप में आज सुबह ही मोराबादी के मैदान पर सुबह के १०:३० बजे शपथ ले लिया है बड़ी ही गौर करने वाली बात है अभी से ही राज्य को चलने के लिए ज्योतिषोंका सहारा लिया जाने लगा है ,गुरूजी को पहले दिन के २:०० बजे शपथ लेना था लेकिन ज्योतिष लोगो के अनुसार समय सुबह वाला ज्यादा शुभ था तो गुरूजी ने आनन् फानन में नया निर्णय ले लिया खैर जो भी है आजकल राजनीती में ज्योतिषों की पुच बढ़ गई है ,हर दल चुनाव के पहले ज्योतिषों से पूछता है की कौन सा प्रत्यासी जित सकता है उसी अनुसार टिकेट दिया जाता है ,बात यहीं ख़त्म नही हो जाती है उसके बाद यह भी पुचा जाता है की प्रचार के लिए किसे भेजा जाए जो शुभ हो और जीत पक्की करे यह तो बात हुई शुरुआत की बाद में चुनाव के दिन भी बूथ पर उन्ही लोगो को बैठाया जाता है जो शुभ हो असली बात तो इसके बाद शुरू होती हाउ जब मतदान हो जाता है ज्योतिषों की पूछ में जबरदस्त उछाल आता है है वो तो मुख्य ही भूमिका में आ जाते है शुरू होता है गहन सलाह का काम ,कोण सा दल सबसे बड़ा होगा क्या होगा ?कोण सा नेता जीतनेवाला है ?क्या किसी को बहुमत आएगा की नहीं ?किस पार्टी के किसके साथ जाने के उम्मीद है ?इन बातो की जानकारी लेकर परिणाम से पहले ही सुरु हो जाती है सत्ता की दौडधूप ,सुरु हो जाता है भागमभाग परिणाम के दिनों के बाद तो और भी महत्व बढ़ जाता है ज्योतिष महाराजो का ?हर दल जो कुछ न कुछ सीट जीत कर आया है वह यह पूछने लगता है की किस पार्टी के साथ जाया जाए जो अच्छा होगा इसके आधार पर सरकार बनती है सिर्फ़ इतना तक ही सीमित नही होता है ,हर किसी के शपथ ग्रहण समारोह भी इनके इशारों पर ही तय होता है पदभार ग्रहण करने के बाद भी अपने नए आवास ,कार्यालय हर जगह पर ज्योतिषों की शलाह ली जाती है किस तरफ़ टेबल लगाया जाए ,कुर्सी की दिशा क्या होनी चाहए सब कुछ इनकी सलाह पर ही होती है अगर बात यहीं ख़त्म हो जाती तो कुछ बात नही था आख़िर इतने मुश्किलों के बाद जो सत्ता मिली है तो इतना करना लाजिमी है अब इतने के बाद इस बात को लेकर ज्योतिष महाराजो की सत्कार की जाती है की सरकार कितने दिनों तक चलेगी ,किस कारण से सरकार गिरेगी ,कौन समर्थन वापस लेगा अगर सरकार गिरती है तो इसे उठाया कैसे जाएगा किसका सहारा लिया जाए जो यह फिर से आ जाए आदि चीजों पर बात की जाती है अगर देखा जाए जो आज के इस राजनीती में किसी का कोई महत्त्व नही है अगर महत्त्व है तो सिर्फ़ ज्योतिष महाराजो की ,सत्ता की चाभी असल में उनके हाथ में ही है क्या मैं कुछ ग़लत कह रहा हूँ ?आपकी क्या सोच है ?
Posted by Unknown 1 comments
29.12.09
ASHOK SIR KO SALAAM
अशोक सर को सलाम
25 दिसंबर को जब मेरे मित्र कमलेश ने मुझे फोन करके बताया की अशोक सर की डेथ हो गई है। मुझे यकीन ही नहीं हुआ। क्यों की 7 साल के साथ में मैने उन्हें कभी बीमार भी नही देखा।....मुझे 11 अगस्त 2003 को वो दिन आज भी याद है जब मै विक्रम सिंह और अमित सोनी अशोक जी से पहली बार ईटीवी हैदराबाद में मिले थे। तब उनकी आवाज सुनकर ही मै काफी प्रभावित हो गया था।
5 साल ईटीवी में अशोक जी के साथ कैसै बीत गए पता ही नहीं चला। अशोक जी की एक बात हमेशा याद आती है। कहते थे पॉजीटीव सोचो। वीओआई में आने के बाद जब हालात बिगड़ने लगे तब भी अशोक जी पॉजीटिव सोचा करते थे ।वे कहते थे कि मेरा मन कहता था कभी हालात सुधरेंगे ।आज वो नहीं है लेकिन उनका चेहरा हमेशा सामने आजाता है।मीडिया में जहा छोटे लोगों को तवज्जों नहीं दी जाती है वहीं अशोक जी जूनियर लोगों को बहुत महत्व देते थेऐसे गंभीर मददगार व्यक्तित्व का जाना बेहद दुखद है ।
मीडिया की भट्टी में जल रहे हैंसब देख रहे हैं,सब खामोश हैंसब ठीक होगा,वक्त आने पर सही होगासोच रहे हैं कोई आएगा और ठीक कर देगा
राघवेन्द्र सिंह तोमरप्रोड्यूसर, लाइव इंडिया९८७३७१७३१३
Posted by raghvender singh tomar 0 comments
अशोकनामा - एक संघर्ष .... जहाँ नए साल का कोई अर्थ नहीं ,,
Posted by आशीष जैन 0 comments
काश 19 पहले ये हिम्मत दिखती...
अब 19 साल बाद... जब मीडिया ने रुचिका की इंसाफ की लड़ाई को एक मुहिम बनाया है... तो सब खड़े हो गए हैं... कुछ की तो आंखें खुल गई हैं... और कुछ ऐसे हैं जो मौके का फ़ायदा उठाने के लिए इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहते हैं... सिस्टम को लेकर अगर पूरा देश पहले खड़ा हुआ होता तो 29 दिसम्बर 1993 को यानि अब से 16 साल पहले रुचिका को आत्महत्या न करनी पड़ती...
लखनपाल नाम के एक वकील ने रुचिका मामले में पहली बार स्कूल को निशाना बनाया है... और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रुचिका को सेक्रेड हार्ट स्कूल से निकाले जाने पर सवाल उठाए हैं... जिस पर चंडीगढ़ गृह सचिव ने जांच के आदेश दिए हैं... हालांकि ये सवाल उसी वक़्त उठाए जाने चाहिए थे... लेकिन अब मीडिया ने लोगों में वो ताक़त भर दी है कि वे अब सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं... साथ ही अब रुचिका के वकील भी केस रिओपेन कराने की कोशिशों में लग गए हैं... और इसी सिलसिले में पंचकुला में राठौड़ के खिलाफ दो शिकायतें दर्ज कराई गई हैं
ये भी मीडिया की मुहिम का ही नतीजा है जिन खाकी वर्दीवालों ने 9 सालों तक राठौड़ के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज नहीं की... वही अब उसके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं... वैसे मीडिया के प्रयासों से ही सही जो लोग रुचिका के लिए इंसाफ की मुहिम में किसी भी तरह से जुड़ रहे हैं... वही रुचिका की बरसी पर उसके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है... और अब जनता से यही अपील है कि वे बस इस आग को बुझने न दें...
Posted by Madhaw 0 comments
Labels: Ruchika
कतरने...
कतरने ...(खाली वक्त की नसीहते)
(एक)
उसने खत को जब- जब
जोडकर पढना चाहा
खुद को खुद से घटाना पडा.. ।
(दो)
अदबी जमात का सलीका भी खुब
उसी बात पे दाद मिले
जिस पर कभी एतराज था..।
(तीन)
बुलन्दी की नुमाईश मे मसरुफ रहा वो शख्स
जिसकी उडान मे हौसला भी अपना न था..।
(चार)
अपनी मरजी के सफर के लिए,ये एतिहात जरुरी है
मुकाम खुद से न छिपाया जाए
उदास रहबर अक्सर हौसला तोड देते है
इस बार एक कदम तन्हा ही उठाया जाए।
(पांच)
शिकारी जिसे समझ के परिन्दे ठहर गये थे
वो कमान का सौदागर निकला..।
(छह)
उसकी वादाखिलाफी पे ऐतराज नही
मलाल बस इस बात का रहा
वि खुद से मुकर गया..।
(सात)
लम्हा- लम्हा बिखरा हू, खुद का साथ निभाने मे
एक उम्र गुजर गयी ऐब को हुनर बनाने मे
वादा करके मुकरना कोई आसान नही
मगर वो हौसला कहा से लाउ
जो जरुरी है तेरा साथ निभाने मे..।
(आठ)
कुछ लोग जिन्दगी मे यू भी गमगीन बन गये
हुनर तो वक़्त पे काम न आ सका
ऐब तौहीन बन गये..।
(नौ)
उसके लहजे मे सियासी सोहबत की रवानी लगे
तन्ज कसके रन्ज करने की आदत पुरानी लगे
मेरी नजर मे जो है बेहद आप
दुनिया को वो शख्स खानदानी लगे..।
(दस)
शहर का होके तुमने पाया क्या खुब मकाम
कदमो मे थकान,कडवी जबान, अधुरी मुस्कान
और बस एक किराये का मकान....।
(ग्यारह)
सच कहने की आदत बुरी नही
ख्याल बस ये रखना
सलाह नसीहत न बन जाए..।
(बारह)
उसका वजूद जज्बात की अदाकारी मे खो गया
अफसोस, तालीम भी तजरबा न दे सकी
पहले किताबी बना
अब हिसाबी हो गया..।
(तेरह)
मुझसे अपना हिस्सा समेट ले
ऐसा न हो फिर बहुत देर हो जाए
मै फकीर हू बस इस लिहाज रख
क्या होगा अगर दुआ बेअसर हो जाए..।
(चौदह)
तेरी अदा सबको तेरा फन नजर आए
इसके लिए जरुरी है तुझे सलीक और तहजीब मे फर्क नजर आए..।
शेष फिर...
आपका अपना
डा.अजीत
© डा.अजीत
Posted by Dr.Ajit 0 comments
निर्वासन के दो साल
मित्रो !
आज लगभग दो साल का वर्चुअल निर्वासन झेलने के बाद एक बार फिर नेट की इस आभासी दुनिया मे लौट आया हू। एक शुरुवात जो लगभग दो साल पहले हुई थी जो अभी तक शैशवकाल मे सिसक रही थी अब उसके यौवन की तैयारी आरम्भ करने का विचार है। ब्लाग जगत मे अपने दो ब्लागो के माध्यमो से मैने आपसे एक आत्मीय सम्वाद आरम्भ किया था उसी कडी को दोबारा जोडने का प्रयास करुंगा। अभी ज्यादा नही लिखना चाहता हू क्योंकि संकल्प प्रकाशित करने से कमजोर पड जाते सो इस बार बिना लम्बी चौडी योजनाओ के सीधा सम्वाद होगा मन का मन से..।
एक आशा है कि आप का सहयोग,मार्गदर्शन और आर्शीवाद मेरे इस बाल प्रयास को मिलता रहेगा…
नेट की दुनिया मे अपना पता रहेगा-
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शेष फिर...
डा.अजीत
Posted by Dr.Ajit 0 comments
बस यूं ही बैठे-बैठे...
रविवार की सुबह वही रोज की तरह देरी से उठा करीब 11 बजे। जब से पत्रकारिता के पेशे में कदम रखा है तब से देर तक जागना और देर सबेरे उठने की गंदी आदत विकसित हो गई। आंख मिचते ही कुर्सी की ओर देखा अखबार रखे हैं या नहीं। घर में सबको पता है तो जो भी पढऩे के लिए अखबार उठाता है वापस वहीं मेरे सिरहाने रखी कुर्सियों पर रख देता है। मैंने मिचमिचाते हुर्ईं आखों से देखा रखा है मेरा अपना अखबार दैनिक भास्कर जहां मैं काम करता हूं। साथ में स्वदेश जहां पहली बार मैंने कलम को आड़ा-तिरछा चलाना शुरू किया था। एक और जिसके हम मुरीद हैं उसकी भाषा को लेकर जनसत्ता। आज रविवार था रविवार का जनसत्ता कुछ खास होता है। जैसे ही मैंने जनसत्ता का रविवारीय अंक देखा मन चार माह पीछे चला गया। रविवारीय की कवर स्टोरी पर नर्मदा के सहयात्री और प्रकृति के चितेरे अमृतलाल वेगड़ की इस बार नर्मदा यात्रा वृतांत छपा था। मां चाय लेकर आती उससे पहले तो मैं उसे पढ़कर खत्म कर चुका था और भूतकाल में गोते लगा रहा था। पहली बार मैंने अमृतलाल वेगड़ को जबलपुर के समदडिय़ा होटल में देखा था। वे वहां जबलपुर रत्न नईदुनिया, जबलपुर की निर्णायक मंडल के सदस्य के रूप में उपस्थित थे और मैं उस कार्यक्रम के आयोजन समिति का छोटा सा हिस्सा था। मैं उस समय नईदुनिया, जबलपुर में इंटर्नशिप कर रहा था। वो दिन तो अद्भुत था मेरे लिए। कई दिन तक रोमांचित करता रहा और मैं अपने भाग्य पर इठलाता रहा कि देखो एक ही दिन में जबलपुर के ही नहीं वरन देश के नामी चेहरों से मुलाकात करने का अवसर मिला। छ: नाम तो आज भी याद हैं एक तो अमृतलाल वेगड़, ज्ञान रंजन, चन्द्रमोहन जी जिन्हें सब बाबू के नाम से पहचानते हैं, चित्रकार हरि भटनागर, समाजसेवी चंद्रप्रभा पटेरिया और जस्टिस वीसी वर्मा। सब अपने-अपने क्षेत्र के धुरंधर हैं। उस दिन सबसे अधिक किसी ने प्रभावित किया तो चंद्रप्रभा पटेरिया और अमृतलाल वेगड़ जिनको कभी स्कूली शिक्षा के दौरान किताबों में पढ़ा था।
जहां मैं खड़ा था उसके ठीक सामने वाली कुर्सी पर श्री वेगड़ बैठे थे। बादामी रंग का कुर्ता और झकझकाती धोती पहन रखी थी उन्होंने। शहर के नागरिकों ने जबलपुर रत्न के लिए कुछ चुनिंदा लोगों के नाम भेजे थे। कमाल था की जूरी का प्रत्येक सदस्य रत्न के लिए नामांकित प्रत्येक व्यक्ति के बारे में खूब जानकारी रखते थे।
अमृतलाल जी जितने सहज थे कोई भी उतना सहज नहीं दिख रहा था। उनके बात करने के अंदाज से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। आज उनके यात्रा वृतांत को पढ़कर भी कुछ वैसा ही अनुभूति हुई। वाणी जितनी प्रभावशाली थी शब्द भी कहीं कमतर नहीं दिखे। शुरू से जब पढऩा आरंभ किया तो अंत पर आकर ही रूका। तब भी मैं यही सोच रहा था कि यह खत्म क्यों हो गया और क्यों नहीं लिखा। इस बार उनकी नर्मदा परिक्रमा में कुछ पुराने तो कुछ नए साथी शामिल हुए। अगर मैं जबलपुर होता तो मैं भी जाता नर्मदा परिक्रमा पर। जो नए साथी शामिल हुए उनमें से एक के नाम से में भली भांति परिचित हूं और एक के साथ समय व्यतीत किया और कुछ सीखा भी है। एक हैं राजीव मित्तल जो अभी लखनऊ में हिंदोस्तान के संपादक हैं। श्री राजीव जी का खूब नाम सुना था नईदुनिया के ऑफिस में अपने साथियों से, तो मिलने की भी इच्छा है देखें कब भाग्य उनसे मिलाता है। दूसरा नाम प्रमोद चौबे। ये नईदुनिया जबलपुर में कॉपीएडीटर हैं। कई दफा कॉपी कैसे लिखी जाती है, कैसे एडिट की जाती है इन्होंने ही सिखाया था। हमारी काफी मदद की। इसलिए कभी नहीं भूल सकता।
इतने मैं तो मां चाय लेकर आ गई। कहने लगी तुम बहुत देर से उठते हो, स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। पेट निकल आएगा। जल्दी उठा कर जरा घूमने-फिरने जाया कर अच्छा रहता है।
मैंने मां से इशारे से कहा चाय मेज पर रख दो। उन्हें पता था अभी ये देर से उठना बंद नहीं करेगा। ऐसी बात नहीं है कि मैं उठ नहीं सकता। अब पिछले ही महीने रोज सुबह छ: बजे उठता था। बस यूं ही बैठे-बैठे फिर से जबलपुर चला गया.... यादों में। तभी अपनी बहन की एक कविता याद आई मन पंछी है पंछी की तरह नील गगन में उड़ जाऊं मैं, कोई न रोके कोई न टोके कोई न मुझको कैद करे।
Posted by लोकेन्द्र सिंह 0 comments
28.12.09
शांति का मौन संदेश दे गए अशोक सर
जाओ बेटा... छा जाओ... 29 नवंबर को अशोक सर की जुबान से मेरे लिए ये आखिरी संबोधन था... मुझे याद है वीओआई के न्यूजरुम में ये शब्द कहते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान का स्थायी भाव कायम था… दोनो हाथ पैंट की पॉकेट में डालकर खड़े-खड़े वो अपने पैरों को हिला रहे थे... मेरा तबादला आउटपुट से रांची ब्यूरो मे कर दिया गया था... इसलिए मैं अपने सभी सहकर्मियों से मुलाकात करने गया था। पता नहीं था कि ये अशोक सर से जिंदगी की आखिरी मुलाकात होगी... अशोक सर ऐसे शख्सियत के मालिक थे जैसा हर पत्रकार बनना चाहता है॥ लेकिन नहीं बन पाता क्योंकि हर किसी के कूवत की बात नहीं कि... वो खबरों की आपाधापी और फुल प्रेशर के बीच बिना चीखे चिल्लाएं... सिर्फ मुस्कुराते हुए अपने काम को अंदाम दे डाले... मेरे लिहाज से अशोक सर मीडिया के महात्मा थे क्योंकि प्रोफेशनल लाइफ में वे काम, क्रोध, मद औऱ लोभ से उपर उठ चुके थे।
उनसे मेरा परिचय साल 2008 के अप्रैल माह में हुआ था.. तब वो वीओआई में आउटपुट के शिफ्ट इंचार्ज थे... पहले दिन ही की मुलाकात में अशोक सर मेरे आदर्श बन गए। उन्हें लोगों की बड़ी अच्छी समझ थी, वो हुनर को परखना और उसे निखारने की कला जानते थे। टीवी की कॉपी कैसे लिखी जाती है.. ये मुझे उन्होंने ही सिखाया। अशोक सर मुझे मेरे बॉस कम औऱ पिता तुल्य दोस्त ज्यादा लगते थे। वीओआई ज्वाइन करने के बाद जब वो अपनी फैमिली को लाने हैदराबाद गए थे... तो आते वक्त वहां से मिठाई लेकर आए थे। सबको एक-एक मिठाई देने के बाद मुझे पूरा पैकेट ही दे दिया औऱ कहा कि बेटा खाते रहे औऱ लिखते रहो... मेरे प्रति उनका व्यवहार वैसा ही था जैसा एक पिता का अपने नादान बेटे के साथ होता है।
एक बार की बात है कि गर्मी के दिन में पसीने से लथपथ मैं पैदल ही अपने साथी के साथ ऑफिस की ओर बढ़ा जा रहा था.... तभी पीछे से किसी ने मुझे आवाज लगाई... मुड़कर देखा तो अशोक सर अपनी कार का शीशा खोलकर मुझे बुला रहे थे। पास गया तो बोले कि बैठ जाओ मैं भी ऑफिस ही जा रहा हूं। मेरी अक्सर काम के मामले में लोगों से लड़ाई हो जाया करती थी। न्यूजरुम में कई बार जब मैं गुस्से में आ जाता था तो वो पास आकर मुझे शांत कराते थे, समझाते थे बेटा कूल रहो। अशोक सर मीडिया की गंदी राजनीति से हमेशा दूर रहते थे। यही वजह है कि उनसे नाकाबिल और जूनियरों को बड़े-बड़े पोस्ट मिल गए लेकिन उन्हें नहीं मिला। एक बार तो उन्हें पंजाब-हरियाणा चैनल का हेड भी बनाया गया था। लेकिन 13 दिनों बाद ही उन्हें उस पोस्ट से हटा दिया गया। वीओआई में अशोक सर का खूब इस्तेमाल हुआ जब जिस डेस्क पर योग्य लोगों की कमी होती थी उन्हे वहां भेज दिया जाता था... लेकिन पद और वेतन का अतिरिक्त लाभ नहीं दिया जाता था।
वीओआई जब दोबारा से खुला तो पहले उन्हें मना कर दिया गया था। वो ऑफिस के बाहर चाय की दुकान पर तनाव में बैठे हुए थे। मैंने कहा कि सर कहीं और बात कीजिए तो बोले कि यार मुझे कोई नहीं जानता, ना ही मेरे पास किसी का नंबर है। क्योंकि वो सिर्फ काम से ही काम रखते थे औऱ काम की बदौलत ही अपनी पहचान चाहते थे। उन्हें वीओआई में दोबारा नहीं बुलाया गया है... ये जानकर चौथी दुनिया के डॉ.मनीष कुमार स्तब्ध रह गए थे लेकिन बाद में मैनेजमेंट को उनकी काबिलियत के चलते उन्हें बुलाना ही पड़ा।
वीओआई में मेरी सौरव कुणाल और राकेश ओझा की तिकड़ी थी। हम तीनों में बढ़िया कॉपी लिखने को लेकर रोज बहस होती थी। और अगर कहीं कोई उलझन आ जाती तो हम सीधा अशोक सर के पास जाते थे क्योंकि वहां हमारी उलझन तो सुलझती ही थी साथ में कुछ नया भी सीखने को मिल जाता था। हम तीनो खूब सिगरेट पीते थे, बिना किसी से छिपाए दबाए धुंआ उड़ाते थे लेकिन जयंत अवस्थी और अशोक सर के सामने कभी भी सिगरेट पीने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि हम उन्हें अपना गार्जियन मान चुके थे। लेकिन आज हमारे गार्जियन हमें छोड़कर चुपके से चले गए। जाने का अंदाज भी वैसा ही रहा जैसा ऑफिस में आने का औऱ काम करने का... बिना शोर शराबे के मुस्कुराते हुए। उनकी मुस्कान वीओआई के तनाव भरे माहौल में लोगों को हिम्मत देने का काम करती थी, जिनके नहीं होने की कमी अब वहां हर किसी को महसूस होगी। जिन लोगों ने भी अशोक सर के साथ एक बार भी काम किया है.. मेरा दावा है कि वो उन्हें कभी नहीं भूल पाएंगे। क्योंकि इंसानों को कैसे काम करना चाहिए इसका हुनर मैंने सिर्फ उनमें देखा है।
आखिरी में दो शब्द मेरी गुरु मां और उस भाई के बारे में जिसके पिता क्रिसमस गिफ्ट दिए बिना ही, हम सबको शांत रहने का मौन संदेश देकर चले गए। मैंने भी ग्यारह की उम्र में पिता को खो दिया था इसलिए मुझे उस दर्द का एहसास है। जब भी जरुरत पड़े याद कीजिएगा...
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Happy New Year
Abhishek Prasad
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पंकज- गोष्ठी : ब्लॉग (pankajgoshthi.org): http://www.kavitakosh.org
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अशोक जी हम हिले, आप तो हिला ही गए !
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लो क सं घ र्ष !: मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है
हमारा देश करप्शन की कू में चलता है,
जुर्म हर रोज़ नया एक निकलता है।
पुलिस गरीब को जेलों में डाल देती है,
मुजरिमे वक्त तो हाकिम के साथ चलता है।।
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हर तरफ दहशत है सन्नाटा है,
जुबान के नाम पे कौम को बांटा है।
अपनी अना के खातिर हसने मुद्दत से,
मासूमों को, कमजोरों को काटा है।।
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तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
हमारे वोट हमारे जरों से मिलता है।
किसान कहके हिकारत से देखने वाले,
तुम्हें अनाज हमारे घरों से मिलता है।।
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तुम्हारे अज़्म में नफरत की बू आती है,
नज़्म व नसक से दूर वहशत की बू आती है।
हाकिमे शहर तेरी तलवार की फलयों से,
किसी मज़लूम के खून की बू आती है।।
- मो0 तारिक नय्यर
Posted by Randhir Singh Suman 0 comments
पत्रकार से बेहतर दिल्ली सरकार के बस ड्राईवर
दिल्ली सरकार के बस ड्राईवरओ की शुरुआती तन्खावह पन्द्रह हज़ार रुपये होती है , फिर उसमे कुछ सेनिओर या बड़े वाहन से जुड़ा ALLOWANCE अगर मिला दिया जाये तो कुल मिला कार उनकी तन्खाव बीस हज़ार हो जाती है .
पर हमारे मीडिया में एक पढ़े - लिखे पत्रकार की शुरुआती तन्खावह क्या होगी ज्यादा से ज्यादा ५- १० -१५ हज़ार. इससे ज्यादा तो बिलकुल नहीं.
तो हुए न दिल्ली सरकार के बस ड्राईवर पत्रकार से बेहतर.
तो आगे से दिल्ली सरकार के बस ड्राईवर बनियो पर पत्रकार न बनियो.
u can read this story at http://imnindian-bakbak,blogspot.com
Posted by imnindian 0 comments
अशोकनामा - एक संघर्ष ....
सपनो का अपना महत्व होता है ...आगे जो लेख लिख रहा हूँ ...वो पूरी तरीके से काल्पनिक है ....मेरा कोई भी मकसद नहीं की मैं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाऊ ,इसे दिल से लगाकर पढियेगा ...अगर आप स्वर्गीय अशोक उपाध्याय से जुड़े हुए थे ...तो आपकी आँखें भी नम होंगी .
Posted by आशीष जैन 0 comments
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27.12.09
Posted by मेरी आवाज सुनो 3 comments
शायद आप सब जानते होंगे कि हमारा देश आज भी पोलियो से लड़ रहा है. बिहार और उत्तर परदेस के कई हिस्से पोलियो से लड़ रहे हैं. इस समय सबसे जयादा पोलियो के केस बिहार के कोशी बेल्ट मैं हैं। हम भी पोलियो मुक्त हो सकते हैं, जरूरत है तो बस इस के खिलाफ हल्ला बोलने की है। आइए समय रहते हम सब मिलकर पोलियो के खिलाफ हल्ला बोले।
Posted by halla bol for polio 2 comments
लो क सं घ र्ष !: गन्दा आरोप नहीं, गन्दा आदमी
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा न करे॥
यह पंक्तियाँ हमने अपने बचपन में किसी कवि के मुख से सुनी थी जिसका प्रभाव आज भी मन पर है आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं है । गंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगा । श्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं। उनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया है । लखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही है । यह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात है । भारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा है । इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगे । गलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय है। इसलिए ऊपर लिखी पंक्तियाँ वास्तव में उनके व्यक्तित्व के यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
Posted by Randhir Singh Suman 1 comments
सपने में भगवान्...
एक दिन मेरे आराध्य देव मेरे सपने में आए और कहने लगे - वत्स! तुम कैसे हो ?
पहले तो मैं चौंका, फिर ज़रा संभला और बोला - आप कौन हैं? इतनी रात को कैसे? कोई विशेष काम है क्या?
उन्होंने कहा - आज मुझे नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा थोडा तफरीह हो जाए. सोचा किस "मूर्ख" को इतनी रात को जगाऊँ? सब के सब "बेवकूफ" गहरी नींद में सो रहे होंगे, बस! मेरी लिस्ट में सबसे अव्वल दर्जे के मूर्ख तुम ही हो, तो चला आया तुम्हारे पास, कुछ बात करनी है तुमसे, कहो तुम्हारे पास टाइम है क्या?
मैंने कहा - पहले तो ये बताइए कि आप मुझे "मूर्ख" (वो भी अव्वल दर्जे का) क्यों कह रहे हैं, मैंने क्या मूर्खता कर दी है प्रभु?
उन्होंने कहा - यार देखो मेरा सिंपल सा फंडा है. दुनिया मे ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझसे रोज़-रोज़ अनगिनत शिकायत करते हैं. कोई कहता है मैं बहुत परेशान हूँ, कोई अपने दुःख गिनाता है, कोई भी मुझे ऐसा नहीं दिखता जो कहे प्रभु आप आगे जाओ, मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं तो बेहद खुश हूँ...
एक तू ही दिखा "मूर्ख" जिसने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा, कभी कोई शिकायत नहीं कि तूने... मैंने जब भी तुझे देखा, खुश ही पाया, इसीलिए मेरी लिस्ट में तू सबसे बड़ा "मूर्ख" बन गया... और यही वज़ह थी कि इतनी रात को मैं तेरे सपने में आ पहुंचा...
उन्होंने कहा - चलो कुछ बातें करते हैं...
मैं अवाक होकर उनकी बातें सुन रहा था और सोच रहा था कि आज दिन में मैंने ऐसा कौन सा बेहतर काम कर दिया है जिससे मैं ऐसा सपना देख रहा हूँ कि स्वयं मेरे आराध्य ही मेरे सपनों में आए हुए हैं...
मैं ये सोच ही रहा था कि अचानक उन्होंने जम्हाई लेनी शुरू कर दी... मैंने पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं... उन्होंने उत्तर दिया अरे "मूर्ख" मुझे नींद आ रही है, चल उठ, अब मुझे सोने दे...
मैंने आश्चर्य से कहा कि आप तो भगवान् हैं, आपको भला नींद कैसे आ सकती है...
वो जोर से हँसे और बोले - "मूर्ख", तू बहुत बड़ा "मूर्ख" है, मेरे यहाँ, तेरे पास आने का प्रयोजन तू अभी तक नहीं समझ नहीं पाया... मैंने तुझसे बातें करने को कहा और तू है कि इस सोच में पड़ा है कि तूने दिन भर में ऐसा कौन सा बेहतर काम किया है कि मैं यहाँ आ पहुंचा... तू बोर कर रहा है यार, इसलिए मुझे नींद आने लगी...
अरे पागल! तुझे मुझसे बात करना चाहिए, तू खुशकिस्मत है कि मैं खुद तेरे सामने बैठकर तुझसे बात कर रहा हूँ, मैं ऐसे हर किसी से बात नहीं करता... तू मुझे अच्छा लगता है इसलिए ही तो मैं तेरे पास आया हूँ, अगर मैं सच में तेरे सामने आता तो तू घोर आश्चर्य के मारे बेहोश हो जाता, इसलिए मैं तेरे सपनों में आया हूँ...
चल शुरू हो जा और बता कि तुझे क्या चाहिए?
मैंने कहा - प्रभु! मुझे सिर्फ ये चाहिए कि सबसे पहले तो मुझे एक उचित कारण बताइए कि आपने मेरे पास आना ही ठीक क्यों समझा?
उन्होंने कहा कि मैं ऐसे हर किसी के पास नहीं जा सकता क्योंकि कोई मेरी क़दर नहीं करता, कोई मुझसे बात करना तक पसंद नहीं करता... सब मुझे केवल दुःख में ही याद करते हैं... और खुशियों में किसी को मेरी खबर ही नहीं होती... सब मुझे भूल जाते हैं... एक तू ही है जो मुझे हर पल याद करता है... यही नहीं तुने मुझे अपने "बटुए" और अपनी "लोकेट" में भी जगह दे रखी है... वैसे ये बटुए और लोकेट वाला काम कई लोग करते हैं, मगर वो महज़ उनका शौक होता है... लेकिन मैं जानता हूँ कि तू ये सब शौक या दिखावे के लिए नहीं बल्कि खुद की श्रृद्धा के चलते करता है... अब मुझे तो बस लोगों की आस्था से मतलब है... इसीलिए मैं तेरे पास आया... और मेरा तेरे पास आना सार्थक भी हुआ। तूने मेरा सम्मान किया और मुझे "प्रभु" कहकर भी बुलाया, मैंने तुझे "मूर्ख" कहा फिर भी तूने कुछ नहीं कहा बल्कि तूने बड़े आदर से पूछा की मैं तुझे "मूर्ख" क्यों कहा रहा हूँ?
अब तू समझ गया न, कि मैंने तुझे ही क्यों चुना?
अब लोगों के मन में मेरे लिए जगह नहीं बची बेटे, वो मुझे भूल चुके हैं, उनका सारा का सारा ध्यान मात्र "लक्ष्मी" की ओर है, वो पूरी तरह से व्यावसायिक हो चुके हैं, तभी तो अब मेरा और मेरे नाम का ता व्यवसाय करने लगे हैं... पर मुझे ख़ुशी है कि तुझ जैसे चंद लोग अभी दुनिया में हैं, तुम जैसे "मूर्खों" के बल पर ही मैं "उचक" रहा हूँ...
तेरा भला हो गौतम...
उन्होंने इतना कहा और चल दिए...
Posted by रामकृष्ण गौतम 0 comments
छोड़ ना गाफिल ...जाने दे.....!!
पिघल रही है अब जो यः धरती तो इसे पिघल ही जाने दे !!
बहुत दिन जी लिया यः आदम तो अब इसे मर ही जाने दे !!
आदम की तो यः आदत ही है कि वो कहीं टिक नहीं सकता
अब जो वो जाना ही चाहता है तो रोको मत उसे जाने ही दे !!
कहीं धरम,कहीं करम,कहीं रंग,कहीं नस्ल,कितना भेदभाव
फिर भी ये कहता है कि ये "सभ्य",तो इसे कहे ही जाने दे !!
ताकत का नशा,धन-दौलत का गुमान,और जाने क्या-क्या
और गाता है प्रेम के गीत,तू छोड़ ना, इसे बेमतलब गाने दे !!
तू क्यूँ कलपा करता है यार,किस बात को रोया करता है क्यूँ
आदम तो सदा से ही ऐसा है और रहेगा"गाफिल" तू जाने दे !!
Posted by राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 2 comments