दिल्ली के कोबाल्ट-60 हादसे ने उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदाकोट में करीब 50 साल... पहले रखे गए परमाणु संयंत्र के खतरे से आगाह करने को विवश किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि इस संयंत्र से रेडिएशन हुआ तो यह किसी परमाणु बम हमले से कई गुना भयावह होगा। गंगाजल के संपर्क में आने वाले देश के करीब 45 करोड़ से अधिक लोगों पर यह कहर ढा सकता है।
इस समय दिल्ली के मायापुरी का कोबाल्ट-60 हादसा सुर्खियों में है। अब विश्वविद्यालयों आदि में इस तरह के संयंत्रों के रखरखाव एवं नियंत्रण के लिए नए नियम बनाए जा रहे हैं। बात उत्तराखंड की करें तो पचास साल पहले नंदाकोट में बर्फ में कहीं गुम हो गए परमाणु संयंत्र के बारे में जुबान खोलने को कोई तैयार नहीं है। गौरतलब है कि 1959 में अमेरिका के सहयोग से नंदाकोट में परमाणु संयंत्र रखा गया था। उस समय तक टोही उपग्रहों की परिकल्पना साकार नहीं हो पाई थी। सिक्यांग क्षेत्र में चीनी परमाणु परीक्षणों पर नजर के लिए इस जासूसी परमाणु संयंत्र को नंदादेवी पर्वत श्रृंखला के नंदाकोट में रखा गया था। इसे स्थानीय तथा नेपाली मजदूरों के जरिए नंदाकोट पर ले जाया गया। उन्हें बताया गया कि बर्फ में गरमी पैदा करने के लिए यह संयंत्र रखा जा रहा है। यह संयंत्र कितना खतरनाक रहा होगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे ले जाने वाले सारे मजदूर इसके रेडिएशन से वहीं गलकर मर गए। हालांकि इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता। वैसे भी उस वक्त मीडिया की सक्रियता खास नहीं और न ही मानवाधिकारों की बात करने वाला कोई था। इस मामले की खबर पहली बार हादसे के 26 साल बाद 1985 में किसी समाचार पत्र में प्रकाशित हुई।
सन 1964 में अमेरिकी सिनेटर रिचर्ड औटियर ने भारतीय दूतावास के जरिए भारत को आगाह किया था कि जनता के हित में इस उपकरण की खोज जरूरी है। यदि इस संयंत्र से परमाणु विकिरण हो गया तो गंगा का पानी पीने वाले और नदी की मछलियां खाने वाले लोग कैंसर जैसी भयानक बीमारी से घिर जाएंगे। रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्थर कंपिलिन ने भी तभी कह दिया था कि यदि इन उपकरणों को खोजा नहीं गया तो लाखों लोगों को परमाणु विकिरण से जूझना पड़ेगा। यह किसी परमाणु बम हमले से कहीं अधिक भयावह होगा। बिल एटकिंसन ने भी अपनी किताब में इस प्रकरण पर प्रकाश डाला है।
भारत सरकार तथा कोई भी अफसर इस मामले में एक लफ्ज भी बोलने को तैयार नहीं है। इसकी वजह मामले के विदेश नीति से जुड़ा होना है। इससे भारत-चीन के संबंध प्रभावित होते हैं। संसद में इस मामले को दो बार उठा चुके पौड़ी गढ़वाल के सांसद सतपाल महाराज कहते हैं कि इस गंभीर मामले पर अभी तक सरकार ने उनके सवाल का उत्तर नहीं दिया है। महाराज कहते हैं कि इसे विदेश नीति का मामला न मानकर देश की करीब 45 करोड़ आबादी की सुरक्षा का मामला मानते हुए इस उपकरण को खोजा जाए। ताकि देश को किसी भयावह संकट में पड़ने से बचाया जा सके। http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6381013/
दोस्तों अभी कुछ समय पहले एक बहुत ही गंभीर समाचार पड़ने को मिला जो की दैनिक जागरण में छपा है. वही न्यूज़ मैं आप सब लोगों के सामने ला रहा हूँ, हो सकता है कि मेरी तरह आप लोगों को भी पहले इसकी जानकारी नहीं होगी. दोस्तों इसका सरोकार हर एक उत्तराखंड वासी से है जो कि भविष्य में एक उत्तराखंड के लिए गंभीर समस्या हो सकती है. हम सभी लोग मिलकर इस समस्या के हल के लिए क्या क्या कर सकते हैं, इस पर विचार विमर्श बहुत जरूरी है. आप सभी लोगों के सुझावों की नितांत आवश्यकता है. अगर हमारे बीच में कोइ भी बहिन टी वी न्यूज़ मीडिया में काम कर रहे हैं तो उन सभी से प्रार्थना है कि कृपया इस मसले को मीडिया के सामने लाने का प्रयास करें ताकि आने वाली प्रलयकारी सम्भावना का पहले ही कुछ हल निकला जाय.
जानकारी मार्फत - सुभाष काण्डपाल
21.10.10
उत्तराखंड पर रेडियेशन का खतरा
Labels: खबरनामा
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