सन १९७६ से २०१० तक भारत को कई नए माध्यम मिले और इन माध्यमों ने गढ़वाली कविता को कई तरह से प्रभावित किया। यदि टेलीविजन/ऑडियो वीडियो कैसेट माध्यम ने रामलीला व नाटको के प्रति जनता में रूचि कम की तो साथ ही आम गढ़वाली को ऑडियो व वीडियो माध्यम भी मिला। जिससे गढ़वाली ललित साहित्य को प्रचुर मात्र में प्रमुखता मिली।
माध्यमों की दृष्टि से टेलीविजन, ऑडियो, वीडियो, फिल्म व इन्टरनेट जैसे नये माध्यम गढ़वाली साहित्य को उपलब्ध हुए। और सभी माध्यमों ने कविता साहित्य को ही अधिक गति प्रदान की।
सामाजिक दृष्टि से भारत में इमरजेंसी, जनता सरकार, अमिताभ बच्चन की व्यक्तिवादी-क्रन्तिकारी छवि, खंडित समाज में व्यक्ति पूजा वृद्धि, समाज द्वारा अनाचार, भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति; गढ़वालियों द्वारा अंतरजातीय विवाहों को सामाजिक स्वीकृति, प्रवासियों द्वारा प्रवास में ही रहने की (लाचारियुक्त?) वृति और गढ़वाल से युवा प्रवासियों की अनिच्छा, कई तरह के मोहभंग, संयुक्त परिवारों का सर्वथा टूटना, प्राचीन सहकारिता व्यवस्था का औचित्य समाप्त होना, ग्रामीण व्यवस्था पर शहरीकरण का छा जाना; गढ़वालियों द्वारा विदेश गमन; सामाजिक व धार्मिक अनुष्ठानो में दिखावा प्रवृति, पहाड़ी भू-भाग में कृषि कार्य में भयंकर ह्रास; गांव के गांव खाली हो जाना, आदि सामाजिक परिवर्तनों ने गढ़वाली कविताओं को कई तरह से प्रभावित किया। हेमवती नंदन बहुगुणा द्वारा इंदिरा गाँधी को चैलेंज करना जैसी घटनाओं का कविता पर अपरोक्ष असर पडा। व्यवस्था पर भयंकर चोट करना इसी घटना की एक उपज है।
जगवाळ फिल्म के बाद अन्य फिल्मों का निर्माण; गढ़वाली साहित्यिक राजधानी दिल्ली से देहरादून स्थानांतरित होना व पौड़ी, कोटद्वार, गोपेश्वर, स्युन्सी बैजरों जैसे स्थानों में साहित्यिक उप राजधानी बनने ने भी कविताओं को प्रभावित किया। गढ़वाली कवियों व आलोचकों ने गढ़वाली को अन्तरराष्ट्रीय भाषाई स्तर देने की कोशिश भी इसी समय दिखी।
कवित्व व कविता की दृष्टि से यह काल सर्वोत्तम काल माना जाएगा और अभास भी देता है। आने वाला समय गढ़वाली कविता का स्वर्णकाल होगा। इस काल में शैल्पिक संरचना, व्याकरणीय संरचना, आतंरिक संरचना- वाक्य, अलंकार, प्रतीक, बिम्ब, मिथ, फैन्तासी, लय, विरोधाभास, व्यंजना, विडम्बना, पारम्परिक लय, शास्त्रीय लय, मुक्त लय, अर्थ लय, में कई नए प्रयोग भी हुए तो परंपरा का भी निर्भाव हुआ।
सभी अलंकारों का खुलकर प्रयोग हुआ है और सभी रसों के दर्शन इस काल की गढ़वाली कविताओं में मिलता है। कलेवर, संरचना के हिसाब से भी कई नए कलेवर इस वक्त गढ़वाली कविताओं में प्रवेश हुए। यथा हाइकु।
कवित्व की अन्य दृष्टि में भी संस्कृत के पारंपरिक सिद्धांत, काव्य सत्य, आदर्शवाद, उद्दात स्वरूप, औचित्य, विभिन्न काव्य प्रयोजन, नव शास्त्रवाद, काल्पनिक, यथार्थपरक, जीवन की आलोचना, सम्प्रेष्ण, स्वछ्न्द्वाद, कलावाद, यथार्थवाद, अतियथार्थवाद, अभिव्यंजनावाद, प्रतीकवाद, अस्तित्ववाद, धर्मपरक, अद्ध्यात्मपरक, निर्व्यक्तिता, व्यक्तिता, वस्तुनिष्ठ - कविता संग्रहों में अबोध बंधु सम्पादित शैलवाणी (१९८०) एवं मदन डुकलान सम्पादित व भीष्म कुकरेती द्वारा समन्वय सम्पादित चिठ्ठी-पतरी (अक्टुबर २०१०) का बृहद कविता विशेषांक व अंग्वाळ (प्रकाशनाधीन, जिसमें गढ़वाली कविता का इतिहास व तीन सौ से अधिक कवियों की कविता संकलित हैं) विशिष्ठ संग्रह हैं। कई खंडकाव्य भी इस काल में छपे हैं। अन्य कविता संग्रहों में जो की विभिन्न कवियों के कवियों की कविता संकलन हैं में ग्वथनी गौ बटे (सं. मदन डुकलान), बीजिगे कविता (सं. मधुसुदन थपलियाल) एवं ग्वै (सं.तोताराम ढौंडियाल) इस काल के कवियों की फेरिहस्त लम्बी है,
इस तरह हम पाते हैं कि आधुनिक गढ़वाली काव्य अपने समय कि सामाजिक परिस्थितियों को समुचित रूप से दर्शाने में सक्षम हो रही है और समय के साथ संरचना व नए सिद्धान्तों को भी अपनाती रही है। उत्तराखंड आन्दोलन, हिलांस पत्रिका आन्दोलन, धाद द्वारा ग्रामीण स्तर पर कवि सम्मलेन आयोजन आन्दोलन, कविता पोस्टर, प्रथम गढ़वाली भाषा दैनिक समाचार पत्र गढ़ऐना का प्रकाशन, चिट्ठी-पतरी, उत्तराखंड खबरसार, गढ़वालै धै या रन्तरैबार जैसे पत्रिकाओं या समाचार पत्रों का दस साल से भी अधिक समय तक प्रकाशित होना, उत्तराखंड राज्य बनाना आदि ने भी गढ़वाली कविता को प्रभावित किया। समीकरण, विद्वतावाद; व्क्रोक्तिवाद, आदि सभी इस युग की कविताओं में मिल जाती हैं। काव्य विषय में भी विभिन्नता है सभी तरह के विषयों की कविता इस काल में मिलती हैं अबोध बंधु बहुगुणा का भुम्याल, कन्हैयालाल डंडरियाल का नागराजा (पाँच भाग) और प्रेमलाल भट्ट का उत्तरायण जैसे महाकाव्य इस काल की विशेष उपलब्धि हैं। विशेष उल्लेखनीय मानी जाएँगी। गढ़वाली कवितावली का द्वितीय संस्करण भी एक ऐतिहासिक घटना है। कुमाउनी, गढ़वाली भाषाओं के विभिन्न कवियों की कविता संकलन एक साथ दो संकलन प्रकाशित हुए हैं। दोनों संग्रहों ’उड़ घेंडुड़ी और डांडा कांठा के स्वर के संपादक गजेन्द्र बटोही हैं। पूरण पंत ’पथिक’, मदन डुकलान, लोकेश नवानी, नरेंद्र सिंह नेगी, हीरा सिंह राणा, नेत्रसिंह असवाल, गिरीश सुंदरियाल, वीरेन्द्र पंवार, जयपाल सिंह रावत 'छ्यपड़ु दा’, हरीश जुयाल, मधुसुदन थपलियाल, निरंजन सुयाल, धनेश कोठारी, वीणापाणी जोशी, बीना बेंजवाल, नीता कुकरेती, शांति प्रसाद जिज्ञासु, चिन्मय सायर, देवेन्द्र जोशी, बीना पटवाल कंडारी, डा. नरेंद्र गौनियाल, महेश ध्यानी, दीन दयाल बन्दुनी, महेश धस्माना, सत्यानन्द बडोनी, डा. नन्द किशोर हटवाल, ध्रुब रावत, गुणानन्द थपलियाल, कैलाश बहुखंडी, मोहन बैरागी, सुरेश पोखरियाल, मनोज घिल्डियाल, कुटज भारती, नागेन्द्र जगूड़ी नीलाम्बर, दिनेश ध्यानी, देवेन्द्र चमोली, सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी, चक्रधर कुकरेती, विजय कुमार भ्रमर, बलवंत सिंह रावत, सुरेन्द्र पाल, भवानी शंकर थपलियाल, खुशहाल सिंह रावत, रजनी कुकरेती, दिनेश कुकरेती, श्री प्रसाद गैरोला, रामकृष्ण गैरोला, राकेश भट्ट, महेशानन्द गौड़, शक्ति ध्यानी, जबर सिंह कैन्तुरा, डा. राजेश्वर उनियाल, संजय सुंदरियाल, प्रीतम अपच्छयाण, डा. मनोरमा ढौंडियाल, देवेन्द्र कैरवान, अनसूया प्रसाद डंगवाल, विपिन पंवार, विवेक पटवाल, जगमोहन सिंह जयाड़ा, विनोद जेठुरी, सुशील पोखरियाल, शशि हसन राजा, हेमू भट्ट हेमू, गणेश खुगसाल, डा. नन्दकिशोर ढौंडियाल, डा. प्रेमलाल गौड़ शास्त्री, मोहनलाल ढौंडियाल, सतेन्द्र चौहान, शकुंतला इस्टवाल, विश्वप्रकाश बौड़ाई, अनसूया प्रसाद उपाध्याय, राजेन्द्र प्रसाद भट्ट, शिव दयाल शलज, शशि भूषण बडोनी, बच्चीराम बौड़ाई, संजय ढौंडियाल, कुलबीर सिंह छिल्ब्ट, चित्र सिंह कंडारी, अनिल कुमार सैलानी, रणबीर दत्त, चन्दन, रामस्वरूप सुन्द्रियाल, सुशील चन्द्र, अशोक कुमार उनियाल यज्ञ, दर्शन सिंह बिष्ट, तोताराम ढौंडियाल, ओमप्रकाश सेमवाल, सतीश बलोदी, सुखदेव दर्द, देवेश जोशी, गिरीश पन्त मृणाल, मायाराम ढौंडियाल, लीलानन्द रतूड़ी, रमेश चन्द्र संतोषी, गजेन्द्र नौटियाल, सिद्धिलाल विद्यार्थी, विमल नेगी, नरेन्द्र कठैत, रमेश चन्द्र घिल्डियाल, हरीश मैखुरी, मुरली सिंह दीवान, विनोद उनियाल, अमरदेव बहुगुणा, गिरीश बेंजवाल, ब्रजमोहन शर्मा, ब्रजमोहन नेगी, सुनील कैंथोला, हरीश बडोला, उद्भव भट्ट, दिनेश जुयाल, दीपक रावत, पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, बनवारी लाल सुंदरियाल व एन शर्मा, मदन सिंह धयेडा, मनोज खर्कवाल, सतीश रावत, मृत्युंजय पोखरियाल, हरिश्चंद्र बडोला मुख्य कवि हैं। Copyright @ Bhishma Kukreti, Mumbai, India, 2010
21.10.10
कई उपलब्धियों और सामाजिक व काव्य आन्दोलनों का युग १९७६- से २०१० तक
Labels: खबरनामा
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