नक्सलवाद का नाम आते ही ज़ेहन में एक ही बात उभरती है अपने हक के लिए ज़ेहाद करना.... बात भी सही है। लेकिन आज जिस तरह नक्स और अक्ल का खेल खेला जा रहा है ऐसा लगता है कहानी कुछ और ही है सिर्फ नक्सलवाद का चोला पहना दिया गया है। इस चोले में आखिर कौन है, कोई न कोई इसका सरदार तो होगा। पहले तो नक्सली गरीब और अनपढ़ होते है। लेकिन अब तो अच्छी तालीम लिए लोग भी इस धंधे में कूद रहे है। आखिर क्यों, क्या इस देश की सभ्यता, संस्कृति और पंरम्परा का लोहा मनाने वाले विदेशी इस पंरम्परा का खुद निर्वाह कर रहे है, और ध्यान देने वाली बात ये भी है कि भारत को जगत गुरु का जो दर्जा दिया गया गया है इसी पंरम्परा के बदौलत। लेकिन आज के जो हालात है उसको ध्यान में रखकर ये कहा जाए कि देश में गृह युद्ध जैसा माहौल है। तो अतिश्योक्ति नहीं होगी आज जो राज्य नक्सलियों से परेशान है वो सिर्फ हमारी कुंठित मानसिकता और वाद (किसी भी वाद को लेले, चाहे वह जातिवाद हो, धर्मवाद हो, क्षेत्रवाद हो जहां भी वाद रुपी रोग लगा है उस देश और राज्य की तो मट्टी ही पलीद हो गयी है।) के कारण ही है। जंगल में रहकर छुप कर किसी बेकसूर की हत्या कर देना ये कौन सा बड़ा हिम्मत वाला काम है। पिछले साल भोपाल में नक्सलियों का हथियार बनाने का कारखाना पकड़ा गया था। अब तक मध्यप्रदेश के कुल ९२४ पुलिस थानों में केवल ४ थानों में ही नक्सली हिंसा की सूचनाएं मिली हैं। जब कि छत्तीसगढ़ में कुल ३०७ पुलिस थानों में वर्ष २००३ में ५७ की तुलना में वर्ष २००६ में ८१ थाने प्रभावित हुए हैं।केंद्रीय गृहमंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में वर्ष २००५ में नक्सली हिंसा की १६०८ घटनाओं की तुलना में वर्ष २००६ में १५०९ घटनाएं हुईं जो ६.१५ प्रतिशत की कमी दर्शाती हैं। लेकिन हताहतों की संख्या कम नहीं हुई है। केंद्रीय गृहमंत्रालय के अनुसार वर्ष २००६ में देश की कुल घटनाओं का ४७.३८ प्रतिषत घटनाएं और कुल हताहतों के ५७.२२ प्रतिशत अकेले छत्तीसगढ़ में हुए। आंध्रप्रदेश सहित अनेक जिलों में नक्सली हिंसा की घटनाओं में कमी आई है लेकिन उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बढ़ोत्तरी हुई है। अभी कुछ दिन पहले ही C R P F के 76 जवानो को मार दिया गया और जाती हुई बसों को जमीन के अन्दर छिपे माइन्स से उड़ा दिया गया । क्या मार काट से कोई हल निकाल सकता है, नहीं तो फिर। दूसरी बात ये है कि नक्सलियों का एक ही बेसूरा राग कि हम गरीब है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि अगर आप गरीब है तो ये गोली, बम और आरडीएक्स जैसे घातक समान कहा से खरीदा जाता है, क्योकि एक बन्दूख की गोली का दाम तकरीबन 85 रु. होता है, और इन खतरनाक समानों का दाम अगर जोड़ा जाय तो कुछ हद तक गरीबी को दूर किया जा सकता है। संस्कृत में एक श्लोक है कि ‘’शढ़े शाढ्यम समाचरे’’ हम इस श्लोक पर ध्यान दे तो मुझे लगता है कि सही लिखा गया है कि दुष्ट लोगो के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए । लेकिन नक्सलवाद के परमपिता जिन्होंने खद्दर का कुर्ता भले ही पहन लिया हो लेकिन कभी विधालय का दर्शन तक नहीं किए है-----नक्लवाद का कीड़ा हमारे नेता, प्रशासन, लचर कानून व्यवस्था और इस कानून के रखवालो के दिमाग में है, पहले उनको साफ करना होगा, तो जितने भी वाद है, अपने आप ही खत्म हो जाएंगे। और कुछ दिन पहले पी चिदंबरम का बयान आया कि हमारे पास जितना पावर है हम उसका उतना ही इस्तेमाल कर सकते है तो इसका मतलब साफ है कि आप तो हार गये आप को तो अपनी कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। सीधी बात है कि आप अब उस कुर्सी के काबिल नहीं है। आखिर कब तक ये चलता रहेगा.. एक कहावत है कि ‘’लातो के भूत बातो से नहीं मानते’’। सभी राज्य के नक्सलियों को जो अब देश के लिए नासूर बन गए है हवाई फायर करा के इन सब का निपटारा कर देना चाहिए, क्योकि हमारे जो सैनिक है वो जंगलो से पूरी तरह से वाकिफ नहीं है और नक्सलियों की आवाजो से भी..., इसीलिए रोज रोज के इस किस्से का पिटारा बन्द कर देना चाहिए। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब भारत के नक्से पर कई भारत दिखाई देगे। हम खोजते हुए नजर आयेगे कि हम किस देश के वासी है... राज्य और केन्द्र सरकार को अपनी व्यक्तिगत वोट की राजनीति को छोड़ कर इस गंभीर मसले से जुड़े जो लोग है उनको भी खत्म कर देना चाहिए। क्योकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसूरी... अन्त में एक बात और कहना चाहूंगा कि जो भी इनकी वकालत करे और किसी भी तरह की राजनीति करे या कोई आयोग आये तो उनको भी सलाखो के पीछे बेदर्दी से डाल देना होगा। क्योकि अब समय नहीं है, कुछ सोचने का अब समय है तो सिर्फ काम को अंजाम तक पहुचाने का....
6.12.10
हल्ला गुल्ला...: खेल सिर्फ वाद का....
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1 comment:
sahi kah rahe ho naksli aaj apni rah se bhatak gai hai. aaj wo mao ke rah par nahi kamai our khoon kharabe ki rah par chal rahe hai
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