शुरुआत तो कीजिये !
हिन्दुस्तान दैनिक समाचारपत्र की साप्ताहिक मैगजीन ''रीमिक्स' के जनवरी ९,२०११ के अंक में प्रसिद्ध साहित्यकार ''नरेंद्र कोहली' जी क़ा आलेख ''हमारा लोहा -दुनिया क्यों न माने '-जो स्वामी विवेकानंद जी पर केन्द्रित था, पढ़ा. बहुत शानदार आलेख लगा .इसमें जिन दो बातों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया ,वे हैं --
१-''कोई भी व्यक्ति मानसिक और बौद्धिक महानता तब तक प्राप्त नहीं कर सकता ,जब तक वह शारीरिक रूप से शुद्ध या पवित्र न हो .नैतिकता से ही शक्ति प्राप्त होती है .............राष्ट्रीय जीवन में अनैतिकता के प्रवेश करते ही उसकी नीव सड़ने लगती है .
२- 'किसी भी देश क़ा जीवन रुपी रक्त उसकी शिक्षण संस्थाओं -विद्यालयों में होता है ,जंहा लड़के -लड़की शिक्षा प्राप्त कर रहे होते हैं .अनिवार्यत: उन विद्याथियों को पवित्र होना चाहिए और यह पवित्रता उन्हें सिखाई जानी चाहिए .इसलिए हम जीवन के उस खंड को ब्रहमचर्य आश्रम कहते हैं .''
दो मुद्दे समेटे हैं उपरोक्त पंक्तिया --''राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता ' व् 'शिक्षण संस्थाओं में पवित्रता ''. आज के समय में दोनों ही नदारद हैं .राष्ट्रीय स्तर पर डी. राजा जैसे व्यक्ति केन्द्रीय मंत्री के पद पर तब तक विराजते हैं जब तक उनके द्वारा किये गए घोटाले के प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर दिए जाते अर्थात उन जैसे नेता डंके की चोट पर एलान करते है क़ि हम तो घोटाला करेंगे और तुम पता लगाओ क़ि घोटाला कैसे हुआ? सारी जनता जानती थी क़ि घोटाला हुआ है पर डी. राजा अड़े रहे -भाई साबित तो करो !ये है आज के राष्ट्रीय जीवन की नैतिकता .
दूसरा मुद्दा है -''शिक्षण संस्थाओं में पवित्रता 'क़ा '',अब इसके बारे में क्या लिखूं ? विद्यार्थी कैसे पवित्र हो जब शिक्षक ही बहक गए हो.हमारे यंहा एक इंटर कॉलेज के शिक्षक ने अपनी ही एक छात्रा को प्रेम पत्र दे डाला और पूरा स्कूल प्रशासन खामोश .बात बाहर न जाने पाए .एक अन्य इंटर कॉलिज के एक शिक्षक महोदय पत्नी के होते हुए एक अन्य लड़की को घर ले आये .हमारे जिले के एक माने हुए महाविद्यालय की एक शिक्षिका ने तो अपने ही कॉलिज के प्राचार्य व् अन्य साथी शिक्षकों पर यौन-शोषण क़ा आरोप लगाया है .अब इन विद्यालयों -महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं को पवित्रता क़ा पाठ कौन पढ़ायेगा ?
मेरा मानना है क़ि अब किसी और की राह मत देखिये अपने ही घर से शुरुआत कीजिये .अपने बच्चों को संस्कारों से खुद लैस कीजिये .तभी हम उनके उज्जवल भविष्य की कल्पना कर सकते हैं .
10.1.11
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2 comments:
sundar bahut sundar
sanskar bachchon me to tabhi honge jab unke mata pita me honge.trasdi to yahi hai ki samaj se sanskar door hote ja rahe hain aise me aapki ye post sochne ko vivash karti hai..
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