कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है | कैसा शैशव और तरुणाई? केवल सिसकी और रुलाई| नियति नटी का नृत्य अनोखा जब देखो आखें भर आयीं| मस्त कोकिला भी रोती है जब पंचम स्वर में गाती है | कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है | मिटी नहीं हृदयों से दूरी, कवितायें रह गयी अधूरी| यात्रा कब यह होगी पूरी? कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है | पूरा दीपक, पूरी बाती, तेल नहीं लेकिन किंचित भी | अन्धकार का शाश्वत साथी | तेरा तो प्रभु सोने का है, मेरी तो माटी की मूरत| मेरी बचकानी सी सूरत | कहते हैं संघर्ष हमेशा सत्य सदा विजयी होता है |
जाने कितना और है जाना?
संशयग्रस्त बना कर जीवन मृगतृष्णा छलती जाती है |
बेकारी मजबूर बनाती,
तोड़ रहा दम इक दाने को पौरुष की चौड़ी छाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |
वंदनीय है तेरा आनन,
चिंदी में लिपटे लोगों की छाया भी मुंह बिचकाती है|
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |
जिसमे साहस है वह जीता |
केवल कायर ही रोता है |
यम नियमों के बंधन वाली यह छलना छलती जाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |
6.1.11
कविताएँ रह गयी अधूरी
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4 comments:
bahut hi sundar bhava aur prawahapoorna chhand!
आदरणीय डाँ॰ साहब
कविता पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिये आपका कोटिशः धन्यवाद
एक बेहतरीन और बहुत ही प्रभावशाली रचना।
वन्दना जी
उत्साहजनक टिप्पणी का शुक्रिया। आपका कोटिशः आभार
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