जाग बॉसडी.के.आमीर-झाग?
सौजन्य-गूगल ।
"ये फिल्म बच्चों के लिए नहीं है, हमने वयस्क के लिए ही सेंसर सर्टिफ़िकेट मांगा था..!!"
-सरदार सरोवर फॅम व्यर्थ-आंदोलनकारी,
संत शिरोमणि निर्माता-उस्ताद श्रीआमीरखानसाहब उवाच्..!!
======
प्यारे दोस्तों,
सब टी.वी.पर दिनांक चार जुलाई से, निर्दोष मनोरंजन का एक नया कार्यक्रम,`Happy Housewives Club`, शुरु हुआ है,ये बहुत अच्छी बात है ।
पर,सन-१९९५ में, एक नये रिकॉर्डिंग स्टूडियो के निर्माण हेतु, जूहु- मुंबई के इलाके में, एक भवन-लॉकेशन देखने के लिए, कुछ मित्रों के साथ, मैं भी चला गया । उस भवन के मकान मालिक से, स्वाभाविक बातचीत के दौरान, उनके द्वारा पूछे गए, एक सवाल ने, हमें बड़ा हैरान कर दिया..!! उन्होंने हमें पूछा," आप यहाँ रिकॉर्डिंग स्टूडियो के बहाने, हाउस-वाइफ़ किटी-पार्टी क्लब, जैसी कोई ऍक्टिविटी चलाने का इरादा तो नहीं रखते हैं ना?"
ऐसे बेतुके सवाल से, हमें बहुत अचंभा होने के कारण, हमने उनसे जब,ज्यादा जानकारी चाही तब उन्होंने हमें बताया कि,"पिछले कई माह से यह भवन, एक हाउस-वाइफ किटी-पार्टी क्लब वालों को,किराये पर दिया हुआ था । उस क्लब के सदस्यों ने यहाँ, किटी पार्टी के बहाने,`Male Prostitute`को हायर करके, `Striptris Dance`-जुआ-शराब और अश्लीलता का माहौल खड़ा कर दिया था,जिसके चलते यह स्थान बहुत बदनाम हो रहा था । हालाँकि, मकान-मालिक ने उन सभी फूहड़ नमूनों को, दस दिन पहले ही यहाँ से खदेड़ दिया था..!!
वैसे, हम तो, इस स्थान की, इतनी बढ़िया तारीफ़ सुनते ही, वहाँ से उठ खड़े हुए पर, मेरे मन में भी एक साथ कई सवाल उठ खड़े हो गए..!!
* क्या समाज में,नर हो या नारी, उनके सार्वजनिक वाणी-बर्ताव की कोई सीमा; सरहद होनी चाहिए?
* अगर हाँ तो, ऐसी सीमा कौन तय करें? कानून? कानून तो ऐसे कई कानून तो मौजूद है ना? इस का अमल कहाँ होता है?
* तो फिर,समाज में नैतिकता के प्रहरी होने का दम भरने वाला कोई सामाजिक-राजनीतिक संस्था या दल, श्लील-अश्लील की सीमा तय करेगा? हालाँकि, उनमें भी तो कई मत भेद-मन भेद है..!!
मानो मेरे इन सारे सवाल के जवाब मुझे आज ही मिलना तय हो..!! मुंबई से वापस आते समय,मेरे सूरत के एक मित्र ने बहुत आग्रह करके, उनकी मेहमाननवाज़ी के लिए उनके यहाँ एक दिन ठहर ने के लिए आख़िर, मुझे राज़ी कर ही लिया ।
हमारे सूरती-लाला मित्र के घर में, परिवार के छोटे-वड़े, सभी सदस्य को बात-बात में, बिलकुल स्वाभाविक ढंग से, संत शिरोमणि श्री श्रीआमीरखानजी की नयी फिल्म,`देल्ही बेली` की स्टाइल में, अश्लील गालियाँ उच्चारते देख, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ..!! मित्र को पूछने पर पता चला कि,सूरत शहर में, इन शब्दों को अपशब्द न मान कर, मन की भड़ास निकालने वाले, आम व्यवहार के शब्द माने जाते हैं..!!
मेरे मित्र ने, अपने अलग कमरे में, रात को, करीब नौ बजे, टाईम-पास करने के लिए, सन-१९९४ में रिलीज़ हुई, सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक श्री शेखर कपूर जी की,`दस्यू सुंदरी फूलनदेवी`, की जीवन गाथा पर आधारित हिन्दी फिल्म,`बैन्डीट क्विन` की सी.डी; सी.डी. प्लेयर पर लगाई, मगर ये क्या?
हमें कोई फिल्म निहारता देख कर, मेरे मित्र के करीब दस और बारह साल के दो बच्चें भी, हमारे साथ कमरे में आ कर, उत्सुकता वश फिल्म देखने बैठ गए..!! उन बच्चों की ज़िद के आगे मेरे मित्र भी लाचार हो गए?
दोस्तों, अब आप को ये तो पता ही है कि, फिल्म,`बैन्डिट क्विन`में वास्तविकता दर्शाने हेतु, निर्देशक ने कुछ बोल्ड दृश्य भी फिल्माये हैं?
मेरे मित्र के दस-बारह साल के दोनों बच्चों ने(पुत्र-पुत्रीने) इस फिल्म में आते, गाली गलोंच के दृश्य तक तो फिल्म देखने की हिम्मत जुटा ली पर, जैसे ही फिल्म की नायिका पर बलात्कार का संपूर्ण नग्न दृश्य आया कि तुरंत, उन दोनों बच्चों के ध्यान में ये बात आ गई कि, उनके पापा यह फिल्म साथ बैठ कर देखने से मना क्यों कर रहे थे, अतः दोनों बच्चे, बिना कुछ कहे सुने ही, कमरे से चुपचाप बाहर चले गए ।
समझदार बच्चों की, यह हरकत देख कर, मुंबई से मेरा पिछा कर रहे, मेरे मन में उठे, कई सारे सवालों के जवाब, मानो सूरत में ही मुझे मिल गए..!! और " सार्वजनिक वाणी-बर्ताव की सीमा कौन तय करे?" इस प्रश्न का जवाब है..!!
"आयु में, छोटे हो या बड़े, नर हो या नारी, जो बात अपने आत्मा को रास ना आयें-अपने मन को ना भाये, वह सारे शब्द-बात अश्लील है । ऐसे शब्द-बात बोलने-सुनने के लिए, अपने मन-आत्मा के द्वारा, जो सरहद; सीमा बाँधी जाएं, वही सीमा प्रत्येक इन्सान के लिए सत्य होती है ।"
हालाँकि, ये शब्द के श्लील-अश्लील माने जाने की सीमा, देश-विदेश की संस्कृति और संस्कार-परंपरा के अनुसार भिन्न-भिन्न ज़रूर हो सकती है । एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि, भारत की सभी भाषाओं के कुछ अप शब्द अगर अंग्रेजी में उच्चारे जाएं, तो वह बकवास अप शब्द उच्चारने वाला व्यक्ति, साक्षर के तौर पर, समाज में सर्वाधिक मान पाता है? वैसे, यह भी देखा गया है कि, हमारे ही देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में, कोई एक शब्द, एक प्रदेश में, जहाँ अप शब्द माना जाता है, वही अप शब्द दूसरे किसी प्रदेश में, आम व्यवहार के चलन का शब्द माना जाता है?
अगर इस उदाहरण को ध्यान में रखें तो, हमारे देश के कई राज्यों के लिए वरदान समान, गुजरात के, महाकाय सरदार सरोवर नर्मदा बांध के विरूद्ध, बिना कुछ सोचे-समझे, इस बाँध से होनेवाले कल्याणकारी लाभ का कोई अभ्यास किए बिना, उस वक़्त रिलीज़ होने वाली, अपनी फिल्म,`फ़ना` को, बॉक्स ऑफ़िस लाभ पहुँचाने के लिए, नर्मदा बाँध विरोधी आंदोलन का समर्थन करके, गुजरात की जनता का आक्रोश बटोरने वाले, मिस्टर परफॅकनीस्ट, श्रीआमीरखान ने,अपनी इमेज से विपरीत, अपने भान्जें अभिनेता ईमरानखान की कैरियर को ज़ोर का धक्का देने के लिए,`Cunning आमीर मामूँ-फ़्लॉप इमरान भान्जे ने, सारे दर्शकों कों `चू..बीप..या = मामूँ` बनाने के लिए, `दिल्ही बेली` का निर्माण किया है?
ऐसे में, जब इस फिल्म की जब चारों ओर से प्रशंसा या कड़ी आलोचना हो रही है तब, इस फिल्म को कितनी गंभीरता से लेना- ना लेना, फिल्म श्लील है या अश्लील, इस बात की सीमा, फिल्म देखने वाले छोटे-बड़े सभी दर्शकों को, अपने मन-आत्मा की आवाज़ सुनकर, उसके मुताबिक फैसला करना चाहिए..!!
यहाँ छोटे-बड़े सभी दर्शक इसलिए लिखा है कि, इस विवादित फिल्म की पायरेटेड सी.डी. कुछ ही दिनों में बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगी, जिसकी एक कॉपी-लिंक्स आज भी नेट पर उपलब्ध है ।
सब टी.वी.पर दिनांक चार जुलाई से, निर्दोष मनोरंजन का एक नया कार्यक्रम,`Happy Housewives Club`, शुरु हुआ है,ये बहुत अच्छी बात है ।
पर,सन-१९९५ में, एक नये रिकॉर्डिंग स्टूडियो के निर्माण हेतु, जूहु- मुंबई के इलाके में, एक भवन-लॉकेशन देखने के लिए, कुछ मित्रों के साथ, मैं भी चला गया । उस भवन के मकान मालिक से, स्वाभाविक बातचीत के दौरान, उनके द्वारा पूछे गए, एक सवाल ने, हमें बड़ा हैरान कर दिया..!! उन्होंने हमें पूछा," आप यहाँ रिकॉर्डिंग स्टूडियो के बहाने, हाउस-वाइफ़ किटी-पार्टी क्लब, जैसी कोई ऍक्टिविटी चलाने का इरादा तो नहीं रखते हैं ना?"
ऐसे बेतुके सवाल से, हमें बहुत अचंभा होने के कारण, हमने उनसे जब,ज्यादा जानकारी चाही तब उन्होंने हमें बताया कि,"पिछले कई माह से यह भवन, एक हाउस-वाइफ किटी-पार्टी क्लब वालों को,किराये पर दिया हुआ था । उस क्लब के सदस्यों ने यहाँ, किटी पार्टी के बहाने,`Male Prostitute`को हायर करके, `Striptris Dance`-जुआ-शराब और अश्लीलता का माहौल खड़ा कर दिया था,जिसके चलते यह स्थान बहुत बदनाम हो रहा था । हालाँकि, मकान-मालिक ने उन सभी फूहड़ नमूनों को, दस दिन पहले ही यहाँ से खदेड़ दिया था..!!
वैसे, हम तो, इस स्थान की, इतनी बढ़िया तारीफ़ सुनते ही, वहाँ से उठ खड़े हुए पर, मेरे मन में भी एक साथ कई सवाल उठ खड़े हो गए..!!
* क्या समाज में,नर हो या नारी, उनके सार्वजनिक वाणी-बर्ताव की कोई सीमा; सरहद होनी चाहिए?
* अगर हाँ तो, ऐसी सीमा कौन तय करें? कानून? कानून तो ऐसे कई कानून तो मौजूद है ना? इस का अमल कहाँ होता है?
* तो फिर,समाज में नैतिकता के प्रहरी होने का दम भरने वाला कोई सामाजिक-राजनीतिक संस्था या दल, श्लील-अश्लील की सीमा तय करेगा? हालाँकि, उनमें भी तो कई मत भेद-मन भेद है..!!
मानो मेरे इन सारे सवाल के जवाब मुझे आज ही मिलना तय हो..!! मुंबई से वापस आते समय,मेरे सूरत के एक मित्र ने बहुत आग्रह करके, उनकी मेहमाननवाज़ी के लिए उनके यहाँ एक दिन ठहर ने के लिए आख़िर, मुझे राज़ी कर ही लिया ।
हमारे सूरती-लाला मित्र के घर में, परिवार के छोटे-वड़े, सभी सदस्य को बात-बात में, बिलकुल स्वाभाविक ढंग से, संत शिरोमणि श्री श्रीआमीरखानजी की नयी फिल्म,`देल्ही बेली` की स्टाइल में, अश्लील गालियाँ उच्चारते देख, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ..!! मित्र को पूछने पर पता चला कि,सूरत शहर में, इन शब्दों को अपशब्द न मान कर, मन की भड़ास निकालने वाले, आम व्यवहार के शब्द माने जाते हैं..!!
मेरे मित्र ने, अपने अलग कमरे में, रात को, करीब नौ बजे, टाईम-पास करने के लिए, सन-१९९४ में रिलीज़ हुई, सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक श्री शेखर कपूर जी की,`दस्यू सुंदरी फूलनदेवी`, की जीवन गाथा पर आधारित हिन्दी फिल्म,`बैन्डीट क्विन` की सी.डी; सी.डी. प्लेयर पर लगाई, मगर ये क्या?
हमें कोई फिल्म निहारता देख कर, मेरे मित्र के करीब दस और बारह साल के दो बच्चें भी, हमारे साथ कमरे में आ कर, उत्सुकता वश फिल्म देखने बैठ गए..!! उन बच्चों की ज़िद के आगे मेरे मित्र भी लाचार हो गए?
दोस्तों, अब आप को ये तो पता ही है कि, फिल्म,`बैन्डिट क्विन`में वास्तविकता दर्शाने हेतु, निर्देशक ने कुछ बोल्ड दृश्य भी फिल्माये हैं?
मेरे मित्र के दस-बारह साल के दोनों बच्चों ने(पुत्र-पुत्रीने) इस फिल्म में आते, गाली गलोंच के दृश्य तक तो फिल्म देखने की हिम्मत जुटा ली पर, जैसे ही फिल्म की नायिका पर बलात्कार का संपूर्ण नग्न दृश्य आया कि तुरंत, उन दोनों बच्चों के ध्यान में ये बात आ गई कि, उनके पापा यह फिल्म साथ बैठ कर देखने से मना क्यों कर रहे थे, अतः दोनों बच्चे, बिना कुछ कहे सुने ही, कमरे से चुपचाप बाहर चले गए ।
समझदार बच्चों की, यह हरकत देख कर, मुंबई से मेरा पिछा कर रहे, मेरे मन में उठे, कई सारे सवालों के जवाब, मानो सूरत में ही मुझे मिल गए..!! और " सार्वजनिक वाणी-बर्ताव की सीमा कौन तय करे?" इस प्रश्न का जवाब है..!!
"आयु में, छोटे हो या बड़े, नर हो या नारी, जो बात अपने आत्मा को रास ना आयें-अपने मन को ना भाये, वह सारे शब्द-बात अश्लील है । ऐसे शब्द-बात बोलने-सुनने के लिए, अपने मन-आत्मा के द्वारा, जो सरहद; सीमा बाँधी जाएं, वही सीमा प्रत्येक इन्सान के लिए सत्य होती है ।"
हालाँकि, ये शब्द के श्लील-अश्लील माने जाने की सीमा, देश-विदेश की संस्कृति और संस्कार-परंपरा के अनुसार भिन्न-भिन्न ज़रूर हो सकती है । एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि, भारत की सभी भाषाओं के कुछ अप शब्द अगर अंग्रेजी में उच्चारे जाएं, तो वह बकवास अप शब्द उच्चारने वाला व्यक्ति, साक्षर के तौर पर, समाज में सर्वाधिक मान पाता है? वैसे, यह भी देखा गया है कि, हमारे ही देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में, कोई एक शब्द, एक प्रदेश में, जहाँ अप शब्द माना जाता है, वही अप शब्द दूसरे किसी प्रदेश में, आम व्यवहार के चलन का शब्द माना जाता है?
अगर इस उदाहरण को ध्यान में रखें तो, हमारे देश के कई राज्यों के लिए वरदान समान, गुजरात के, महाकाय सरदार सरोवर नर्मदा बांध के विरूद्ध, बिना कुछ सोचे-समझे, इस बाँध से होनेवाले कल्याणकारी लाभ का कोई अभ्यास किए बिना, उस वक़्त रिलीज़ होने वाली, अपनी फिल्म,`फ़ना` को, बॉक्स ऑफ़िस लाभ पहुँचाने के लिए, नर्मदा बाँध विरोधी आंदोलन का समर्थन करके, गुजरात की जनता का आक्रोश बटोरने वाले, मिस्टर परफॅकनीस्ट, श्रीआमीरखान ने,अपनी इमेज से विपरीत, अपने भान्जें अभिनेता ईमरानखान की कैरियर को ज़ोर का धक्का देने के लिए,`Cunning आमीर मामूँ-फ़्लॉप इमरान भान्जे ने, सारे दर्शकों कों `चू..बीप..या = मामूँ` बनाने के लिए, `दिल्ही बेली` का निर्माण किया है?
ऐसे में, जब इस फिल्म की जब चारों ओर से प्रशंसा या कड़ी आलोचना हो रही है तब, इस फिल्म को कितनी गंभीरता से लेना- ना लेना, फिल्म श्लील है या अश्लील, इस बात की सीमा, फिल्म देखने वाले छोटे-बड़े सभी दर्शकों को, अपने मन-आत्मा की आवाज़ सुनकर, उसके मुताबिक फैसला करना चाहिए..!!
यहाँ छोटे-बड़े सभी दर्शक इसलिए लिखा है कि, इस विवादित फिल्म की पायरेटेड सी.डी. कुछ ही दिनों में बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगी, जिसकी एक कॉपी-लिंक्स आज भी नेट पर उपलब्ध है ।
पार्ट-१.
http://movzap.com/332euk14f3rb.html
पार्ट-२.
http://movzap.com/ncwyn0d0385b.html
पार्ट-३.
http://movzap.com/nzkwsoxvc5d0.html
पार्ट-४.
http://movzap.com/3pqjguog05eo.html
पार्ट-५.
http://movzap.com/hrrn310bsnba.html
पार्ट.६.
http://movzap.com/ycyzj73336b6.html
ज़ाहिर है ऐसे में १८ साल से कम आयु के बच्चें भी चोरी छिपे इस पायरेटेड कॉपी को अवश्य निहारेंगे? ऐसे में, हमेशा की तरह, आमीरखान का यह सार्वजनिक स्टेटमेन्ट बेकार-बेअसर हो जाएगा कि," हमने यह फिल्म का `A` सर्टिफ़िकेट लिया हुआ है?"
सच तो यह है कि,आमीरखान की`सरफ़रोश`;`तारे जमीँ पर`,जैसी फिल्मों की कलात्मकता के अनुरूप,`देल्ही बेली` फिल्म नहीं है । मानो, उस असली आमीरखान को, उसकी दूसरी बीवी (निराशा की) किरन और फ़्लॉप ऍक्टर भांजे इमरान ने हाईजैक कर लिया हो..!!
एक टी.वी. साक्षात्कार में आमीरखान ने दावा किया है कि,`देल्ही बेली` फिल्म की स्क्रिप्ट ओरिजिनल है ।
आमीरखान के टी.वी,साक्षात्कार कि लिंक-
सच तो यह है कि,आमीरखान की`सरफ़रोश`;`तारे जमीँ पर`,जैसी फिल्मों की कलात्मकता के अनुरूप,`देल्ही बेली` फिल्म नहीं है । मानो, उस असली आमीरखान को, उसकी दूसरी बीवी (निराशा की) किरन और फ़्लॉप ऍक्टर भांजे इमरान ने हाईजैक कर लिया हो..!!
एक टी.वी. साक्षात्कार में आमीरखान ने दावा किया है कि,`देल्ही बेली` फिल्म की स्क्रिप्ट ओरिजिनल है ।
आमीरखान के टी.वी,साक्षात्कार कि लिंक-
http://www.youtube.com/watch?v=YjtSJCbtaXw&feature=relmfu
आमीरखान का यह दावा कि,`देल्ही बेली` फिल्म की स्क्रिप्ट ओरिजिनल है, ये बात बिलकुल सत्य से परे है क्योंकि, यह फिल्म, सन-२००९ में रिलिज़ हुई अंग्रेजी फ्लॉप फिल्म,`Next Day Air`,पर आधारित है यहाँ तक की, उसके कई सेट और सीन भी हूबहू कॉपी किए गये हैं? आमीरखान जैसे मंजे हुए कलाकार से, दर्शकों को, इतने बड़े छल-कपट की, शायद उम्मीद नहीं थी..!!
फिल्म,`Next Day Air`, की लिंक-
फिल्म,`Next Day Air`, की लिंक-
http://www.novamov.com/video/4d8f7bd6b9c85
हालाँकि, कई सारे निर्माता-निर्देशक-अभिनेता-अभिनेत्री, फिल्म उद्योग में अमाप सफलता प्राप्त करते ही, प्रयोगशीलता के नाम फूहड़ फिल्मों का निर्माण करते हैं, जिनमें से एक,`देल्ही बेली` भी है..!!
यह फिल्म देखने के बाद, दर्शकों को लगता है कि, आमीरखान अपनी `निराशा की` किरन खान बीवी के प्रभाव में आकर, उसके कहने या स्क्रिप्ट पढ़ कर हसने पर, अंटसंट फ़ालतू फिल्म निर्माण करके, ये साबित करने पर तुले हैं कि,वह साठ साल के होने से पहले ही सठिया गये हैं?
ये निश्चित है कि, प्रयोगों के नाम पर समाज में क्षोभ पैदा करने वाली ऐसी फिल्में देखकर ही दर्शक,अतिरिक्त रू.१०० खर्च करके, पॉपकोर्न-पॅप्सी खा-पी कर, इतने बड़े घोर अपराध का घोर प्रायश्चित करता होगा..!!
अगर आमीरखान, आने वा ले समय में भी, बीवी किरन और इमरान के इशारों पर,`देल्ही बेली`,जैसी बकवास फिल्म निर्माण करते रहेंगे, तो बॉक्स ऑफ़िस पर उनकी सभी फिल्म, एक न एक दिन पीट ने लगेगी और उन्हें भी रामगोपाल वर्मा की तरह, अपने साथी कलाकारों पर,`देल्ही बेली` की अश्लील भाषा में ट्वीट करना पड़ेगा?
हमारे पड़ोसी शर्माजी का कहना है कि," आमीर इस फिल्म में रुपया ज़रूर कमायेगा, पर `गोविंदा-डेविड धवन` स्टाईल की फूहड़ कॉमेडी परोस कर, दर्शकों का विश्वास खो देगा..!! अगर विदेशी फिल्मों से स्टोरी-आइडिया चुरा कर, निर्माण किए गये प्रयोग ऐसे ही होते हैं तो, भोजपुरी या फिर, मराठी मानुष दादा कोंड के, `अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में`, जैसी फिल्मों को,`देल्ही बेली`से बेहतर मानना चाहिए, कम से कम उसमें अपनी मिट्टी की ख़ुशबू तो होती है..!!"
शर्मा जी ने तो आक्रोशित हो कर ये तक कह दिया, " सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे- जैसे गानों के लिए,गोविंदा अंकल और करिश्मा आंटी ने, छोटे-बड़े सभी दर्शकों से माफ़ी मांगी थी,क्या आमिर खान इस बकवास फिल्म के लिए कभी माफ़ी माँगेगा?"
यहाँ, एक स्पष्टता ज़रूरी है कि, जैसे आमीरखान अपने फिल्मी प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र है, इसी प्रकार शर्मा जी जैसे दर्शकों को भी अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी है ।
वैसे,श्रीशर्मा जी की यह भड़ास, कई लोगों को सही लगेगी,क्योंकि, अपनी हर एक फिल्म को `ऑस्कार ऍवोर्ड` के लायक समझने बाले, आमीरखान, इस फिल्म को `ऑस्कार` में नोमिनेट करा के `ऑस्कार ऍवोर्ड` के लिए मरणासन्न प्रयास करेंगे?
अभी-अभी न्यूज़ चैनल पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश हो रहा है,"जयपुर की मेडिकल कॉलेज के स्वर्गवासी प्रिसिंपल श्रीरामेश्वर शर्मा जी ने अपनी ५० साल की डॉक्टरी सेवाओं के बाद, डॉक्टरी पढ़ रहे छात्रों के अभ्यास के उम्दा हेतु, अपने मृत्युपश्चात, देह दान किया था, पर`सवाई माधोसिंह हॉस्पिटल` के सत्ताधिशों की लापरवाही से, उनका मृत देह, छात्रों के काम न आ कर, वहाँ बस रहे, असंख्य माँसाहारी चूहों का पापी पेट भरने के लिए काम आया..!! जी..हाँ, उन माँसाहारी चूहों ने स्वर्गस्थ श्रीरामेश्वर शर्मा जी का शव को बुरी तरह कुतर खाया..!!"
यह समाचार देखकर, मुझे प्रतीत हो रहा है कि, आदरणीय श्री दादा साहब फाल्के से शुरू हुई, हमारी फिल्म उद्योग की महान धरोहर, जिसे बाद में, श्रीसत्यजित राय, श्रीबासुचेटरजी, श्रीऋषि `दा, श्रीगुरूदत्त जी और न जाने कितने तपस्वीओं ने अपने तप से, संभाले रखा, नवपल्लवित किया, उसे अपने मृत्युपश्चात, हमें दान किया..!!
उस महान धरोहर को, भली भाँति सँभाल ने के बजाय, आमीरखान-किरन खान और रामगोपाल वर्मा, जैसे कला भक्षी माँसाहारी चूहें मिलकर अपना पापी पेट भरने के लिए, चारों ओर से फूँक मारते हुए बुरी तरह कुतर रहे हैं..!!
हम लाचार हैं क्योंकि इस देश का सेंसर बोर्ड भी, सरकार के मंत्रीओं की तरह भ्रष्ट हो चुका है?
हम तो,आमीरखान को भी चेता रहे हैं,`जाग बोस.डी.के.आमीर झाग..!! वर्ना जब दर्शक जाग जायेंगे तो, कहना पड़ेगा,`भाग बोस.डी.के.आमीर भाग, साबुन की शक्ल में तु तो निकला केवल झाग?"
अब मैं तो यहाँ विराम ले रहा हूँ, पर आप अपनी प्रबुद्धतापूर्ण टिप्पणी करने के लिए मत रूकना..!!
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/07/blog-post_08.html
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०८-०७-२०११.
यह फिल्म देखने के बाद, दर्शकों को लगता है कि, आमीरखान अपनी `निराशा की` किरन खान बीवी के प्रभाव में आकर, उसके कहने या स्क्रिप्ट पढ़ कर हसने पर, अंटसंट फ़ालतू फिल्म निर्माण करके, ये साबित करने पर तुले हैं कि,वह साठ साल के होने से पहले ही सठिया गये हैं?
ये निश्चित है कि, प्रयोगों के नाम पर समाज में क्षोभ पैदा करने वाली ऐसी फिल्में देखकर ही दर्शक,अतिरिक्त रू.१०० खर्च करके, पॉपकोर्न-पॅप्सी खा-पी कर, इतने बड़े घोर अपराध का घोर प्रायश्चित करता होगा..!!
अगर आमीरखान, आने वा ले समय में भी, बीवी किरन और इमरान के इशारों पर,`देल्ही बेली`,जैसी बकवास फिल्म निर्माण करते रहेंगे, तो बॉक्स ऑफ़िस पर उनकी सभी फिल्म, एक न एक दिन पीट ने लगेगी और उन्हें भी रामगोपाल वर्मा की तरह, अपने साथी कलाकारों पर,`देल्ही बेली` की अश्लील भाषा में ट्वीट करना पड़ेगा?
हमारे पड़ोसी शर्माजी का कहना है कि," आमीर इस फिल्म में रुपया ज़रूर कमायेगा, पर `गोविंदा-डेविड धवन` स्टाईल की फूहड़ कॉमेडी परोस कर, दर्शकों का विश्वास खो देगा..!! अगर विदेशी फिल्मों से स्टोरी-आइडिया चुरा कर, निर्माण किए गये प्रयोग ऐसे ही होते हैं तो, भोजपुरी या फिर, मराठी मानुष दादा कोंड के, `अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में`, जैसी फिल्मों को,`देल्ही बेली`से बेहतर मानना चाहिए, कम से कम उसमें अपनी मिट्टी की ख़ुशबू तो होती है..!!"
शर्मा जी ने तो आक्रोशित हो कर ये तक कह दिया, " सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे- जैसे गानों के लिए,गोविंदा अंकल और करिश्मा आंटी ने, छोटे-बड़े सभी दर्शकों से माफ़ी मांगी थी,क्या आमिर खान इस बकवास फिल्म के लिए कभी माफ़ी माँगेगा?"
यहाँ, एक स्पष्टता ज़रूरी है कि, जैसे आमीरखान अपने फिल्मी प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र है, इसी प्रकार शर्मा जी जैसे दर्शकों को भी अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी है ।
वैसे,श्रीशर्मा जी की यह भड़ास, कई लोगों को सही लगेगी,क्योंकि, अपनी हर एक फिल्म को `ऑस्कार ऍवोर्ड` के लायक समझने बाले, आमीरखान, इस फिल्म को `ऑस्कार` में नोमिनेट करा के `ऑस्कार ऍवोर्ड` के लिए मरणासन्न प्रयास करेंगे?
अभी-अभी न्यूज़ चैनल पर एक ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश हो रहा है,"जयपुर की मेडिकल कॉलेज के स्वर्गवासी प्रिसिंपल श्रीरामेश्वर शर्मा जी ने अपनी ५० साल की डॉक्टरी सेवाओं के बाद, डॉक्टरी पढ़ रहे छात्रों के अभ्यास के उम्दा हेतु, अपने मृत्युपश्चात, देह दान किया था, पर`सवाई माधोसिंह हॉस्पिटल` के सत्ताधिशों की लापरवाही से, उनका मृत देह, छात्रों के काम न आ कर, वहाँ बस रहे, असंख्य माँसाहारी चूहों का पापी पेट भरने के लिए काम आया..!! जी..हाँ, उन माँसाहारी चूहों ने स्वर्गस्थ श्रीरामेश्वर शर्मा जी का शव को बुरी तरह कुतर खाया..!!"
यह समाचार देखकर, मुझे प्रतीत हो रहा है कि, आदरणीय श्री दादा साहब फाल्के से शुरू हुई, हमारी फिल्म उद्योग की महान धरोहर, जिसे बाद में, श्रीसत्यजित राय, श्रीबासुचेटरजी, श्रीऋषि `दा, श्रीगुरूदत्त जी और न जाने कितने तपस्वीओं ने अपने तप से, संभाले रखा, नवपल्लवित किया, उसे अपने मृत्युपश्चात, हमें दान किया..!!
उस महान धरोहर को, भली भाँति सँभाल ने के बजाय, आमीरखान-किरन खान और रामगोपाल वर्मा, जैसे कला भक्षी माँसाहारी चूहें मिलकर अपना पापी पेट भरने के लिए, चारों ओर से फूँक मारते हुए बुरी तरह कुतर रहे हैं..!!
हम लाचार हैं क्योंकि इस देश का सेंसर बोर्ड भी, सरकार के मंत्रीओं की तरह भ्रष्ट हो चुका है?
हम तो,आमीरखान को भी चेता रहे हैं,`जाग बोस.डी.के.आमीर झाग..!! वर्ना जब दर्शक जाग जायेंगे तो, कहना पड़ेगा,`भाग बोस.डी.के.आमीर भाग, साबुन की शक्ल में तु तो निकला केवल झाग?"
अब मैं तो यहाँ विराम ले रहा हूँ, पर आप अपनी प्रबुद्धतापूर्ण टिप्पणी करने के लिए मत रूकना..!!
http://mktvfilms.blogspot.com/2011/07/blog-post_08.html
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०८-०७-२०११.
3 comments:
उत्सुकतावश डेल्ही-वेळी के कुछ क्लिप्स मैंने भी देखे, देख कर दुःख हुआ, और यह सोचकर और भी दुःख हुआ की समाज को सही राह दिखना और हमारी संस्कृति और हमारी परम्पराओं को सहेजने की जिम्मेदारी जिनके कन्धों पर है वो लोग आज चंद कागज के टुकड़ों की खातिर किस हद तक जा चुके हैं, लेकिन ये लोग भी क्या करें ? जनता की मांग है और ये पूरी कर रहे हैं, तभी तो ये लोग जनता के आदर्श बने हुए हैं,
सांस्कृतिक संक्रमण का जो दौर चल पड़ा है यदि समय रहते उस पर अंकुश नहीं लगाया तो सोचिये आगे चलकर हमारा समाज कहाँ पर जा कर ठहरेगा ? आज यदि आप और मैं या हमारे जैसे लोग ऐसी विकृत मानसिकता का विरोध करते हैं तो कहा जाता है की यह तो जनरेशन गैप है, या फिर ये घिसे-पिटे विचार कहलाते हैं, तथाकथित आधुनिक और शभ्य कही जाने वाली पीढ़ी (खासकर आज का युवा ) पर मुझे तरस आता है और हंसी आती है उनके आदर्शी पर .
चिंतनीय विषय पर एक बेहतरीन पोस्ट हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ .
बहुत सुन्दर लिखे है,
चिंतनीय विषय पर एक बेहतरीन पोस्ट हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ .
भड़ास का ---
सुन्दर प्रगटीकरण |
बधाई ||
Post a Comment