- अतुल कुशवाह
ट्रेन की तरह हर रोज मांगने की डियूटी करने वाले भिखारी अब पेशेवर हो गए हैं. आप भले ही एक, दो या सामर्थ्य के अनुसार ऐसे भिखारियों को दान करें जो बड़े दीन-हीन दिखाई देते हों लेकिन यकीं कीजिये..आपकी इसी श्रृद्धा-भावना ने उन्हें पेशेवर बना दिया है. उनकी आकांक्षाओं को बढाया है और उन्हें बाकायदा पोशा भी है. भिखारी अब पहले से अधिक आशावादी हो चले हैं. उन्हें भी भौतिक सुख सुविधाओं की छह जगी है और वे उन्हें पाने के लिए अपने तरीके से जद्दोजहद भी करते हैं. देखिये..भिखारी होना उनकी बदनसीबी थी. और पुण्य कमाने के लिए दान दक्षिणा देना आपका कर्त्तव्य. दुनिया में अच्छा या बुरा होना नसीब की बात नहीं, अमीर या गरीब होना नसीब की बात है...अब जरा बताइए कि क्या ये नसीब की बात नहीं है कि एक मजदूर के घर पैदा होने वाली औलाद पढाई की उम्र से ही कमाई करने लगती है. और बचपना ढो रहे बच्चे अमीरों के घरों में नौकर बनकर बड़े होते हैं.
साँरी, ये था पेशेवर भिखारी...!
भगवान् भला करेगा साहब! सिर्फ एक रुपये का सवाल है साहब..पेट की खातिर, साहब एक रूपया दे दीजिये..आपका भला होगा..! रफ़्तार पकड़ रही ट्रेन में सरपट दौड़कर डिब्बे में दाखिल हुआ वो भिखारी इन्ही लाइनों का राग अलापते हुए भीख मांग रहा था.ट्रेन कानपुर सेन्ट्रल के करीब थी. हालाँकि उस भिखारी हालत मुझे तरस खाने को मजबूर नहीं कर सकी.ऐसा शायद उस डिब्बे में बैठे सभी लोगों के साथ हुआ.किसी का भी हाथ भिखारी पर तरस खाकर जेबों में पैसे तक नहीं पहुंचा. डिब्बे में दो राउण्ड लगाने के बाद यह बोलते हुए वाहर का रास्ता पकड़ा कि लगता है पहले ही कोई मांगने वाला यहाँ आ चुका है...क्या इस डिब्बे में कोई मांगने वाला आया था? और आँखों से अँधा सा दिखने वाला वो भिखारी नीचे उतर गया..! उसकी बात सुनकर मेरे दिमाग की नियन लाइट जलने बुझने लगी...साँरी, ये थे पेशेवर भिखारी...!
भिखारी की शर्तों के मारे..चाचा बेचारे
अखबार में साथ काम करने वाले एक साथी धार्मिक हैं. खूब दान देते हैं. व्रत रखते है. भिखारियों को खाना खिलाते हैं. वे कई नियम कायदों के पक्के हैं. दफ्तर में सब उन्हें चाचा बोलते हैं, और मैं भी. हर रोज हम दोनों रात को ऑफिस से घर साथ-साथ जाते हैं. रस्ते में एक मंदिर है, अचलेश्वर महादेव. सोमवार को बहुत भीड़ जमा होती है. इस मंदिर के चारो ओर करीब दो दर्जन से ज्यादा बदनसीब यानि भिखारी जमे होते हैं. चाचा अपने व्रत के दिन मांगने वालों को भोजन कराते हैं. वे काफी समय से एक भिखारी को खाना खिलाते आ रहे हैं और उसे दक्षिणा के रूप में ११ रुपये भी देते हैं. कुछ दिन पहले उस भिखारी ने खाना खाने से मना कर दिया है. कारन, चाचा उसे ११ रुपये दक्षिणा दे रहे थे जबकि उसकी मांग अब २१ या इससे ज्यादा हो गयी थी..चाचा ने इधर मंदिर के पास वाले लोगों से संपर्क साधा. खाना खाने के लिए घर पर चलने को कहा. लेकिन चाचा का ये प्रयास बेकार हो गया. भिखारी ने घर जाने से मना कर दिया और बोला..खाना खिलाना चाहता है तो यहीं लेकर आ..मुझे कहीं नहीं जाना, बहुत गर्मी है..उसकी बात सुनकर आगे बढे. दूसरे से कहा, वो घर जाने को तो तैयार हो गया लेकिन उसने भी अपनी शर्त सामने रख दी. शर्त ये थी, कि या तो घर तक चाचा कि बाइक से जायेगा या ऑटो का दोनों तरफ का किराया और दक्षिणा अलग से देनी होगी...! भिखारी की शर्तों के मारे..चाचा बेचारे...!
इनके पाप माफ़ कर दे खुदा..!
इस बच्चे का क्या कसूर, टेल मी ओ खुदा...! आज मुझे वो बच्चा याद आ रहा है जो शायद एक साल पहले मुझे ट्रेन में मिला था. एक हाथ से अपने अंधे दादा जी की लाठी और दूसरे में भीख का कटोरा लिए लोगों के चेहरे निहार रहा था. उसके चेहरे की मासूमियत ने मुझे रुला दिया था. लेकिन उसके लिए कर कुछ नहीं सका, शिवाय उसे पांच का एक नोट देने के. ऐसे अनाथ बच्चों के लिए सरकारों ने योजनायें तो बनाई लेकिन इन योजनाओं को अंजाम देने के लिए देश में ए.राजा, और कलमाड़ी जैसे माननीय विराजमान हैं. ये बात अलग है की जिसकी पोल खुल गई वो भ्रष्ट और जो छिपा ले जाये वो श्रेष्ठ बना बैठा है. लेकिन ये तो तय हो ही गया है कि सरकारों की टीम में ज्यादातर ऐसे ही लोग होते हैं...खुदा खैर करे, उन बच्चों की जिनके लिए योजनायें बनी और फिर भी उनसे महरूम हैं..वे बच्चे जिनके मासूम बचपन को गरीबी का लकवा मार रहा है..इनके पाप माफ़ कर दे खुदा..इनका क्या कसूर..!
फोटो- साभार: गूगल

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हाय मेरा देश
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