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7.2.12

उफ़्फ़.........ये चुनावी वादे!


दोस्तों, जैसा कि आप सब जानते हैं, इस साल के शुरूआत में पाँच राज्यों में विधान-सभा चुनाव होने वाले हैं।जनवरी के अंत(28 जनवरी) से मणिपुर से इन चुनावों की शुरूआत हो चुकी है और पंजाब और उत्तराखंड(30 जनवरी) में भी वोट डालने की प्रक्रिया हो चुकी है।उत्तर-प्रदेश में सात-चरण में मतदान होने हैं जिनकी शुरूआत 8 फरवरी से होगी और आखिरी मतदान 3 मार्च को होंगे।गोआ में 3 मार्च को चुनाव होने हैं।इन सभी पाँच राज्यों के वोटों की गिनती 6 मार्च को होगी।यूं तो राजनीतिक नजरिए से हर राज्य अहम होता है लेकिन इस बार इन पाँच राज्यों में सबसे दिलचस्प मुकाबला उत्तर-प्रदेश में है, जहाँ सभी राजनीतिक पार्टियाँ वोटरों को लुभाने के लिए वादे पर वादे किए जा रही हैं।कोई सत्ता में आने के बाद विकास करने की बात कर रहे हैं तो कोई छात्रों को मुफ्त लैपटौप एवं टैबलेट कंप्यूटर देने का वादा कर रहा है।कोई सर्वजन-हिताय की बात कर रहा है तो कोई मुस्लिमों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण का सब-कोटा दोगुना करने के वादे कर रहा है।वादा चाहे कोई भी हो पर सभी का लक्ष्य है मतदाताओं को लुभाना।
   जिन लोगों का आम जनता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहता है, चुनाव के दौरान वे भी जनता के बीच उतर जाते हैं जैसे जनता के सबसे शुभचिंतक वही हो।राहुल गाँधी ने उमा भारती से कहा कि जब यूपी में किसानों पर अत्याचार हो रहा था उस वक्त वो नहीं आई और अब चुनाव के वक्त जनता के बीच आ गई।सवाल तो आपसे भी पूछा जा सकता है राहुल जी!आपकी बहन प्रियंका जी भी तो किसानों को अत्याचार से बचाने नहीं आई थी पर अब जैसे ही चुनाव आए तो वो मैदान में कूद पड़ीं।
   किसी भी राजनीतिक पार्टी का जब गठन हुआ था तो उस वक्त उसके कुछ सिद्धांत हुआ करते थे।लेकिन आज-कल तो ये सिद्धांत बिल्कुल गायब हैं।चुनाव के दौरान पार्टियाँ वोटों के लालच में अपने सिद्धांत भी भूल जाती हैं।अखबारों में इस तरह की खबरें आम हो गई हैं, जैसे- कांग्रेस ने मुस्लिमों का सब-कोटा बढ़ाने का वादा कर उन्हें लुभाने की कोशिश की, भाजपा ने मुस्लिम आरक्षण का विरोध कर पिछड़ों पर पकड़ मजबूत की, मायावती की दलित वोट-बैंक पर नजर।इन खबरों से तो ऐसा ही लगता है कि सभी पार्टियों ने अपने सिद्धांत भूला कर जातिवाद और धर्म-आधारित राजनीति अपना लिया है।क्या भारतीय समाज में अब इस तरह की घटिया राजनीति स्वीकार्य हो चुकी है?सभी खुलेआम जात-पात की राजनीति कर रहे हैं।तो क्या अब हमारे देश में विकास की राजनीति पर जात-पात की राजनीति हावी है?यूपी विधान-सभा चुनाव में नेता खुलेआम मतदाताओं को जात-पात के नाम पर बेवकुफ़ बना रहे हैं।फिर भी जनता अगर सचमुच आकर्षित होकर जात-पात के नाम पर वोट दे तो यह तो जनता की ही गलती होगी।सपा ने सत्ता में आने के बाद छात्रों को मुफ्त लैपटौप एवं टैबलेट देने का वादा किया।यह तो खुलेआम जनता को रिश्वत देना है।आप विकास की बात नहीं कर रहे हैं और खुलेआम रिश्वत को बढ़ावा दे रहे हैं।इस तरह के वादों को भी चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के तहत लाना चाहिए।भाजपा ने अल्पसंख्यक कल्याण की बात कही तो दिग्विजय सिंह ने कहा कि चाहे कोई भी अल्पसंख्यक कल्याण की बात करे लेकिन सत्ता में रहने की वजह से मुस्लिमों को आरक्षण तो कांग्रेस ही दिला सकती है।यह तो हद हो गई।कांग्रेस खुलेआम मुस्लिमों को कह रही है कि आप हमें वोट दो, हम आपको आरक्षण देंगे।
   राहुल गाँधी शुरू से यह कहते आएं हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग की तरह एक संवैधानिक लोकपाल की जो बात कही थी, तो सभी विपक्षी नेताओं ने उनका मजाक उड़ाया।अरे! राहुल जी लोकपाल पर सरकार के रवैये को देखकर तो तो कोई भी मजाक उड़ायगा।सरकार ने एक बेअसर लोकपाल लाकर जनता के सामने पेश किया और आप उसे संवैधानिक दर्जा देने की बात कर रहे हैं।एक ऐसा लोकपाल जो कि स्वतंत्र रूप से जाँच भी नहीं कर सकता क्योंकि उसे जाँच के लिए सीबीआई को सिफारिश भेजनी होगी, उसे आप संवैधानिक दर्जा देने की बात कर रहे हैं।आपका यह विचार तो खुद ही एक मजाक है।माना कि लोकपाल को संवैधानिक दर्जा मिलने से वह चुनाव आयोग की तरह बिना सरकार की दखलअंदाजी के काम करेगा लेकिन उसके लिए एक मजबूत लोकपाल चाहिए।एक संवैधानिक लोकपाल का राहुल जी का विचार स्वागत योग्य है लेकिन पहले एक मजबूत लोकपाल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।टीम अन्ना की सदस्य मेधा पाटकर ने भी एक संवैधानिक लोकपाल का समर्थन किया लेकिन जैसा मजबूर लोकपाल सरकार ने पेश किया उसके बाद तो कोई भी राहुल गाँधी के संवैधानिक लोकपाल के विचार का मजाक उड़ायगा।जब सरकार के पास मौका था एक मजबूत लोकपाल लाने का तब तो सरकार ने लाया नहीं और अब चुनाव के वक्त वोट लेने के लिए राहुल जी जनता से कह रहे हैं कि कांग्रेस एक मजबूत लोकपाल लाएगी।प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी जनता से एक मजबूत लोकपाल लाने का वादा किया।महोदय, आपका यह वादा तो कई महीनों से सुनते आ रहे हैं, वादा निभाईएगा कब?जब एक मजबूत लोकपाल की माँग उठी तो किस तरह से आपकी पूरी सरकार ने मिलकर लोकपाल की 'हत्या' कर दी, यह पूरे देश ने देखा।भ्रष्टाचार मिटाने में आपकी पूरी सरकार बुरी तरह से विफल रही है और आप चुनाव के वक्त मजबूत लोकपाल का वादा करके जनता को दिखा रहे हैं कि आपकी सरकार भ्रष्टाचार मिटाना चाहती है।आपकी सरकार मजबूत लोकपाल का वादा करके किसे बेवकूफ़ बना रही है?क्या उस जनता को जिसने अपनी आँखों से आपके सरकार की सच्चाई देखी कि किस तरह से सरकार ने एक 'मजबूत' लोकपाल से डर कर जनता के सामने एक 'मजबूर' लोकपाल पेश किया।भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति सरकार का इतना नकारात्मक रवैया देखने के बावजूद भी अगर जनता ने कांग्रेस को किसी भी चुनाव में वोट दिया तो देश में ऐसी जनता का होना तो देश का दुर्भाग्य ही कहलाएगा।
   मैं मतदाताओं से कहना चाहता हूँ कि उठो, जागो और देखो कि देश में क्या हो रहा है।देखो,पहचानो कि कौन देशहित में काम कर रहा है और कौन देश को डूबा रहा है।अपना बहुमूल्य वोट किसी नेता की मीठी बातों में आकर बर्बाद मत करो।जब तक आपलोग जात-पात के नाम पर वोट देते रहेंगे तब तक जातिवाद राजनीति जिंदा रहेगी।नेता तो कभी जात-पात की राजनीति करना छोड़ेंगे नहीं, आपलोग इस देश के नागरिक होने के नाते जातिवाद राजनीति खा बहिष्कार कीजिए।कोई भी नेता जो किसी खास समाज के कल्याण की बात करे उसे तो बिल्कुल वोट मत दीजिए।जो पूरे राज्य, देश का विकास करे उसे ही अपना वोट दें।नेताओं का आचरण, व्यक्तित्व देखकर उन्हें वोट दें, उनकी जाति या धर्म देखकर नहीं।
जय हिंद! जय भारत!  

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