शंकर जालान
उत्तर कोलकाता स्थित हाथीबागान बाजार में बुधवार रात लगी आग की लपटों से आर्थिक रूप से चौपट हुए दुकानदारों का कहना है कि बुधवार की यह काली रात वे जिदंगी में कभी नहीं भूलेंगे। यह वह रात है, जिसकी सुबह उनके जीवन में उजाले की बजाए अंधेरा लेकर आई थी। आग में अपनी-अपनी दुकानों में रखे सामान की राख में तब्दील होते देख ज्यादातर दुकानदारों की आंखू से आंसू निकल रहे थे। पीड़ित दुकानदारों ने कहा कि हाथीबागान इलाका बांग्लाभाषी क्षेत्र है और करीब २० दिन बाकी पोइसा बैशाख यानी बांग्ला नववर्ष। इसी के मद्देनजर इनदिनों कई दुकानों में चैत्र सेल चल रही थी और इन दुकानों भारी मात्रा में स्टॉक रखा था, जो बुधवार को लगी आग की भेंट चढ़ा गया। प्रभावित दुकानदारों ने जनसत्ता को बताया कि वैसे तो साल के बारह महीने इस बाजार में ग्राहक खरीदारी के लिए आते हैं, लेकिन में वर्ष में दो मौके ऐसे आते हैं, जब ग्राहकों का तांता लगा रहता है और हम जैसे दुकानदारों को फुसर्त नहीं मिलती। एक दुर्गापूजा और दूसरा पोइला बैशाख। उनलोगों ने इस बार का नया साल यानी पोइला बैशाख हम जैसे सैंकड़ों दुकानदारों को ऐसा उपहार दे गया, जिसे हम जीते जी नहीं भूल सकते। आग में सब कुछ गवां चुके लोगों ने बताया कि हम मध्य कोलकाता के नंदराम मार्केट में लगी आग भयावह आग की घटना को भूले नहीं। नंदराम मार्केट में लगी आग को लगभग चार साल हो गए हैं और आज भी वहां के दर्जनों दुकानदार अपने हक व अपनी रोजी-रोटी के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में उन्हें नहीं लगता महज तीन सप्ताह के भीतर यानी पोइला बैशाख से पहले वे लोग दुकानें खोल पाएंगे।
हाथीबागान बाजार के तीन नंबर गेट के पास अस्थाई दुकान लगाकर स्टील के बर्तन बेचे वाले अनुपम दास ने कहा कि सोमवार को ही उसने अपने कुछ कैटिरंग चलाने वाले ग्राहकों के कहने पर डढ़े लख रुपए के फैंस बर्तन मंगवाएं थे और शनिवार बर्तनों का आसनसोल के लिए ट्रांसपोर्ट में लगाना था। बीते दो दिनों से कार्टुनों में बर्तनों की पैकिंग की जा रही थी। इसके अलावा भी उनकी दुकान में करीब दो लाख का माल और रखा था, जो अब स्वाहा हो चुका है। अपनी तकदीर को कोसते हुए उन्होंने बताया कि हमारी कोई अस्थाई और पक्की दुकान नहीं है। इसलिए हमें बैंक से ऋण नहीं मिलता। हां, २०-२२ सालों से लगातार एक ही स्थान पर दुकान लगाने के कारण बाजार के कुछ ऐसे लोगों से पहचान हो गई है, जो व्याज में रुपए उधार देते हैं। उन्होंने कहा कि महाजन को आग से कोई मतलब नहीं है। मुझे यहीं चिंता सताएं जा रही है कि अगले महीने में उन्हें उधार के सवा लाख रुपए कैसे दे पाऊंगा।
कपड़ा की दुकान चलाने वाली चेताली राय ने बताया कि चैत्र सेल के मद्देनजर एक दिन पहले ही उन्होंने हावड़ा के मंगलाहाट के काफी खरीदारी की थी। करीब ७० हजार का माल बुधवार सुबह ही उनकी दुकान पर पहुंचा था और वृहस्पतिवार सुबह आते-आते सब खत्म हो गया। आंखों से टपकते आंशूं के बीच चेताली देवी ने कहा कि इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जिस कपड़ों को यह समझ कर खरीदा था कि इन्हें बेचकर रुपए में तब्दील करेंगे वे कपड़े राख में बदल गए।
लगभग इसी तरह का दुख प्रकट करते हुए मुंशीलाल (फल विक्रेता), सागर कुमार (सब्जी विक्रता), संजय जायसवाल (अंडा बेचने वाला), सुकुमारी माझी (मछली बेचने वाली), प्लास्टिक के सामानों के दुकान के मालिक (ओमप्रकाश साव), विद्युत चक्रवर्ती (तेल-घी की दुकान के मालिक), अनुपम दास (मिट्टी के बर्तन बेचने वाले) ने कहा कि चाहे दमकल विभाग हो या कोलकाता की पुलिस या फिर राज्य सरकार ही क्यों न हो। उनके नुकसान की भरपा करने वाला कोई नहीं है। इनलोगों ने कहा- हमने महानगर में हुई कई अग्निकांड की घटनाओं में उनलोगों ने देखा है कि पीड़ित लोगों के लिए ईमानदारी से कोई पहल नहीं होती। जब तक धुआं उठता है विभिन्न दलों के नेतागण बयानबाजी और बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं। जैसे ही धुआं बंद हुआ और मलवा उठा, ये नेता और सरकारी अधिकारी मदद करने की बजाए हम पर ही अंगूली उठाने लगते हैं। मसलन बाजार का रख-रखाव ठीक नहीं था। बिजली के तार तरीके से नहीं लगे थे। फायर लाइसेंस में त्रुटियां थी। ट्रेड लाइसेंस का नवीनकरण नहीं होगा। इन्हीं सब कानूनी दांवपोंच में उलझा कर जले पर मरहम लगाने का नहीं, बल्कि नमक छिड़कने का काम करते हैं।
23.3.12
कभी नहीं भूलेंगे यह काली रात
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