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18.3.12

बजट और आम आदमी

बजट और आम आदमी


आम भारतीय को बजट से क्या मिला ? इस प्रश्न का उत्तर एक लाइन में देना हो तो यह कह देना
चाहिए की आम बजट से नागरिको का जीना दूभर हो जाएगा.

ऐसा क्यों होगा ?


आम बजट में हर प्रोडक्ट पर कर बढ़ा दिया गया है.

सेवाकर के दायरे को विस्तृत कर दिया है और कर भी बढ़ा दिया है.

आम आदमी को महंगाई से लड़ने के लिए सब्सिडी का जो शस्त्र दिया गया था उसे धीरे -धीरे वापिस
लेने का इरादा जता दिया है.

पेट्रोल और पेट्रोलियम पदार्थ की दर बढ़नी तय है मगर इन पर कर कम करके सरकार आम आदमी
को राहत नहीं देना चाहती है.

मनरेगा जैसे अनुत्पादक खर्च को बढाते जा रहे हैं ताकि कर के पैसे की बंदरबांट होती रहे.

ब्याज दर का कम होना मुश्किल नजर आता है .

आम आदमी की आय और आयकर के मापदंड 


आम आदमी की आय जिसमे देश की ८०%जनसँख्या को सम्मिलित किया जा सकता है ,150000
वार्षिक आय से कम है .यह वर्ग आयकर मापदंड के अनुसार कर देने के घेरे में नहीं आता है .
इसका मतलब ८०% जनता को आयकर के अनुसार कोई भी लाभ प्राप्त नहीं कर पायी है मगर इस
वर्ग को ही सबसे ज्यादा नुकसान इस बजट में झेलना है .बढे हुए अप्रत्यक्ष कर की मार इसी वर्ग पर
पड़नी है.इस वर्ग को बढ़ी हुई महंगाई और बढ़ने वाली महंगाई का बोझ उठाना है .बढे हुए अप्रत्यक्ष
कर कुल मिलाकर उसके खर्च को १०% या इससे ज्यादा बढा देगा इसका मतलब यह हुआ की उसकी 
बचत को नुकसान होगा या बचत नहीं हो पा रही थी तो जिन्दगी जीने में कोरकसर करनी पड़ेगी .
इस वर्ग की खुशहाली में कमी आने का सीधा प्रभाव उद्योग धंधो पर पडेगा क्योंकि जिस देश की ८०%
जनता की खरीद शक्ति कम हो जायेगी तो वस्तुओं की मांग गिर जायेगी .जनता की क्रयशक्ति का
कम होने से  देश की GDP को प्रभावित करेगा.


देश की गरीब जनता को दी जाने सब्सिडी में कटौती का मतलब देश की जनता को ७५००० करोड़ 
रूपये का भार उठाना होगा ,देश के उत्पाद का सबसे बड़ा ग्राहक यही ८०% वर्ग है और सब्सिडी
घटाने पर इस वर्ग की हालत ही पतली होनी तय है .

मनरेगा सरकारी कागजों पर रोजगार पैदा  करने वाली स्कीम है इसके बजट को और ज्यादा बढा
दिया गया है जबकि वास्तव में मनरेगा में हो रही गड़बडिया जनता के कर के धन का दुरूपयोग है
यह खर्च अनुत्पादक है इसमें काम का कोई लक्ष्य नहीं है .एक ही गढ़े को कितना ,किसने कब खोदा
है या कच्ची सड़क पर कितनी मिटटी कब डाली गयी है इसका कोई लेखा जोखा रहने वाला नहीं है
कितने मजदुर वास्तव में कितना काम कर पाए हैं ?क्या उन मजदूरो के द्वारा किया गया काम गाँव
के विकास में सहायक हुआ ?इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है .देश के लोग देश के कितने कार्य दिवस
मनरेगा के कामों में खर्च कर रहे हैं और उन कार्य दिवसों से गाँवों का क्या विकास हुआ ,अगर देश के
लोग जो मनरेगा में अपने श्रम और कार्य के घंटों को खर्च कर रहे हैं वे लोग उसी श्रम को देश के
ओद्योगिक विकास में खर्च करता तो सकल घेरुलू उत्पाद बेहतर हो जाता .ग्रामीण युवा शक्ति को अपनी
सत्ता चलाने में हत्था बनाने की नीति,उन्हें अकुशल  श्रमिक बनाए रखने की नीति,उन्हें कम काम
करने देने की नीति उनके विकास में तो बाधक है ही परन्तु देश के विकास में भी बाधक है क्योंकि
यह अकुशल श्रमिक चन्द रूपये की आय गाँव में ही पाकर बड़े सपने देखने से वंचित रह रहा है या
यह श्रमिक वर्ग आलसी बन रहा है जिसके घातक परिणाम अभी से देश के हर उद्योग पर पड़ना
शुरू हो गया है .यह पैसा जो मनरेगा के तहत खर्च हो रहा है यह अनुत्पादक व्यय है जिससे महंगाई
बढती है.

बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार देश के विकास में अवरोध पैदा कर रहा है .सरकारी बाबुओ ,अफसरों ,नेताओ में
यदि इमानदारी से काम करने की नीति रहती है तो ये भी सताए जाते हैं ,भ्रष्ट व्यापारी और उद्योगपति
इनकी कर्तव्य निष्ठां को सहन नहीं कर पाता है और यह वर्ग यदि भ्रष्ट हो जाता है तो देश की जड़ों को
खोखली कर देता है .

सरकार को ईमानदार नागरिक पैदा करने की नीति रखनी चाहिए लेकिन वह तो टेक्स बढ़ा कर उन्हें
चोर बना रही है ,अनैतिक बना रही है ,यदि टेक्स कम होते तो सरकार को ज्यादा धन मिलता .

सरकारी खर्चो में इस बजट में कहीं भी कमी नहीं की गयी है .विधायको ,सांसदों या बड़े आफिसर वर्ग
भारी भरकम पगार लेते हैं और सुविधाएं भोगते हैं ,आज तक किसी भी मंत्री ने यह कहने का साहस नहीं
किया की देश पर कर्ज का बौझ बढ़ रहा है इसलिए हमारी सुविधाओं और वेतन में कमी की जाए .
ये लोग तो जनसेवक कहलाते हैं ,इनके हाथ में देश की बागडोर है .यदि यह वर्ग भी आम आदमी की
तरह कम खर्च में गुजारा कर सके तो इस वर्ग पर खर्च होने वाले धन को देश के विकास में खर्च किया
जाता तो पुरे देश की जनता में सकारात्मक प्रभाव पड़ता लेकिन यह वर्ग भी जनता से प्राप्त कर के
पैसे को बेफाम खर्च कर रहा है.

अब प्रश्न यही है की आम आदमी के लिए बजट के क्या मायने बचे हैं ? इस विषय पर 
आपकी टिप्पणी चाहूंगा.  
            
     

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