SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी: नैनो प्रौद्योगिकी ज्ञान का भंडार है और ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगी। इसके राष्ट्री...
30.4.12
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी: नैनो प्रौद्योगिकी ज्ञान का भंडार है और ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगी। इसके राष्ट्री...
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29.4.12
Aziz Qureshi ji governor bane
कांग्रेस की दमदारी के पुराने दिन लौटेंगे
सीहोर। कांग्रेस की स्थानीय राजनीति में यह साल नए संकेत लेकर आ रहा है, जिससे आम कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ गया है। सीहोर इछावर से 1970 में विधायक और मप्र शासन में मंत्री रहे साथ ही 1984 में सतना के सांसद रहे जनाब अजीज कुरैशी के उत्तराखंड राज्यपाल बनने से कांग्रेसजनों में खासा जोश है।
राजनीति के राज आमतौर पर लोगों को समझ नहीं आते, लेकिन कांग्रेस की राजनीति की बात आती है तो ऐसी उलझन और गुटबाजी की धुन नजर आती है, जिससे कई कार्यकर्ता भी परेशान हो जाते हैं, लेकिन अब यह साल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए लगातार सुखद संदेश ला रहा है, जिससे समीकरण बदलने का दौर लगातार जारी है।
क्या हैं हालात?
एक समय था जब जिले की राजनीति में कांग्रेस मतलब जीत का सबब माना जाता था, लेकिन बीते एक दशक में यहां की राजनीति में कुछ ऐसा घटा जिससे हासिए पर आ गई और कुछ प्रछन्न घातियों के कारण कमलछाप कांगे्रसियों की पूछ-परख बढ़ती चली गई, जिसके कारण पार्टी कार्यकर्ता दुखी हो गए और नतीजा भुगता। कांग्रेस पार्टी ने जो जिले में सिर्फ जयंती औ पुण्यतिथि मनाने तक सीमित रह गई। पार्टी ने भाजपा सरकार के खिलाफ एक भी बड़ा आंदोलन करने का साहस नहीं जुटाया, लेकिन इस साल जो कुछ हो रहा है, उससे पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित हैं और योग्य तथा दमदार नेताओं के साथ युवाओं पर जिम्मेदारी सौंपे जाने से आम कार्यकर्ता जहां उत्साहित हैं, वहीं ठेकेदारी और दलाल प्रथा में भरोसा रखने वाले विचलित नजर आ रहे हैं।
लोगों के अजीज हैं
जिले की राजनीति में अजीज कुरैशी ऐसे दमदार नेताओं में गिने जाते हैं, जो विकास के प्रतीक हैं और आम कार्यकर्ताओं की पहली पसंद। श्री कुरैशी ने अब तक जिले को दिया ही है, यही वजह है कि जैसे ही सूचना लोगों तक पहुंची कि अजीज कुरैशी को उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया है, पहले कांग्रेसजनों ने जगह-जगह मिठाईयां बांटी और बाद में भोपाल जाकर उनका स्वागत भी किया।
ऐसे बदले समीकरण
कांग्रेस ने जब कैलाश परमार को पुन: जिलाध्यक्ष और फिर राकेश राय को प्रदेश कांग्रेस में शामिल किया, तभी इस बात के संकेत मिले थे कि जिले की राजनीति में अब योग्यता और सेवा को सम्मान मिलेगा। इसी साल नपा सीहोर में दमदार पार्षद पवन राठौर को नेता प्रतिपक्ष घोषित किया गया, उसके बाद निगरानी समिति चेयरमेन पद पर पत्रकार महेंद्र मनकी ठाकुर की नियुक्ति हुई और जिला कांग्रेस की घोषित कार्यकारिणी ने खुलकर संकेत दे दिए कि कांग्रेस ने मिशन 2013 को लेक सिर्फ ओर सिर्फ योग्यता और कर्मठता के साथ जमीनी सक्रियता को ही केंद्र में रखा है। जिला कांग्रेस में कोषाध्यक्ष राजकुमार जायसवाल, महामंत्री धर्मेन्द्र यादव की नियुक्ति ने संकेत दिए हैं कि पार्टी ने युवा नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी है, जिससे कांग्रेस का युवा कार्ड पार्टी को मजबूती की ओर ले जाएगा।
भाजपा है ताकत
जिले में भाजपा के पास लोकसभा नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मार्कफेड अध्यक्ष रमाकांत भार्गव, निगम अध्यक्ष गुरुप्रसाद शर्मा, राजेंद्र सिंह, शिव चौबे, जिपं अध्यक्ष धर्मेन्द्र चौहान, उपाध्यक्ष मायाराम गौर, विधायक रमेश सक्सेना, केबिनेट मंत्री करणसिंह वर्मा जैसे दमदार नेता और बड़े पद पर आसीन नेता है, वहीं अब कई सालों के बाद ऐसा हुआ है, जब सीहोर की राजनीति में सीधा दखल रखने वाले नेता को बड़ा पद मिला है। गौरतलब है कि श्री कुरैशी का सालों तक यहां हस्तक्षेप रहा, लेकिन कभी किसी को गुटबाजी नजर नहीं आई, परंतु जब सुरेश पचौरी प्रदेशाध्यक्ष बने तो पचौरी समर्थकों ने खुलेआम श्री कुरैशी का पुतला जलाया था, अब प्रदेश की राजनीति में पचौरी गुट हासिए पर है। देखना है सुखद राजनीति का आगाज जो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा चुका है, ऐसे में कांग्रेस की दमदारी के दिन लौटने की संभावनाएं नजर आने लगी हैं।
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26.4.12
ना कोंसो अब हमें
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जातिवादी राजनीति का घिनौना चेहरा रमई राम-ब्रज की दुनिया
मित्रों, इसी बीच २० अप्रैल को जब मंत्री जी अपने विधानसभा क्षेत्र पहुंचे तो अनंदू के ग्रामीण उग्र हो उठे और मंत्री की गाड़ी को घेर लिया. मंत्री समर्थकों ने खुद को खुद ही घायल कर लिया और इल्ज़ाम अनंदू के ग्रामीणों पर लगा दिया. इस मामले में जरूर पुलिस बहुत ज्यादा सक्रिय है. बात भी मामूली नहीं है. माननीय पर हमला हुआ है, भारतीय लोकतंत्र के सम्मान और प्रतिष्ठा पर प्राणघातक आक्रमण हुआ है. आम लोगों की इतनी हिम्मत कि वे अपने द्वारा ही चुने गए मंत्री के अत्याचार का विरोध करने की हिमाकत करें.
मित्रों, यह कहने की बात नहीं है कि मानवता के प्रति ऐसा अपराध अगर किसी सवर्ण मंत्री ने किया होता हो वह सामंतवादी होता और उसका कृत्य सामंतवाद. परन्तु महादलित नेता रमई बाबू चूँकि जन्म से महादलित हैं इसलिए वे सामंतवादी तो हो ही नहीं सकते; परन्तु अगर वे सामंतवादी नहीं हैं तो हैं क्या? क्या वे वास्तव में दलितों के मसीहा हैं या हमदर्द हैं? क्या उनका कुकर्म उन्हें उस महान विशेषण के निकट भी सिद्ध करता है जिससे कभी बाबा साहेब को विभूषित किया गया था. या फिर क्या वे कर्म से आदमी हैं या आदमी साबित किए जा सकते हैं? गाय तो फिर भी पशु थी और इसलिए उसने पशुता दिखाई लेकिन क्या रमई उससे भी बड़े पशु नहीं साबित हो चुके हैं? ऐसे मंत्री अगर सरकार व शासन का सञ्चालन करेंगे तो उसमें फिर हुमेनटेरियन यानि मानवतावादी टच कहाँ से आएगा? कहते हैं कि मटके में पक रहे चावल की हकीकत जानने के लिए पूरी हांड़ी को उलटने की जरुरत नहीं होती बस एक चावल को निकालिए और समझ जाईए. ठीक उसी तरह अगर आपको यह जानना हो कि बिहार में सुशासन किस प्रकार काम कर रहा है तो अपने रमई बाबू के इस महान और मसीहाई कृत्य को देखकर खुद ही जान लीजिए. कितनी बड़ी बिडम्बना है कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के बीच सेवायात्रा पर निकले हुए हैं तो वहीं दूसरी और उनके चहेते मंत्री मानवता की ही शवयात्रा निकालने में पिले हुए हैं. मैं यह नहीं चाहता कि मंत्री को सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए और मामले को समाप्त समझ लिया जाए बल्कि पहले अनंदू पासवान के ईलाज की समुचित व्यवस्था सरकारी खर्चे पर की जाए और फिर बाद में मंत्री को निकालना हो तो निकाल बाहर किया जाए. वैसे ऐसे मंत्री को जो मानवता के नाम पर काला टीका हो; को मंत्रिमंडल में रखने का क्या फायदा? उस पर इन जनाब की तो दलित नेता और मसीहा वाली कलई भी उतर चुकी है. क्या पता अब माननीय खुद की विधानसभा सीट भी निकाल पाएंगे कि नहीं? अंत में आदतन मंत्रीजी रमई बाबू को निःशुल्क सीख कि चाहे उन्हें जितने पशु पालना हो पालें लेकिन कृपया पशुता नहीं पालें क्योंकि जब उनके भीतर मानवता ही नहीं बचेगी तो वे आदमी तो नहीं ही रह जाएँगे और शायद मंत्री भी नहीं.
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
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ठकुराई बचे या कबीला
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24.4.12
काजमी ने ऐसा क्या रिकार्ड कर लिया!
मुफ्ती शमूल काजमी |
हालांकि अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि काजमी ने जो रिकार्डिंग की अथवा गलती से हो गई, उसका मकसद मात्र याददाश्त के लिए रिकार्ड करना था अथवा सोची-समझी साजिश थी। टीम अन्ना बार-बार ये तो कहती रही कि काजमी जासूसी के लिए रिकार्डिंग कर रहे थे, मगर यह स्पष्ट नहीं किया कि पूरा माजरा क्या है? वे यह रिकार्डिंग करने के बाद उसे किसे सौंपने वाले थे? या फिर टीम अन्ना को यह संदेह मात्र था कि उन्होंने जो रिकार्डिंग की, उसका उपयोग वे उसे लीक करने के लिए करेंगे? या फिर टीम अन्ना का यह पक्का नियम है कि उसकी बैठकों की रिकार्डिंग किसी भी सूरत में नहीं होगी? और क्या टीम अन्ना इतनी फासिस्ट है कि छोटी सी गलती की सजा भी तुरंत दी जाती है?
अव्वल तो सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी पैरोकार और सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने को आमादा टीम अन्ना उस बैठक में ऐसा क्या कर रही थी, जो कि अति गोपनीय था, कि एक फाउंडर मेंबर की छुट्टी जैसी गंभीर नौबत आ गई। क्या पारदर्शिता का आदर्श उस पर लागू नहीं होता। क्या यह वही टीम नहीं है, जो सरकार से पहले दौर की बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग करने के लिए हल्ला मचाए हुई थी और खुद की बैठकों को इतना गोपनीय रखती है? उसकी यह गोपनीयता कितनी गंभीर है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि टीवी चैनल वाले मनीष सिसोदिया और शाजिया इल्मी से रिकार्डिंग दिखाने को कहते रहे, मगर उन्होंने रिकार्डिंग नहीं दिखाई। इसके दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि रिकार्डिंग में कुछ खास नहीं था, मगर चूंकि काजमी को निकालना था, इस कारण यह बहाना लिया गया। इसकी संभावना अधिक इस कारण हो सकती है क्योंकि इधर रिकार्डिंग की और उधर टीम अन्ना के अन्य सदस्यों ने तुरत-फुरत में उन्हें बाहर निकालने जैसा कड़ा निर्णय भी कर लिया। कहीं ऐसा तो नहीं काजमी की पहले से रेकी की जाती रही या फिर मतभेद पहले से चलते रहे और मौका मिलते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। काजमी ने बाहर आ कर जिस प्रकार आरोप लगाए हैं, उनसे तो यही लगता है कि विवाद पहले से चल रहा था व रिकार्डिंग वाली तात्कालिक घटना उनको निकाले जाने की बड़ी वजह नहीं। इसी से जुड़ा सवाल ये है कि काजमी ने क्या चंद लम्हों में ही गंभीर आरोप गढ़ लिए? यदि यह मान भी लिया जाए कि उन्होंने सफाई देने के चक्कर में तुरंत आरोप बना लिए, मगर इससे यह तो पुष्ट होता ही है कि उनके आरोपों से मिलता जुलता भीतर कुछ न कुछ होता रहता है। एक सवाल ये भी कि जो भी टीम के खिलाफ बोलता है, वह सबसे ज्यादा हमला अरविंद केजरीवाल पर ही क्यों करता है? क्या वाकई टीम अन्ना की बैठकों में खुद अन्ना तो मूकदर्शक की भांति बैठे रहते हैं और तानाशाही केजरीवाल की चलती है?
जहां तक रिकार्डिंग को जाहिर न करने का सवाल है, दूसरा मतलब ये है कि जरूर अंदर ऐसा कुछ हुआ, जिसे कि सार्वजनिक करना टीम अन्ना के लिए कोई बड़ी मुसीबत पैदा करने वाला था। यदि काजमी सरकार की ओर से जासूसी कर रहे थे तो वे मुख जुबानी भी सूचनाएं लीक कर सकते थे। फाउंडर मेंबर होने के नाते उनके पास कुछ रिकार्ड भी होगा, जिसे कि लीक कर सकते थे। रिकार्डिंग में ऐसा क्या था, जो कि बेहद महत्वपूर्ण था?
इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण रही अन्ना की चुप्पी। उन्होंने कुछ भी साफ साफ नहीं कहा। उनके सदस्य ही आगे आ कर बढ़-चढ़ कर बोलते रहे। शाजिया इल्मी तो अपनी फितरत के मुताबिक अपने से वरिष्ठ काजमी से बदतमीजी पर उतारु हो गईं। यदि अन्ना आम तौर पर मौनी बाबा रहते हों तो यह समझ में आता भी, मगर वे तो खुल कर बोलते ही रहते है। कई बार तो क्रीज से बाहर निकल पर चौके-छक्के जड़ देते हैं। कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारे जाने का ही मामला ले लीजिए। इतना बेहूदा बोले कि गले आ गया। ऊपर से नया गांधीवाद रचते हुए लंबी चौड़ी तकरीर और दे दी। ताजा प्रकरण में उनकी चुप्पी इस बात के भी संकेत देती है कि वे अपनी टीम में चल रही हलचलों से बेहद दुखी हैं। इस कारण काजमी के निकाले जाने पर कुछ बोल नहीं पाए। इस बात की ताकीद काजमी के बयान से भी होती है।
कुल मिला कर टीम अन्ना की जिस बाहरी पाकीजगी के कारण आम जनता ने सिर आंखों पर बैठा लिया, अपनी अंदरुनी नापाक हरकतों की वजह से विवादित होती जा रही है।
आखिर में मेरे मित्र ऐतेजाद का वह शेर, जो उन्होंने अपनी छोटी मगर सारगर्भित टिप्पणी के साथ लिखा है-
जो चुप रहेगी जुबान-ऐ-खंजर
लहू पुकारेगा आस्तीन का
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
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[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]-ब्लॉग पहेली-२३
ब्लॉग पहेली-२३
इस बार पहचाने उन पांच ब्लॉग का नाम जिस पर प्रस्तुत पोस्ट के अंश हैं ये -
१-धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई नाव साहिल तक वही लौटी है .
२-जरूर राधा ने मोहिनी डारी है तभी छवि तुम्हारी इतनी मतवाली है जो भी देखे मधुर छवि अपना आप
भुलाता है ये राधे की महिमा न्यारी है ...
३-जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों. देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे
हैंमगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता.
४-..कल उंगली से रेत पर तेरी तस्वीर बनाई मैंने... .....एक लहर आई अपने साथ ले गई.. ....
फिर क्या था हर तरफ, हर जगह बस तुम ही तुम..
५-*मित्रों!*** * सात जुलाई, 2009 को यह रचना लिखी थी! इस पर नामधारी ब्लॉगरों के तो मात्र 14 कमेंट आये थे मगर बेनामी लोगों के 137 कमेंट आये।*** * एक बार पुनः इसी रचना ज्यों की त्यों को प्रकाशित कर रहा ..
केवल ब्लॉग का नाम बताएं और विजेता बन जाएँ .
शुभकामनाओं के साथ
शिखा कौशिक
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]
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सचिन तेंदुलकर: HAPPY BIRTHDAY SACHIN
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कार्टून का कार्टून
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23.4.12
मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
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SHIKHA KAUSHIK
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Sachin -“Superman” of Cricket: HAPPY BIRTHDAY SACHIN
कुछ हल्का जरा हट्के
चलिए यह तो पुरानी बाते मैंने तो यह सब कुछ हटके लिखने के लिए लिखा है. आप जानते है यह शायद संयोग ही थी :
तारीख़ 21 मई 1997, चेन्नई में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच. भारत की कमान थी सचिन तेंदुलकर के हाथों में और पाकिस्तान के कप्तान थे रमीज़ राजा.
अनवर ने इसी मैच में 194 रनों की पारी खेली थी और ये संयोग ही है कि वो तेंदुलकर की गेंद पर गांगुली के हाथों कैच आउट हुए थे.
कल लगभग 13 साल बाद सचिन तेंदुलकर ने वो रिकॉर्ड बड़ी ही ख़ूबसूरती से तोड़ दिया.
इस तरह सचिन ने इस पारी के ज़रिए एक पारी में सर्वाधिक चौके जड़ने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया. उन्होंने 200 रनों में से 100 रन तो चौकों की मदद से ही बनाए.
कभी दहशत की वजह से सचिन तेंदुलकर को सपने में देखने वाले पूर्व क्रिकेटर शेन वॉर्न इस बात से ख़ुश थे कि सचिन की 200 रनों वाली पारी में उन्हें गेंदबाज़ी नहीं करनी थी .
तो ऑरिजनल लिटिल मास्टर गावस्कर ने यहां तक कह दिया कि वह सचिन के चरण स्पर्श करना चाहते हैं.
रिकार्ड के नए माउंट एवरेस्ट पर पहुंच कर सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट के रिकार्ड बुक के इतिहास को नए सिरे से लिख दिया है। -राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल
लेकिन हमारी नजर में तो सचिन सिर्फ सचिन ही हैं जो दिन ब दिन रन बनाते जा रहे है और जिस तरह से वह पिछले 8 महीनों से खेल रहे है लगता नहीं कि उनकी उम्र 36 की हैं. चकिए उम्मीद करते है कि आगे भी सचिन धमाका जारी रहेगा और जल्द ही यह दोहरे शतक का रिकार्ड कोई भारतीय खिलाडी जैसे सहवाग या युवराज तोड दे ,,,आखिर रिकार्ड बनते ही टुटने के लिए है . और आखिर में इस सचिन द सुपरमैन को मेरी तरफ से शुभकामनाएं और आप लोगों के लिए सवाल : 1. अब आगे और क्या चाहते है 5 फीट 5 इंच के सचिन से दुबारा दोहरा शतक या ..? 2. क्या लगता है कौन तोडेगा इस दोहरे शतक के रिकार्ड को ?
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राजनीति के विभीषण
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काज़मी और अंकुरित होता टीम अन्ना भगवा कनेक्शन
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13 साल की लड़की का माँ बनना
Posted by Nitin Sabrangi 0 comments
22.4.12
अन्ना और बाबा की मजबूर एकजुटता कब तक कायम रहेगी?
ऐसा नहीं है कि अन्ना और बाबा के एकजुट होने की बातें पहले नहीं हुई हों, मगर तब पूरी तरह से गैर राजनीतिक कहाने वाली टीम अन्ना को संघ व भाजपा की छाप लगे बाबा रामदेव के आंदोलन से परहेज करना पड़ रहा था। सच तो ये है कि दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किए गए आंदोलन में नंबर वन रहने की होड़ में लगे हुए थे। बाबा को योग बेच कर कमाए हुए धन और अपने भक्तों व राष्ट्रव्यापी संगठन का गुमान था तो अन्ना को महात्मा गांधी के समकक्ष प्रोजेक्ट कर दिए जाने व कुछ प्रखर बुद्धिजीवियों के साथ होने का दंभ था। राष्ट्रीय क्षितिज पर यकायक उभरे दोनों ही दिग्गजों को दुर्भाग्य से राष्ट्रीय स्तर का आंदोलन करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था। बावजूद इसके वे अकेले दम पर ही जीत हासिल करने के दंभ से भरे हुए थे। जहां तक बाबा का सवाल है, उन्हें लगता था कि उनके शिविरों में आने वाले उनके लाखों भक्त सरकार का तख्ता पलटने की ताकत रखते हैं, जबकि सच्चाई ये थी कि भीतर ही भीतर हिंदूवादी ताकतें अपने मकसद से उनका साथ दे रही थीं। खुद बाबा राजनीतिक आंदोलन के मामले में कोरे थे। यही वजह रही कि सरकार की चालों के आगे टिक नहीं पाए और स्त्री वेष में भागने की नौबत आ गई। उधर अन्ना को हालांकि महाराष्ट्र में कई दिग्गज मंत्रियों को घर बैठाने का अनुभव तो था, मगर राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार हाथ आजमाया। यह अन्ना का सौभाग्य ही रहा कि भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता ने उनको सिर माथे पर बैठाया। एक बारगी तो ऐसा लगा कि इस दूसरे गांधी की आंधी से वाकई दूसरी आजादी के दर्शन होंगे। मीडिया ने भी इतना चढ़ाया कि टीम अन्ना बौराने लगी। जहां तक कांग्रेसनीत सरकार का सवाल है तो, कोई भी सरकार हो, आंदोलन से निपटने में साम, दाम, दंड, भेद अपनाती है, उसने वही किया। सरकार ने अपना लोकपाल लोकसभा में पास करवा कर उसे राज्यसभा में फंसा दिया, उससे अन्ना आंदोलन की गाडी भी गेर में आ गई। इसे भले ही अन्ना को धोखा देना करार दिया जाए, मगर यह तो तय हो गया न कि अन्ना धोखा खा गए। मुंबई में फ्लाप शो के बाद तो टीम अन्ना को समझ में नहीं आ रहा था कि अब किया क्या जाए। हालांकि उसके लिए कुछ हद तक टीम अन्ना का बड़बोलापन भी जिम्मेदार है।
कुल मिला कर बाबा व अन्ना, दोनों को समझ में आ गया कि सरकार बहुत बड़ी चीज होती है और उसे परास्त करना इतना भी आसान नहीं है, जितना कि वे समझ रहे थे। चंद दिन के जन उभार के कारण दोनों भले ही दावा ये कर रहे थे कि वे देश की एक सौ बीस करोड़ जनता के प्रतिनिधि हैं, मगर उन्हें यह भी समझ में आ गया कि धरातल का सच कुछ और है। लब्बोलुआब दोनों यह साफ समझ में आ गया कि कुटिल बुद्धि से सरकार चलाने वालों से मुकाबला करना है तो एक मंच पर आना होगा। एक मंच पर आने की मजबूरी की और वजहें भी हैं। बाबा के पास भक्तों की ताकत व संगठनात्मक ढांचा तो है, मगर अब उनका चेहरा उतना पाक-साफ नहीं रहा, जिसके अकेले बूते पर जंग जीती जाए। उधर टीम अन्ना के पास अन्ना जैसा ब्रह्मास्त्र तो है, मगर संगठन नाम की कोई चीज नहीं। आपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी, एक नेत्रहीन व एक विकलांग की। एक देख नहीं सकता था, दूसरा चल नहीं सकता था। दोनों ही अपने-अपने बूते गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुुंच सकते थे, सो दोनों ने दोस्ती कर ली। विकलांग नेत्रहीन के कंधों पर सवार हो गया। फिर जैसा-जैसा विकलांग बताता गया, अंधा चलता गया। वे गन्तव्य तक पहुंच गए। लगभग वैसी ही दोस्ती है अन्ना व बाबा की, मगर वे पहुंचेंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। वजह ये है कि दोनों का मिजाज अलग-अलग है। अन्ना ठहरे भोले-भाले और बाबा चतुर-चालाक। आज भले ही वे साथ-साथ चलने का दावा कर रहे हैं, मगर उनके साथ जो लोग हैं, उनमें भी तालमेल होगा, यह कहना कठिन है। दरअसल पूत के पग पालने में ही दिखाई दे रहे हैं। शुरुआत ही विवाद के साथ हो रही है। टीम अन्ना बाबा के रुख से इस कारण नाराज है क्योंकि वह मानती है कि अन्ना को भरोसे में लिए बिना रामदेव आगे बढ़ रहे हैं। असल में रामदेव और अन्ना हजारे की गुडगांव में हुई मुलाकात के बाद प्रेस कान्फ्रेंस हुई। टीम अन्ना का ऐतराज है कि उसे इसके बारे में पहले से नहीं बताया गया था। अन्ना ने मुद्दों पर बात करने के लिए मुलाकात की, लेकिन बैठक के बाद उन्हें जबरदस्ती मीडिया के सामने लाया गया। हमें इस पर गहरी आपत्ति है। टीम अन्ना के एक सदस्य ने कहा कि रामदेव खुद को ही सबसे महत्वपूर्ण दिखाना चाहते हैं। टीम अन्ना में कुछ लोगों को रामदेव को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल करने पर भी आपत्ति है। इनका कहना है कि रामदेव पर पतंजलि योग पीठ समेत कई संस्थानों को लेकर कई आरोप लगे हैं। इसलिए ऐसा करना सही नहीं होगा।
केवल बाबा को लेकर ही नहीं, टीम में अन्य कई कारणों से अंदर भी अंतर्विरोध है। इसी के चलते ताजा घटनाक्रम में मुफ्ती शमीम काजमी को जासूसी करने के आरोप में टीम से निकाल दिया गया। काजमी ने टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल पर मुंबई का अनशन नाकाम करने सहित मनमानी करने के आरोप लगाए। बकौल काजमी टीम अन्ना के कुछ सदस्य हिमाचल प्रदेश से चुनाव लडऩा चाहते हैं, जिस कारण टीम में मतभेद है। काजमी ने यह भी कहा कि टीम अन्ना मुसलमानों के साथ भेदभाव करती है। शमीम काजमी ने कहा कि अन्ना हजारे का भी इस टीम के साथ अब दम घुट रहा है और वो भी बहुत जल्द ही इससे अलग हो जाएंगे।
कुल मिला कर एक ओर टीम अन्ना को घाट-घाट के पानी पिये हुओं में तालमेल बैठाना है तो दूसरी ओर बाबा रामदेव के साथ तालमेल बनाए रखना है, जो कि आसान काम नहीं है। एक बड़ी कठिनाई ये है कि बाबा के साथ हिंदूवादी ताकतें हैं, जब कि अन्ना के साथ वामपंथी विचारधारा के लोग ज्यादा हैं। इनके बीच का गठजोड़ कितना चलेगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
Posted by तेजवानी गिरधर 0 comments
एमपी नहीं मुख्यमंत्री कहो...
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पश्चिम बंगाल - कार्टून पर बवाल
शंकर जालान
बीते सप्ताह पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक कार्टून न केवल चर्चा का विषय बना, बल्कि इस कार्टून पर काफी बवाल भी मचा। यहां तक कि इंटरनेट पर कार्टून जारी करने वाले यादवपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले रसायन के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र और उनके पड़ोसी सुब्रत सेनगुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि अदालत से दोनों को जमानत मिल गई, लेकिन इस घटनाक्रम ने जहां लोगों को यह बता दिया कि सत्तासीन पार्टी तृणमूल कांग्रेस कुछ भी बोलने या लिखने वालों के ऐसा ही किया जाएगा। वहीं, तृणमूल कांग्रेस के सहयोगी पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ मुख्य विपक्षी दल माकपा के आलावा भाजपा ने कार्टून मसले पर प्रोफेसर व उनके पड़ोसी की गिरफ्तार का सत्ता का गलत उपयोग बताया।
आपको बताते चले की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, रेल मंत्री मुकुल राय और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी पर केंद्रित कार्टून इंटरनेट पर जारी किया गया था, जिसे तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता अपमानजनक कार्टून की संज्ञा दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो तृणमूल कांग्रेस की सह पर ही पुलिस ने प्रोफेसर और उनके पड़ोसी को गिरफ्तार किया। हालांकि कोलकाता पुलिस के उपायुक्त (दक्षिण) सुजय चंदा ने कहना है कि प्रोफेसर को कार्टून के लिए नहीं बल्कि कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों के बारे में अपमानजनक बातें इंटरनेट पर डालने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। है। शुक्रवार ने जब उनसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों का नाम जानना चाहा, तो उन्होंने नामों का खुलासा करने से इंकार कर दिया।
इस बारे में जानकारों लोगों का कहना है कि कार्टून में इस तरह का कुछ नहीं था, जिससे तृणमूल कांग्रेस को अपमान बोध हो और प्रोफेसर को गिरफ्तार करना पड़े। इन लोगों ने कहा कि तमाम अखबारों में कार्टून छपते हैं, कुछ अखबारों में तो कार्टून के एक विशेष स्थान तय होता है। कार्टून बनाने वाले कई बार यह दिखाने की कोशिश करते हैं, कि इनदिनों देश, दुनिया, समाज, फिल्म या फिर राजनीति में क्या हो रहा है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कार्टून जिस पर बना हो उसे नागवार लगता हो, लेकिन इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता कि कार्टून देखने व पढ़ने वाले कार्टूस्टि की सोच की तारीफ जरूर करते हैं। ध्यान नहीं आता कि कार्टून को लेकर किसी देश, समाज, पार्टी, नेता या फिर व्यक्ति ने इतना बवाल मचाया हो और कार्टून बनाने या जारी करते वाले को इसकी कीमत गिरफ्तार होकर चुकानी पड़ी हो।
पुलिस का कहना है कि प्रोफेसर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और सूचना तकनीक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन्हें साइबर क्राइम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। तृणमूल कांग्रेस के समर्थक भले ही पुलिस कार्रवाई को जायज ठहरा रहे हो और यह कहते फिर रहे हो कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और पार्टी के अन्य नेताओं से संबंधित अपमानजनक कार्टून बनाने तृणमूल सरकार की नीतियों का मखौल उड़ाने वाले का भविष्य में भी यही हश्र होगा। लेकिन उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने ममता के इस कदम की निंदा की है। कांग्रेस सांसद मौसम बेनजीर नूर का कहना है कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव राहुल सिन्हा ने सरकार की इस कार्रवाई को सत्ता का दुरुपयोग करार दिया है। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र इस वाकिए को अत्यंत हास्यास्पद बताया। उन्होंने कहा कि इस घटना से साफ हो जाता है कि सहनशीलता का अभाव है। भापका के राज्य सचिन मंजू कुमार मजुमदार ने कहा कि राज्य सरकार लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन कर रही है।
कांग्रेस, भाजपा, माकपा और भाकपा के नेताओं के बयान को गैर जरूरी बताते हुए राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हाकिम कहते हैं कि इस तरह की किसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। परिवहन मंत्री मदन मित्र कहते हैं कि प्रोफेसर ने जो किया वह शिक्षक की गरिमा के खिलाफ है। श्रम मंत्री पूर्णेंदु बसु कहना है कि यह ममता बनर्जी का अपमान कर उनकी छवि पर धूमिल करने का प्रयास किया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि माकपा मेरी छवि खराब करने के लिए तरह-तरह के मुद्दे उछाल रही है। माकपा के नेता इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे मुझे फंसाया जा सके और बदनाम किया जा सके।
वहीं, तृणमूल के बागी सांसद कबीर सुमन ने कहा कि उन्होंने कार्टून देखा है, लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह किस प्रकार साइबर अपराध है। यह हास्य व्यंग्य के रूप में बनाया गया है। अगर आज प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया है तो कौन जानता है कल हमें भी गिरफ्तार किया जा सकता है। सुमन कहते हैं कि मुझे भी वह कार्टून ई-मेल से मिला है। लेकिन उसमें वैसी कोई अपमानजनक बात नजर नहीं आती। ममता के करीबी समझे जाने वाले जाने-माने शिक्षाविद् सुनंद सान्याल ने भी इस घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि राज्य के लोगों ने इस बदलाव की उम्मीद नहीं की थी। अभिनेता कौशिक सेन ने सवाल किया कि कार्टून बनाने वाले को गिरफ्तार करना कहां का कानून है? यह प्रवृत्ति खतरनाक है। यही सिलसिला जारी रहा तो बाद में हमारे नाटकों पर भी पाबंदी लगा दी जाएगी और घरों पर हमले किए जाएंगे।
दूसरी ओर, प्रोफेसर की गिरफ्तारी के खिलाफ में यादवपुर व प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में छात्रों व शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया और जुलूस निकाला। विश्वविद्यालय के दूसरे प्रोफेसरों का मानना है कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करना कोई जुर्म नहीं हैं और इसके लिए किसी को गिरफ्तार करना अनुचित है। यादवपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन के अध्यक्ष पार्थ प्रतीम विश्वास ने बताया कि आए दिन अकसर पत्र-पत्रिकाओं में सरकार व मंत्रियों के खिलाफ व्यंगात्मक कोलॉज व लेख प्रकाशित किए जाते हैं पर उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती तो फिर इस मामले में प्रोफेसर को किस वजह से गिरफ्तार किया गया। इस घटना कि निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि देश में हर व्यक्ति को अपनी बातों को समाज के समक्ष रखने की आजादी है। उन्होंने कहा कि एक तरह लोगों का वाहवाही लूटने के लिए ममता बनर्जी बीमार काटूनिस्ट को देखने अस्पताल जाती हैं और दूसरे ओर कार्टून बनाने वाले की गिरफ्तारी को जायज बता रही हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर राज्यपाल एमके नारायणन से मिलेगा।
मालूम हो कि प्रोफेसर का इंटरनेट पर जारी कार्टून सत्यजीत रे की फिल्म सोनार केल्ला पर आधारित है। उसमेंं कथित तौर पर पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को हटाने के लिए ममता बनर्जी और मुकुल राय को आपस में बातचीत करते हुए दिखाया गया है। ध्यान रहे कि रेल बजट में किराया बढ़ाने के बाद ममता और पार्टी के दबाव में त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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