हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली की वजह से कांग्रेस विधायकों में बढ़ते असंतोष के चलते कांग्रेस में विकल्पों की अटकलबाजियां शुरू हो गई हैं। हालांकि फिलहाल उनके स्थान पर किसी और को कमान सौंपे जाने की संभावना कम ही नजर आती है, मगर अगला चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, इस पर तनिक संदेह किया जा रहा है। हालांकि स्वयं गहलोत अपने मुख्यमंत्रित्व काल के तीन साल पूरे होने पर कह चुके हैं कि अगली सरकार कांग्रेस की ही होगी और मुख्यमंत्री भी वे ही होंगे, मगर उनके इस कथन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान ने तुरंत नकार दिया कि विधायक ही तय करेंगे कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
दरअसल कांग्रेस हाईकमान को उत्तरप्रदेश में मिली करारी हार के बार राजस्थान की चिंता सताने लगी है। यद्यपि यहां भाजपा अंदरुनी कलह से ग्रस्त है, मगर आज भी भाजपा के पास वसुंधरा राजे जैसा आकर्षक चेहरा मौजूद है और संभावना यही है कि उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ेगी। यूं कभी गहलोत को भी राजनीति का जादूगर माना जाता था। उसकी वजह ये थी कि प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने पूरे राजस्थान में कार्यकर्ताओं से काफी नजदीकी हासिल कर ली थी। उसी का परिणाम रहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया। उनका पिछला कार्यकाल शानदार रहा, मगर अकेले कर्मचारियों को नाराज कर उन्होंने सत्ता खो दी। हाईकमान ने उन्हें दुबारा मौका दिया, मगर इस बार उनकी चमक पहले जैसी नहीं रही है। उनका यह दूसरा कार्यकाल पिछली बार की तुलना में अच्छा नहीं माना जा रहा। हालांकि उन्होंने लोक कल्याणकारी योजनाएं तो लागू कीं, मगर उसे भुनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। वे न तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के हमलों का सामना करने में सफल रहे हैं और न ही कांग्रेसियों को एकजुट रखने में कामयाब हो पाए हैं। कांग्रेस में भी उनकी विरोधी लाबी धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही है। हाल ही कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों ने एक बार फिर से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए अपनी गतिविधियां तेज कर दीं। 6 असंतुष्ट विधायकों ने कैबिनेट मंत्री अशोक बैरवा के घर बैठक कर खुलकर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। विधायक दौलत राज नायक ने कहा कि 18 एससी विधायक मौजूदा व्यवस्था से नाराज हैं और वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। बैरवा ने भी माना कि 25 से 30 विधायक समस्याओं को लेकर नाराजगी दर्ज करा चुके हैं, जो कि बहुत बड़ा मामला है। इससे पहले भी असंतुष्ट विधायकों ने पिछले दिनों जिस तरह दिल्ली दरबार में जा कर खुले आम शिकायत की, वह बगावत का ही संकेत था।
बहरहाल, इसी से जुड़ी हुई चर्चा ये हो रही है कि इन हालातों के मद्देनजर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी किसी नए चेहरे पर दाव खेलने पर विचार कर सकते हैं। उसमें सबसे ऊपर नाम है अपने जमाने में गुर्जरों के जाने-माने नेता रहे स्वर्गीय राजेश पायलट के पुत्र केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का, जो कि उनके मित्र भी हैं। वे गुर्जर समाज के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, मगर चूंकि जाट समाज लंबे समय से मुख्यमंत्री पद के लिए संघर्ष कर रहा है, इस लिए उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी जमाने में जाट पूरी तरह से कांग्रेस के साथ थे, मगर अब हालात बदल गए हैं। भंवरी मामले में जेल में बंद पूर्व जनस्वास्थ्य मंत्री महिपाल मदेरणा के प्रकरण सहित अन्य कारणों से भी जाटों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढ़ी हुई है। इस कारण उसमें भी चेहरे तलाशे जा रहे हैं। परसराम मदेरणा व रामनिवास मिर्धा सरीखे दिग्गजों के बाद यूं हरेन्द्र मिर्धा उभर कर आए, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में हार जाने के कारण उनकी चमक कम हो गई है। इसी कड़ी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं, मगर उनसे भी ज्यादा चौंकाने वाला नाम उछला है जाट समाज के देवता समाज दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की पोती नागौर सांसद ज्योति मिर्धा का। पता नहीं इस नए नाम के प्रति कांग्रेस हाईकमान कितना गंभीर है या कहीं योजनाबद्ध तरीके से उनका नाम तो नहीं उछाला जा रहा, मगर नाम चर्चा में आया तो है। तर्क ये दिया जा रहा है कि एक तो वे जाट समाज से हैं, नाथू बाबा की पोती हैं और दूसरा ये कि वसुंधरा के समान आकर्षक चेहरे के कारण उनका मुकाबला कर सकती हैं। वे युवा, खूबसूरत, माडर्न, तेज-तर्रार होने के साथ राजस्थानी, हिंदी व अंग्रेजी पर समान अधिकार रखती हैं, इस कारण उनका व्यक्तित्व करिश्माई आंका जा रहा है। हालांकि उनका नाम एकाएक गले नहीं उतरता, मगर राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता।
-तेजवानी गिरधर
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