कैसे होगी नैया पार ?
उत्तराखंड के
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा...जिनका नाम ही विजय है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री की
दौड़ में बहुगुणा ने विजय भी पायी...उसके बाद भले ही जमकर बवाल मचा...लेकिन समझौते
की टेबल पर सब कुछ मैनेज कर लिया गया। अब भले ही अपनों के लिए बहुगुणा के पास कुछ
नहीं बचा...लेकिन खुद कुर्सी पाना भी कम बड़ा काम नहीं था...वो भी ऐसे समय में जब
इस कुर्सी के लिए दावेदार उनसे भी कद्दावर थे। बहुगुणा कुर्सी तो पा गए...लेकिन एक
विजय अभी बाकी है...जिसने बहुगुणा की नींद उड़ा रखी है। जी हां हम बात कर रहे हैं उपचुनाव की...जिसका
सामना करना बहुगुणा के लिए अभी बाकी है...यानि की असली अग्निपरीक्षा से तो बहुगुणा
को गुजरना अभी बाकी है। हालांकि बहुगुणा के सामने सबसे बड़ा सवाल फिलहाल ये है कि
वो इस अग्निपरीक्षा पर कहां पर विजय प्राप्त करना चाहेंगे...हालांकि बहुगुणा खुद
ही इस बात को कह चुके हैं कि 15 मई को ये इंतजार भी खत्म हो जाएगा...यानि बहुगुणा
15 मई को साफ कर देंगे कि किस सीट से वे विधायकी के लिए ताल ठोकेंगे। बहुगुणा के लिए ये फैसला लेना आसान काम नहीं है...क्योंकि प्रदेश
कांग्रेस में जैसी परिस्थिति दिखाई दे रही हैं...उसके हिसाब से तो बहुगुणा को किसी
विधायक से सीट खाली कराना ही भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। वो भी ऐसी सीट जहां से
बहुगुणा को सौ प्रतिशत अपनी विजय की उम्मीद हो। अंदरखाने कांग्रेस में इसको लेकर
जोड़तोड़ चल भी रही है...लेकिन इसे सार्वजनिक चुनाव लड़ेने से ऐन पहले किया
जाएगा...ताकि विरोधियों को सक्रिय होने का वक्त न मिले। बहुगुणा के लिए बड़ी
मुश्किल ये भी है कि उनके सामने सबसे बड़े विरोधी पार्टी के अंदर ही हैं...और उनके
आसपास ही हैं...और ये वही लोग हैं...जिन्हें दौड़ में बाहर कर बहुगुणा ने सीएम की
कुर्सी हथिया ली थी। वो लोग भले ही सब कुछ ठीक होने की भले ही बात कर रहे
हों...लेकिन उनके समर्थक कोई मौका नहीं छोड़ रहे है बहुगुणा की नींद उड़ाने का।
बहुगुणा भी ये चीज अच्छी तरह जानते हैं लिहाजा वे अभी भी डैमेज कंट्रोल की मुहिम
जारी रखे हुए हैं। अब विरोधी खेमे के विधायकों को लाल बत्ती देने का मामला हो या
फिर उनकी मांगों पर दिल खोलकर घोषणाएं करने का...बहुगुणा कहीं नहीं चूक रहे हैं।
बहुगुणा ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि डैमेज कंट्रोल में कहीं कोई कसर बाकी रह
गयी तो इसका सीधा असर उनकी उस अग्निपरीक्षा पर पड़ेगा...जिससे होकर उन्हें अभी
गुजरना है...और बहुगुणा को ये डर भी है कि दस जनपथ की कृपा से आयी ये कुर्सी कहीं
छिटक न जाए। राजनीति में कुर्सी बड़ी चीज है...और जब राजनीतिक हालात उत्तराखंड के
जैसे हों...तो कुर्सी का खेल बड़ा ही रोचक हो जाता है...कांग्रेस में चले कुर्सी
के खेल में पहली बाजी तो विजय बहुगुणा ने मारी...लेकिन अब बहुगुणा खुद इस खेल के
चक्रव्यूह में इस तरह फंस गए हैं कि उनके लिए इसे पार पाना आसान नहीं दिखाई दे रहा
है।
दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmal.com
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