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13.5.12

फिर तृणमूल के सामने याचक की मुद्रा में कांग्रेस







शंकर जालान





कोलकाता। यह सही है कि 2009 से कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में तृणमूल उसके (कांग्रेस) साथ है और 2011 में पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भारी जीत अर्जित कर सत्तासीन होने वाली तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस है। कहने को तो कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस में गठबंधन है, लेकिन व्यवहार में देखा जाए तो दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने या दबाने से कभी नहीं चूकते। लगभग हर मुद्दे पर कांग्रेस को ही तृणमूल कांग्रेस के सामने झुकना पड़ा है। ममता बनर्जी भले ही इसे अपनी जीत मानती हो, लेकिन राजनीति के पंडितों का कहना है कि ममता ने गठबंधन धर्म को ताक पर रख दिया है और अपनी मनमानी कर रही है। यह बात राजनीति के जानकारों के समझ में नहीं आ रही है कि आखिर कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व ममता की हर बात मान क्यों रहा है?
करीब तीन साल केंद्र में और बीते साढ़े ग्यारह महीनों ने पश्चिम बंगाल में ममता ने कांग्रेस से जो चाहा वहीं करवाया तो है ही मजे की बात यह है कि कई मुद्दों पर कांग्रेस को आड़े हाथों भी लिया है। अबकी बार भी दो बातों को लेकर कांग्रेस ममता के दरवाजे पर याचिका की मुद्रा में खड़ी दिख रही है। पहली बात राष्ट्रपति चुनाव की और दूसरी तिस्ता जल बंटवारे की।
कांग्रेस ने तिस्ता जल बंटवारे पर भारत-बांग्लादेश के बीच संधि में ऐन वक्त पर रोड़ा लगाने वालीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को मनाने की कवायद नए सिरे से शुरू कर दी है। सूत्रों के मुताबिक आगामी कुछ दिनों में प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अधिकारी तीस्ता जल के बंटवारे के फार्मूले में कुछ बदलाव की पेशकश के साथ ममता से मुलाकात कर सकते हैं। तीस्ता पर गतिरोध को तोड़ने के लिए बांग्लादेश और भारत के विदेश मंत्रियों की एक समिति भी बनाई है, जिसकी पहली बैठक नई दिल्ली में होने वाली है। तीस्ता पर किसी समझौते पर पहुंचने की ढाका की बेसब्री इसी बात से समझी जा सकती है कि निजी दौरे पर कोलकाता आईं बांग्लादेश की विदेश मंत्री दीपू मोनी इस मामले पर राय जाहिर करने से खुद को रोक न सकीं। उन्होंने अपने कोलकाता दौरे के दौरान पत्रकारों से कहा कि तीस्ता जल समझौते का महत्व सामरिक न होकर सामाजिक है। उनके शब्दों में दोंनों मुल्कों के लोग भावनात्मक तौर पर इससे जुड़े हैं, लिहाजा भारत सरकार को समय रहते इस पर निर्णय ले लेना चाहिए। हालांकि इस सिलसिले में उनकी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात नहीं हो पाई थी।
दरअसल, भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों का मानना है कि दोनों देशों को तीस्ता का पानी आधा-आधा बांट लेना चाहिए। दस्तखत के लिए पेंडिंग पड़े संधि के ड्राफ्ट में भी यही बात है, लेकिन ममता तीस्ता के पानी का सिर्फ 25 फीसद बांग्लादेश को देना चाहती हैं।
उन्हें (ममता को) मनाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फरवरी में विदेश सचिव रंजन मथाई को कोलकाता भेजा था। दोनों की मुलाकात भी हुई, लेकिन ममता नहीं मानी। सूत्रोंं ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारी के मई के अंतिम सप्ताह में फिर से ममता बनर्जी से बात करेंगे। ताकि उन्हें तीस्ता जल बंटवारे में 60-40 के अनुपात पर मनाया जा सके। अगर ऐसा हुआ तो भारत तीस्ता का 40 फीसद पानी बांग्लादेश को देगा। हालांकि, ममता इस पर मानेंगी, इसको लेकर संशय है। पश्चिम बंगाल सचिवालय सूत्रों का कहना है कि ममता 70-30 का अनुपात चाहती हैं, लेकिन बांग्लादेश को यह मंजूर नहीं है। दोनों के बीच किसी समझौते पर पहुंचना केंद्र के लिए टेढ़ी खीर है।
दूसरी ओर देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा? यह अकेले कांग्रेस नहीं तय कर सकती, क्योंकि आंकड़ों के लिहाज से उसे घटक दलों के साथ-साथ कुछ अन्य दलों की रजामंदी भी चाहिए। इसलिए तीस्ता मुद्दे पर फिलहाल कांग्रेस ममता से पंगा लेने की स्थिति में नहीं दिखती, क्योंकि अपनी पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति भवन भेजना कांग्रेस की पहली प्राथमिकता होगी और इस बात का पूरा-पूरा लाभ उठाने से ममता बनर्जी चूकने वाली नहीं दिखती।

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