Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

11.6.12

धृतराष्ट्र तो राजा थे ,प्रधानमंत्री कैसे हो सकते हैं !


धृतराष्ट्र तो राजा थे ,प्रधानमंत्री कैसे हो सकते हैं !!

किरण बेदी ने जब कहा कि प्रधानमंत्री हैं धृतराष्ट्र तो हम चकर खा गये ,क्योंकि हमें अपने ज्ञान
पर पक्का भरोसा था कि धृतराष्ट्र राजा थे वे कभी प्रधानमन्त्री रहे ही नहीं .हमने अपने ज्ञान को
दुरस्त करने के लिये महाभारत खोल ली और पढ़ा कि धृतराष्ट्र राजा थे,आँखों से अंधे थे .पुत्रों के
मौह में रचे-बसे थे ,पुत्र के राजतिलक के लिए वह सब कुछ किया जो नीति के चेप्टर में नहीं था.

        मगर क्या किरण बेदी ये सब नहीं जानती थी ,क्या उनसे कुछ भूल हो गयी .कौरव वंश के
समय धृतराष्ट्र राजा थे उन्हें कोई रिमोट से कंट्रोल नहीं करता था ,मनमर्जी के मालिक थे मगर
प्रधानमंत्री तो मनमर्जी कैसे करे ?आखिर (लोकतंत्र के प्रति) निष्ठावान हैं, नहीं है क्या?

             धृतराष्ट्र तो अंधे थे बिलकुल दिखाई नहीं देता था उनके पास कोई सेटेलाईट भी नहीं था
  मगर प्रधानमन्त्री तो अंधे हैं ही नहीं शायद यह हो सकता है कि वे वही देखते हैं जो सेटेलाईट
  से दिखाया जाता है या फिर जानबुझ कर वो नहीं देखते जिसे देखकर कुछ करना पड़ जाए.

       धृतराष्ट्र को पुत्र मौह था,उनकी ललक थी कि पुत्र गद्दी संभाल ले मगर प्रधानमन्त्री तो ऐसे
लोभ में नहीं हैं वो तो सज्जन और परोपकारी पुरुष हैं जिसकी गद्दी है उसे संभालने को दे देंगे.
इसमें शंका -कुशंका करने का कोई स्थान नहीं है .है क्या?

    धृतराष्ट्र की छाप जैसा वह थे वैसी ही थी ,उन्होंने अपनी हसरतों को कभी छिपाया नहीं .ना
उन्होंने पुत्र मौह को छिपाया और ना ही कभी अपनी संकीर्ण छवि को मगर प्रधानमन्त्री के
जहाज के निचे अगर भ्रष्ट सुनामी भी आ जाये तो भी वे मजबूत ईमानदार छवि रखते हैं .ये
ठीक है कि वे छोटे लोगो के लिए कुछ नहीं करते मगर मजबूत लोगो के लिए तो भले काम
करते ही हैं.

     धृतराष्ट्र राजा थे इसलिए उन्हें अपने कुकर्मो का भान था और जानबूझ कर किये जा रहे थे
 मगर प्रधानमन्त्री तो सरल हैं इसलिए खुद के अंत:करण जैसा ही सबका अंत:करण देखते हैं.
उनके निचे गपले  घोटालो के बवंडर भले ही उड़ रहे हो मगर वो उन बवंडरो से दूर सहज -शांत
स्वरूप हैं।

     प्रधानमंत्री सहज, सरल,ईमानदार,ज्ञानी,विद्धवान हैं उनके लिये  ऐसा विशेषण असहज है
बेदीजी, आप उन्हें धृतराष्ट्र ना कह कर कुछ और कह दीजिये ना, प्लीज ! नहीं तो धृतराष्ट्र को
बुरा लगेगा .              

2 comments:

Adarsh Bhalla said...

वाह क्या खूब लिखा है, ऐसे ही अन्धो की ऑंखें खोलते रहिये,
अन्ना जी से भी कहिये, की अपनी आखें खोल कर देखें की उनकी टीम में
कितने ईमानदार हैं. गब्बर का डायलाग है, अन्ना एक ओर बेईमान पांच

Unknown said...

धन्यवाद आदर्श जी .आपने आलेख के व्यंग को पकड़ा है.आभार .