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28.4.13

अन्ना  जी ! सादर प्रणाम । आपका पत्र पढ़ा । अच्छा लगा । कोई आप जैसा तो है जिसका धैर्य अभी तक नहीं टूटा है । यह जरूरी भी है । हम जैसे साधारण लोग तो बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं । आप के धैर्य की प्रशंसा करता हूँ । आपने उस राहुल गाँधी को पत्र लिखा है जो आपके आन्दोलन में ग्यारह दिन बाद अपने बिल से कुछ बोलने के लिए निकले थे । उन्हें देख कर मुझे लगा था कि  कहीं वे फ़्रांस की उस राजकुमारी की तरह कुछ न कह बैठें जिसने जनता को रोटी न मिलने पर कहा था कि  यदि जनता को रोटी नहीं मिल रही तो वह केक क्यों नहीं खा लेती । खैर , वे आये थे और लोकपाल को संवैधानिक संस्था बनाने की बात कह कर चुप हो गए और फिर संसद में अपना भाषण ऐसे पढ़ गए थे मानो कोई क्रान्ति करने जा रहे हों । यू  पी ए  की यह सरकार बहुत कुछ कर जाती यदि राहुल गाँधी को कुछ करना होता । सच तो यह है कि  अभी तक राहुल गाँधी को वह समझ ही नहीं है जिसकी उम्मीद आप उनसे लगाए बैठे हैं ।
जब आपका आन्दोलन हुआ । लोग आये । संसद ने सर नवाकर आपको मनाया । हमने नया स्वतंत्रता दिवस मनाया । और लोग भी शपथ खाते दिखे कि वे कभी बेईमानी नहीं करेंगे । धीरे धीरे आपके आन्दोलन की आग किस तरह से ठंडी पड़ी आप भी जानते हैं । क्या जिन्होंने शपथ ली उनके ही जीवन में कुछ परिवर्तन आया । अगर आया तो सिर्फ इतना कि  हाँ लोग कह देते हैं कि  अन्ना  जी कहते तो सही हैं । लेकिन मैं बताऊँ ? इनमे से अगर दस प्रतिशत भी सुधर जाते तो भी देश का बहुत कुछ भला हो जाता । लेकिन कुछ नहीं हुआ ।
लोग तो एक दुसरे को देखकर चले आते हैं । कैंडल जलाते हैं । अपने आस पास जताते हैं कि  वे भी बुद्धिजीवी हैं । intellectual  हैं । यह एक fashion  हो  गया है । इस देश में चलो अमेरिका लिखी हुई टी शर्ट पहने व्यक्ति चुपचाप अपनी कार से घर से निकलता है और कहीं भी अपने पोलिथीन का कूड़ा फेंक आता हैं ।
बलात्कार की शिकार एक लड़की जब  दिल्ली की सड़कों पर पुल पर पड़ी थी और लोग उसको देखकर आगे निकल रहे थे मानो वह कोई मुसीबत हो और उसने लिखकर बताया था कि  उसके साथ बलात्कार हुआ है तब भी लोग नहीं चेते और चलते रहे । आधे घंटे बाद किसी भले मानस ने उसकी मदद की शायद उसके प्रेरक आप रहे होंगे । यही समाज कैंडल लेकर निकलने में देर नहीं करता । उनमे कितने ही कैंडल लेकर निकले होंगे । लेकिन जब वक्त आता है तो एक सूक्ति है - सर्वः  स्वार्थं समीहते यानि सभी अपना स्वार्थ देखते हैं । और दूसरी सूक्ति भी है - स्वर्थाभ्रन्शो ही मूर्खता । कोई परोपकारी रहा होगा जिसने क्रमश ये सूक्तियां लिखी होंगी । अपने जीवन का सार । जब परोपकार करते करते थक गया होगा । इसी समाज से नेता निकलते हैं और जब इस स्टार पर संवेदना का यह हाल है तो वहाँ क्या होगा , सोच सकते है । यह समाज कम , भीड़ ज्यादा है जो चली तो आती है लेकिन बहुत जल्दी सब कुछ भूल भी जाती है । रामदेव बाबा पर अत्याचार किसे नहीं पता है । सब जानते हैं । लेकिन ? सब भूल जायेंगे । जब १ अक्टूबर से सीधे अकाउंट में आधार पर पैसा मिलेगा तो सब भूल जायेंगे । सरकार के पास तो घूस देने के लिए पैसा है । टेबलेट भी है । मैं क्या वादा करू । मेरे पास पैसे नहीं हैं । मैं जनता को या भीड़ को क्या समझाऊँ । उसे बिजली पानी तो चाहिए लेकिन यदि कैश मिल जाए तो सौ गुनाह माफ़ । आप लोकपाल की लड़ाई लड़ रहे हैं और सरकार घूस बाँट रही है । चुनाव आयोग को समझ नहीं आता की मेरे और सरकार के अधिकार चुनाव लड़ने के सन्दर्भ में एक जैसे क्यों नहीं होने चाहिए । पर चलिए , समरथ को नहीं दोष  गुसाईं । आप लगे रहें । हम आपके साथ हैं । मन से , कर्म से , वचन से । जब महाभारत में सभी कौरव मर चुके थे तब संजय ने dhritrashtra को कहा - राजन ! आप चिंता न करें । शल्य पांडवों को जीत लेंगे । यदि वहाँ इतनी उम्मीद कौरवों को थी तो यहाँ पांडवों को तो यह उम्मीद होनी ही चाहिए । क्यों /
सधन्यवाद ,

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