देश में विकास उस ढलते सूरज की तरह है...जो कुछ ही देर में ढल जाता है, लेकिन एज़ वी लव सनसेट....तो हम उसकी तारीफें ज़रूर करते रहते हैं....मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के विकास की तारीफें मीडिया में बहुत सुनी हैं...ढेरों बिखरी पढ़ी हैं यहाँ, वहां...लेकिन ज़मीनी हकीक़त पे शायद किसी ने ध्यान नहीं दिया. अगर सच में मध्यप्रदेश में विकास हुआ है तो विकास का पर्याय 'मिथ्या' ही कहा जा सकता है. इस विकास की हकीक़त गाँव में रहने वाली वो जनता बता सकती है जिसके घर ४ घंटे बिजली पहुचती है या वो मजदूर जिन्हें नरेगा में काम करने का पैसा नसीब नहीं हुआ....या शायद IPS सिंह की पत्नी जिन्हें कुछ खनन माफिययों ने (बीजेपी के एक राष्ट्रीय महामंत्री की शह पर) मार दिया. विकास की तस्वीर हमेशा दो अच्छे रंगों से खींची जाती है, पहला- वादे, और दूसरा- प्रभाव.... शिवराज सिंह ने जितनी घोषणाएं की हैं अगर हिसाब रखा जाये तो उनके मुख्यमंत्री पद पर बिताये दिनों से ज्यादा ही होंगी....और वो प्रभावशाली हैं ही. विकास की हकीक़त मूलभूत समस्याएं झेलने बाले बता सकते हैं....और सुशासन की हकीक़त राजनीति की चक्की में पिसने बाले लोग....चाहे वो मार खाते डॉक्टर्स हों या क़त्ल होने बाले आईपीएस या फिर पिस्ता हुआ मिडिल क्लास.
श्रीमान राहुल गाँधी के भाषणों से मैं उक्ता गया हूँ.....साफ़ साफ़ शब्दों में ये कहा जाते हैं की देश को लीडर नहीं विज़न चाहिए.....जैसे बिना लीडर के विज़न अचार डालेगा. या तो उनके पास लीडर नहीं है या फिर वो खुद ही लीडर नहीं है..या फिर उनकी माँ और पार्टी की दस साल की लीडरशिप में सिर्फ देश की जनता का अचार डाला गया है.....कोलिशन गवर्मेंट कि मजबूरियाँ बता बता कर. कर (जो कि हकीक़त है).
ये देश युवाओं का देश है....आधी आबादी युवा है. इनके सपने हैं, और कुछ करने की हिम्मत भी....लेकिन डर लगता है मुझे कि इनका सही दोहन करने कि बजाये देश का राजनैतिक तंत्र इन्हें फ्रस्ट्रेशन में न डाल दे. बेरोजगारी और भ्रष्ट तंत्र से जूझते इस देश के युवा उस और जा रहे हैं जहां से बेचारगी के अलावा कुछ और उन्हें नज़र नहीं आता और इस तरह का समाज पतन कि और जाता है तरक्की कि और नहीं!
सुयोजित और बराबर अवसर सिर्फ एक अच्छी लीडरशिप और डिसिशन टेकिंग प्रधानमंत्री से ही आ सकते हैं.....कोलिशन गवर्मेंट का रोना रोते बुत से नहीं!
विकास कि हकीक़त जो मध्यप्रदेश कि है मुझे नहीं लगता उससे ज्यादा कुछ अच्छी गुजरात की होगी.....वैसे NDTV पर 'रवीश कुमार' जी के प्रोग्राम में हमने देखा ही है......लेकिन जिस तरीके से देश कि सरकार से त्रस्त देश के युवायों को सपने मोदी जी द्वारा पहनाये जा रहे हैं वो काबिले- तारीफ है. उन्हें पता है कि देश बदलाव चाहता है, उन्हें पता है कि आधी आबादी युवा है और उन्हें ये भी पता है कि सपने बिकते हैं....और शायद ये भी कि चारों तरफ से पिसता मध्यम वर्ग सुशासन के सपने देख रहा है, भले उसके कुछ लोकतान्त्रिक अधिकार छीन जाएँ! (वैसे भी कितने मिले हुए हैं!).
हकीक़त विकास नहीं है, हकीक़त बस अपने सपने बेचना है क्यूंकि सच तो बहुत कड़वा है.... 'अजित पवार' जैसे लोग यहाँ उप-मुख्यमंत्री कि कुर्सी से मूत्र-विसर्जन करते हैं और मोंटेक अह्लुबलिया जैसे लोग गरीब हटाने के लिए गरीबी कि डेफिनिशन बदल डालते हैं. तो मोदी साहिब का सपने बेचना काबिले-तारीफ है.....भले ही वो जीते या हारे या पी एम् बने या न बने या बनने के बाद कितनी दशा बदलेंगे ये बाद कि बात होगी लेकिन आज के उनके भाषण गौर करने लायक ज़रूर हैं. खास तौर से हम जैसे युवा तो ध्यान से सुन ही रहे हैं!
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