दुःख का कारण
एक वन में काकराज बहुत सारे कोओं के साथ रहा करते थे।सभी कोओं का बसेरा एक
विशाल बरगद का पेड़ था।काकराज वृद्ध और विद्धवान थे ,सार कुटुंब संतोष और चैन के
साथ जी रहा था।
एक बार काकराज को काफी लम्बे समय के लिये सुदूर जाना था।यात्रा के पहले वे सभी
कोओं से मिले और मुस्कराहट और संतोष के साथ रहने की सलाह देकर यात्रा को चले
गये।जब काकराज सुदूर यात्रा से वापिस लौटे तो देखा कि उनका कुटुम्ब गहरा दुःख झेल
रहा है।काकराज सबसे मिले उन सबके चेहरे पर तनाव देख वो समझ गए कि कुछ बात
जरुर है।
अगले दिन काकराज ने देखा कि उनके बरगद पर गोरैया रहने आई हुयी है।काकराज
गोरैया से मिले और उससे पूछा- गोरैया बहन,यहाँ तुझे कोई कष्ट तो नहीं हैं न ?
गोरैया ने कहा-काकराज ,मुझे यहाँ रहकर अच्छा लग रहा है,मेरे बच्चों को भी किसी ने
हानि नहीं पहुंचाई है।सभी कौए प्रेम से बोलते हैं ,मैं यहाँ आराम से हूँ।
काकराज ने गोरैया को अभयदान दिया और वापिस अपने कुटुम्बी जनों के पास आ गये।
अपने कुटुम्बियों और मित्रो के दुःख को भांप कर उन्होंने एकांत में एक-एक कौए को
बुलाया और दुःख का कारण पूछा।
एक कौआ बोला -काकराज ,यहाँ अन्न का अभाव नहीं है,किसी का भय भी नहीं है लेकिन
जब से यह गोरैया यहाँ आई है तब से इसके रंग को देख कर मेरे मन में पीड़ा है कि इसका
रँग सुनहरा क्यों है।
दूसरा कौआ बोला -काकराज,मैं यहाँ पर प्रसन्नता पूर्वक हूँ लेकिन कभी -कभी सोचता हूँ
कि काश !मैं भी गोरैया की तरह सुरीली तान में बोल पाता।
तीसरा कौआ बोला -काकराज,इस विशाल बरगद पर कोई अभाव नहीं है ,मेरे दुःख का
कारण इस गोरैया के द्वारा बनाए गये सुन्दर घोंसले के कारण है।इस गोरैया ने अपने
रहने के लिए कितना सुन्दर नीड़ बुना है।
चोथा कौआ बोला- काकराज ,मेरी पीड़ा का कारण सिर्फ इतना है कि मुझे पेट भरने के लिए
काफी मेहनत करनी पड़ती है जबकि इस गोरैया का शरीर छोटा होने के कारण इसे अपना
पेट भरने के लिए मेहनत बहुत कम करनी पडती है।
काकराज ने सबसे दुःख का कारण जाना तो उन्हें लगा सारे कौए किसी आपदा के कारण
दुखी नहीं है इनके दुःख का कारण सिर्फ दुसरे से ईर्ष्या करना है।हम दूसरो के सुख को बड़ा
मानकर खुद के सुख को दुःख में बदल लेते हैं और खिन्न होकर अपना जीवन जीते हैं।
शायद यह एक बड़ा कारण हमारे रोते पीटते जीने का।हम अपने पास जो है उसका आन्नद
लेने के बजाय इसलिए दुखी रहते हैं कि दूसरा सुखी क्यों है।
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