प्रभुनाथ शुक्ल
अमां हम क्या बोलें। सबकी अपनी पसंद है। वालीवुड वाले खान भईया को तो बेबी की बेस पसंद तो कभी संजय भाई को चोली और चुनरी के नीचे क्या है...बेहद पसंद रहा। इ ससुरी पसंद को भी क्या बोलें। एकदम निखट्टू बेशर्म और हरजाई है। जहां जब इसके जी में आता है पसंद ना पसंद पर दांत चिंगार अपना मुहर लगाने लगती है। इंडिया में तो सारे फसाद की जड़ भी ससुरी यही है। अब उ अपने टीवी सीरीरयलवाली पंक्षी को देखिए जिस लौंडे पर वह लट्टू है वह ससुरा पूरा निखट्टू है हां भाई हां...पंक्षी जिस पर लट्टू है वह लौंडा बड़ा निखट्टू है। अब अपनी विद्यावालन को देखिए उनकी सोच और पसंद भी अजीब है वह टीवी पर बताती फिरती हैं कि जहां सोच वहीं शौचालय।
अरे उन्हें सोच में शौचालय के शिवा और कुछ नजर नहीं आता। खैर हुई न यह अपने पसंदवाली बात। वाकई पसंद कितने मजेवाली बात है। अपने नमो यानी मोदी जी को देखिए उन्हें इंडिया कम विदेश अधिक पसंद है। जब देखिए जनाब विदेश दौरे पर फुर्र हो जाते हैं। भाई ए तो अपने मन की बात है इसे बतंगढ़ क्यों बना रहे हैं। अरे भाई हम क्यों बतंगढ़ बनाने जाएं लेकिन उसे आप लादने वाले कौन होते हैं। जब देखिए आप आल इंडिया रेडियो पर मन का नगाड़ा पीटते रहते हैं। अरे भाई कभी मेरे मन की पसंद भी जानने की हिमाकत आपने की। अमां आप जो ठहरे वजीरे आजम कौन आप से भीड़े। लेकिन पसंद ना पसंद की उनकी भी ट्यून बदलती रहती है।
देखिए ना कभी सूट पर फिदा हो जाते हैं तो कभी बलूच पर दिल लगा बैठते हैं। भला हो अपने नमों का जिन्हें कोई पाकिस्तानी बाला अटल जी तरह पसंद नहीं किया। नहीं किया तो मत करे उनकी पसंद तो अव्वल है उन्होंने तो खुद बलोच पर दिल फेंक दिया। अब भाई पाकिस्तान को मिर्ची क्यों लगी सो तो वहीं जानें। अजी वहीं तो मैं बात कर रहा हूं अपने राहुल भईया की। अब उन्हें हरहर मोदी के बजाय अरहर मोदी पसंद है तो हम क्या करें। अरे भाई अपने पप्पू की पसंद है। फिर इस पर हाय तौबा क्यों। युवराज भईया को तो सूटबूटवाली सरकार भी दिल पर लगती है। आजकल उन्हें तो खाट, चौपाल और किसान पसंद है। राहुल जी मांगे वोटिया खटिया बिछाइ के...लेकिन विरोधियों को राहुल की खाट से पेट पिर्री हो रही है। उनकी खाट से जलन क्यों हैं।
भाजपाई बोल रहे हैं कि उनकी खटिया खड़ी हो गई है। अब का बोले इन सियासतदारों को। तुम अपनी खटिया बिछाने में लगे हो और दूसरे की उलट रहे हो। अव्वल है राजनीति की पसंद। इस ससुरी राजनीति का भी कोई चाल चरित्र नहीं है। इसकी भी पसंद जुदा है। अब बताइए किसी को आगरा आनेवाली विदेशी शैलानियों की स्कर्ट पसंद है तो किसी को तिलक, तराजू और तलवार से नफरत है। इसका मतलब साफ है कि राजनीति में स्थाई भाव नहीं है और न ही इसकी कोई परिभाषा है। अब इसे क्या बताएं कभी गाय पर यह बवाल खड़ा कर देती है कभी दयाशंकर सिंह का हाथ थाम लेती है। कभी बेमुला पर बुलबुले उठाने लगती है तो कभी आरक्षण पर लाश का सौदा करती है। ससुरी बेंपेदी का लौटा है।इ मीडिया वालों को भी क्या बोलें। इनकी भी पसंद अजीब है। सच कहूं इनकी पसंद और नापसंद की बात करोगे तो बगल झांगने लगेंगे।
जेब का भार टटोलने लगेंगे। लेकिन दूसरों के बेडरुम तकी खबर निकालना और उसकी ऐसी तैसी करना इन्हें कितना पसंद है पूछिए न। अपने दिल्ली वाले मंत्री जी से ही इनकी करतूत पूछिए न। बेचारे कितने बुरे फंस गए। यह सब इन्हीं नारदों की साजिश है। भला बेचारे मंत्री जी ने इनका क्या बिगाड़ा था। उनकी पसंद तो उनके मुताबिक अच्छी थी उन्होंने किसी का उपकार ही तो किया था लेकिन निखट्टू बुद्धू बक्सेवालों को यह बात नहीं पची। अपने केजरी भईया को बदनाम कर डाला। यह बात अपने अन्ना जी के दिल पर लगी। केजरी भईया अजीब अजीब जंग से लड़ रहे हैं दूसरे सेक्स स्कैंडल...। अब आशू भईया भी फंस गए उन्होंने इस पवित्र चरित्र को गांधी और नेहरु से कनेक्ट कर दिया। वाह कितनी उचीं पसंद है आशू जी की अरे भाई आज राजनितिया हो गए है लेकिन कल तो चैनलिया बिरादरी के ही थे। अब वह स्वामी भक्तिवाला स्वाभिमान जाग जाए तो क्या कहेंगे। आप वाले मंत्री जी की तो कम लेकिन आशू भईया की खूब नोचौवल हो रही है।
उफ! वाह रे राजनीति। तुझे शर्म नहीं आती है। तेरा न कोई चेहरा है न चाल न चरित्र तभी तो तू हर समय चौराहे पर नंगी होती रहती है। लेकिन फिर भी तू चरित्रवाली होने का दंभ भरती है। अरे कलमुंही तूझे अपने राहुल की खटिया से इतनी जलन क्यों हैं। तू पप्पू की खटिया पर लंगोंट क्यों कस रही है। तूझे तो शर्म आनी चाहिए। जब सबकी अपनी पसंद है किसी को ईरानी तो किसी को कैटरीना तो किसी स्वामी और किसी को दलित और दौलत। डान दाउद से तू क्यों नहीं इतनी दुश्मनी रखती। हिम्मत नहीं है तू तो चिल्ला चिल्ला बोल रही है कि जल्द ही इंडिया लाया जाएगा डान लेकिन आज तक एक रोंए भी उसका नहीं उखाड़ पाई। अपने विजय माल्या को देख शान से नौ हजार करोड़ लेकर उड़ गए आराम से पब में मल्लिकाओं के बीच स्नान कर रहें हैं उनसे तेरी जलन नहीं है। अपने अपने योगियों को तू पसंद है तो मैं क्या करुं। लेकिन अपने राहुल भइया की खाट से तू क्यों जल रही।तू निरामर्द और बेशर्म है। हमने कहां न तेरी कोई भाषा और परिभाषा नहीं है। शर्म भी तूझे देख बेशर्म हो जाएगी लेकिन तूझे न अक्ल और न शर्म आएगी। तू बेशर्म की दादी है।
खैर चल तू मीडिया वालों से तो भली है। उनकी जमात तो तुझ से कई गुना आगे है। तूझमें तो कुछ ईमानदारी है। कम से कम तू जाति और धर्म के प्रति वफादार और ईमानदार है। इंसानियत के प्रति भले न हो लेकिन गाय जैसे जानवर के प्रति तो तेरी वफादारी दुनिया में जाहिर है। इ मीडियावालों को राहुल भईया की सभा में उनकी बात नहीं दिखी। यूपी में सरकार बनेगी तो कर्ज माफ और बिजली बिल हाफ होगा। यह सुनाई नहीं दिया। क्योंकि यह कान से अधिक सतर्क और आंख से अंधी होती है। इसलिए क्योंकि टीवी वालों की आंख कम कैमरा अधिक काम करता है शायद इसकी वजह यही है। अब उन्हें राहुल की खटिया ही दिखाई पड़ी।ऐसी रैलियों में तो लोग भूख और प्यास से मर जाते हैं। लेकिन अपने राहुल 27 साल बाद यूपी की सुधि लेने आए हैं तो उन्होंने कम से कम 300 लोगों को खटिया तो दिलाई। यहां तो बहन जी और अपने पहलवान नेता के साथ अब बेटे अखिलेश की सरकार है। उनसे तुम लोगांे ने क्या यह सावाल पूछा। नेता जी तुम्हारी यूपी कितनी बदल गई।
तुम्हारे राज में लोगों को विस्तर और खाट भी मयस्सर नहीं है और बहन जी हैं कि हाथियों और पत्थर पर फिदा हैं। आखिर हैं न अपनी पसंद की बात। खाट लूटने वाले कौन थे। उन्होंने ने क्यों लूटी खाट। इस पर अंधभक्तं चैनलियों निगाह नहीं गई। क्योंकि उनकी भी तो अपनी पसंद है। भईया अब मुझे व्यंग पसंद है अगर की किसी को बुरा लगे तो हम माफी चाहते हैं। दिल पै मत लिजिएगा। हमारा मकशद आपको चोट पहुंचाना नहीं बस अपनी पसंद की बात है। राहुल की खाट लुटी तो लूटे उससे अधिक उन्हें अपनी खबर लुटवानी है। वाह रे राजनीति तू धन्य है। तेरी पसंद अतूलनीय है। मीडिया के चक्षुओं की तूलना तो गिधराज जटायु भी नहीं कर सकते हैं। वाह! धन्य है मीडिया और राजनीतिक का समाजवाद। शतशत नमन।
लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क 8924005444
7.9.16
राजनीतिक व्यंग्य : मोदी को कोट तो राहुल को खाट पसंद है
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