एक बड़े अख़बार के गेट के सामने एक प्रसिद्ध समोसे की दुकान थी. लंच टाइम मे अक्सर अख़बार के कर्मचारी वहाँ समोसे खाया करते थे. एक दिन अखबार के संपादक समोसे खाते खाते समोसेवाले (पप्पू) से मजाक के मूड मे आ गये. संपादक ने समोसेवाले से कहा, "यार पप्पू, तुम्हारी दुकान तुमने बहुत अच्छे से मेंटेन की है. लेकिन क्या तुम्हें नहीं लगता के तुम अपना समय और टॅलेंट समोसे बेचकर बर्बाद कर रहे हो? सोचो अगर तुम मेरी तरह इस कंपनी में काम कर रहे होते तो आज डी एनई या एन ई होते..
इस बात पर समोसेवाला पप्पू बोला, "सर ये मेरा काम आपके काम से कही बेहतर है. 10 साल पहले जब मैं टोकरी में समोसे बेचता था तभी आपकी जाब लगी थी. तब मैं महीना हजार रुपये कमाता था और आपकी पगार थी १० हजार. इन 10 सालों मे हम दोनों ने खूब मेहनत की.. आप सब एडिटर से एडिटर बन गये. और मैं टोकरी से इस प्रसिद्ध दुकान तक पहुच गया.
आज आप महीना ५०,००० कमाते है और मै महीना २,००,००० लेकिन इस बात के लिए मैं मेरे काम को आपके काम से बेहतर नही कह रहा हूँ. ये तो मैं बच्चों के कारण कह रहा हूँ. जरा सोचिए सर मैने तो बहुत कम कमाइ पर धंधा शुरू किया था. मगर मेरे बेटे को यह सब नहीं झेलना पडेगा. मेरी दुकान मेरे बेटे को मिलेगी. मैंने जिंदगी में जो मेहनत की है, उसका लाभ मेरे बच्चे उठाएंगे. जबकी आपकी जिंदगी भर की मेहनत का लाभ आपके मालिक के बच्चे उठाएंगे..
अब आपके बेटे को आप डायरेक्टली अपनी पोस्ट पर तो नहीं बिठा सकते ना.. उसे भी आपकी ही तरह दरिद्र सब एडिटर से शुरूआत करनी पडेगी.. और अपने
कार्यकाल के अंत में वहीं पहुंच जाएगा जहां अभी आप हो. जबकि मेरा बेटा बिजनेस को यहां से और आगे ले जाएगा.. और अपने कार्यकाल में हम सबसे बहुत आगे निकल जाएगा.. अब आप ही बताइये किसका समय और टॅलेंट बर्बाद हो रहा है?
संपादक ने पप्पू को २ समोसे के २० रुपये दिये और बिना कुछ बोले वहा से खिसक लिये.....
संजय सिंह
8.9.16
संपादक बड़ा या पप्पू?
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