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13.9.16

खाट कांग्रेस की लुटी, बदनाम गरीब हो गया

अजय कुमार, लखनऊ
   
खाट कोई लूट रहा है और तोहमत किसी और पर लगाई जा रही है। खाट लूट कांड में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी गरीबों को बदनाम कर रहे हैं, जबकि वह जानते हैं कि खाट पर बैठने और उसे लूटने वाले दोंनो ही कांग्रेसी थे, जिन्हें राहुल की खाट पंचायत के लिये विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था। इसी लिये राहुल गरीबों की आड़ में कांग्रेसियों के कुकर्माे पर पर्दा डाल रहे हैं। जिन्होनंे दशकों तक देश को लूटा वह लोग ही सत्ता से बाहर होने पर खाट लूट काड को अंजाम दे रहे हैं। गरीब मंे अगर लूटपाट करने की हिम्मत होती तो वह ताउम्र गरीबी का दर्द क्यों सहता रहता, जो गरीब आजादी के 70 वर्षाे के बाद भी अपना वाजिब हक नहीं हासिल कर सका, वह खाट लूट की हिम्मत कैसे कर सकता है ?


अच्छा होता राहुल गांधी और उनके टीम मेम्बर फरार उद्योगपति विजय माल्या के बहाने कांग्रेसियों की लूटपाट पर पर्दा डालने की साजिश नहीं रचते, सब जानते हैं कि उद्योगपति विजय माल्या जो हजारों करोड़ का बैंको का कर्ज लेकर भागा है, वह कर्ज कांग्रेस शासनकाल में कांग्रेसियों की मेहरबानी से ही उसे हासिल हुआ था। कहीं खाट लूटी जा रही है और कहीं टूट रही है, लेकिन राहुल की सियासत पर इससे कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। वह तो पिछले तमाम चुनावोें की ही तरह इस बार भी गुरिल्ला शैली में आरोप-प्रत्यारोप की सियासत को ही आगे बढ़ा रहे हैं।

खैर, खाट भले ही आज लूट के चर्चा में हो लेकिन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का खाट (खटिया, चारपाई, खटोला) प्रेम काफी पुराना है। वह खाट पंचायत की तर्ज पर पहले भी खाट चौपाल लगा चुके हैं। खाट पर बैठकर दलितों के यहां भोजन का स्वाद लेते अखबारों में प्रकाशित राहुल की तस्वीरें आज भी लोंगो के जहन में ताजा हैं। चुनावी मौसम में कई बार उनका गांवों मंे रात्रि विश्राम भी हो चुका है। तब भी उनकी नींद खाट पर ही पूरी होती थी। कोई भी चुनाव आता है तो उससे पांच-छहः महीने पूर्व राहुल का जनता को लुभाने के लिये इस तरह का उपक्रम शुरू हो जाता है। चाहें 2009 के लोकसभा चुनाव हों या फिर 2012 के विधान सभा से पहले का समय अथवा 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व की बात, चुनावी मौसम में अक्सर गॉव, किसान, दलित,मजदूरों का दुख-दर्द राहुल को बेचैन कर देता है, मगर चुनाव जाते ही उनकी बातें और वायदे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।

बात खाट पंचायत की ही कि जाये तो देवरिया से दिल्ली तक की यात्रा के दौरान  राहुल गांधी का करीब ढाई सौ विधान सभाओं में खाट पंचायत का कार्यक्रम खाट लूट और टूट कांड के चलते अपने मकसद से भटक गया। यूपी फतह को राज्य के भ्रमण पर निकले राहुल गांधी के अतीत पर नजर डाली जाये तो इसमें कहीं कोई संदेह नजर नहीं आता है कि यूपी की जनता ने राहुल और उनके इस तरह के तमाम कार्यक्रमों को कभी गले नहीं लगाया। राहुल की सरपरस्ती में  2014 के लोकसभा चुनाव ने तो राहुल और कांग्रेस की ‘कमर’ ही तोड़ दी। कांग्रेस देश के सबसे बड़े राज्य में दो सीटों पर परिवार तक ही सिमट गई।

2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम सीटें जीतने का श्रेय विरोधी भले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को दे रहे हों, लेकिन राहुल इससे विचलित नहीं हुए हैं। वह एक बार फिर 2017 के लिये कमर कमर कसने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की छिन चुकी सियासी जमीन को वापस पाने और यूपी की अखिलेश सरकार को उखाड़ फेंकने की कसरत के तहत राहुल ने अपनी सबसे लंबी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रहार के साथ की तो राजनैतिक पंडितों का माथा चकरा गया कि आखिर राहुल लड़ किससे रहे हैं। यूपी में तो बीजेपी सत्ता में है ही नहीं, यहां समाजवादी सरकार है, परंतु राहुल सपा पर नपे तुले शब्दों मे हमला कर रहे है। वह अखिलेश को अच्छा लड़का बता रहे हैं। बसपा के प्रति भी राहुल के तेवर फीके है।कांग्रेस के चुनावी अभियान का औपचारिक आगाज करते हुए राहुल ने कहा कि अगर यूपी में कांग्रेस की सरकार बनती है तो किसानों का,‘ कर्ज माफ,बिजली का बिल हाफ’ हो जायेगा। अंदाज लगाया जा सकता है कि कांग्रेस यूपी चुनाव में किसानों की समस्याओं को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है, जिसके केन्द्र मेे मोदी ही रहेंगे।  

बहरहाल, यूपी के पिछले दो विधानसभा और पिछले लोकसभा चुनावों में पूरी कोशिश के बाद भी राहुल कांग्रेस को चौथे नंबर की पार्टी से आगे नहीं बढ़ा सके हैं। अबकी वह अपने नये रणनीतिकारों के सहारे ऐसा कर पायेंगे,यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस की सिकुडती जमीन को बचाने के लिए राहुल इस बार उत्तर प्रदेश का चुनाव आर पार की लडाई जैसा लड़ रहे है। देवरिया से दिल्ली तक की 2500 किलोमीटर की इस यात्रा में राहुल तीन हफ्ते में 39 जिलों के 55 लोकसभा क्षेत्रों और 233 विधानसभा सभा क्षेत्रों पर कांग्रेस नेताओं/कार्यकर्ताओं में जान फूंकते दिखे।

शुरूआत पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रुद्रपुर में किसानों के साथ पहले खाट सम्मेलन से हुई थी। यात्रा के दौरान राहुल भगवान राम की नगरी अयोध्या में हनुमान गढ़ी भी गये, लेकिन उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि किसी भी तरह से उनकी यात्रा का फोकस किसानों से हट नहीं जाये,इसीलिये वह हनुमान गढ़ी तो गये लेकिन राम लला के दर्शन नहीं किये। तमाम पंचायतों और जनसभाओं में राहुल ने किसानों के हालात का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि अकेले यूपी के किसानों पर 59 हजार करोड रुपए का कर्ज है। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने 1 लाख 14 हजार करोड रुपए के बैंकों के एनपीए माफ कर दिए हैं जिन्हें बडे पंजीपूतियों ने कर्ज के रुप में लिया था और नहीं चुकाया। राहुल ने कहा कि किसानों की कर्ज माफी के साथ बिजली का बिल भी वह आधा कराने की कोशिश करेंगे। मतलब, क्रांग्रेस 70 वर्षो के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिये प्लान बनाने की बजाये उन्हें कर्ज माफी के सहारे लुभाने की कोशिश कर रही है।


कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने यात्रा के माध्यम से पूर्वी उप्र को साधने की भले ही पहल की है लेकिन यहां उनकी राह आसान नहीं है। यूपी में कांग्रेस के पिछले 27 वर्षो से सत्ता से बाहर ही नहीं रहने बल्कि यूपी की सियासत में हासिये पर चले जाने के कारणं पूर्वाचल में कांग्रेस की जमीन खिसक चुकी है। उसके कद्दावर नेताओं ने अन्य दलों का दामन थाम लिया है। 2012 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव  जीतने वाले आठ विधायकों ने पाला बदल कर लिया है। कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय राहुल गांधी पूर्वांचल को मथ रहे थे, उसी समय उनके बहराइच के विधायक मुकेश श्रीवास्तव ने समाजवादी पार्टी ज्वांइन कर ली। सपा में शामिल होते ही विधायक श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। इसे अब प्रशांत किशोर जैसे मैनेजर चला रहे है। वैसे श्रीवास्तव भी ‘दूध के धुले’ नहीं हैं। उनके दामन पर एनएचआरएम घोटाले का दाग लगा है,जिसमें वह जेल भी जा चुके हैं। श्रीवास्तव से पूर्व  यूपी के पूर्वांचल के जिले कुशीनगर के खड्डा विधायक विजय दुबे, बस्ती के रुधौली विधायक संजय जायसवाल और बहराइच की नानपारा विधायक माधुरी वर्मा अपने लिये सुरक्षित सियासी ठिकाने की तलाश में भाजपा का दामन थाम चुके हैं।

कभी पूर्वांचल में  कांग्रेस के पास दिग्गत नेताओं की लम्बी-चौड़ी फौज हुआ करती थी, लेकिन उनमें से कई केे स्वर्ग सिधारते ही उनके परिवार के सदस्यों ने कांग्रेस उन्हें उचित महत्व नहीं मिलने का अरोप लगाते हुए कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय और पूर्व मंत्री राज मंगल पाण्डेय अब इस दुनिया में नहीं रहे तो उनके परिवार के लोग भगवा रंग में रंग गयें हैं। वीरबहादुर सिंह के पुत्र पूर्व मंत्री फतेहबहादुर सिंह, कल्पनाथ राय की पुत्र वधू सीता राय और राजमंगल पाण्डेय के पुत्र सांसद राजेश पाण्डेय की गिनती अब भाजपा के प्रमुख नेताओं में होती है। डुमरियागंज के सांसद जगदंबिका पाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही भाजपा का दामन थाम लिया था। दलित नेता महावीर प्रसाद के निधन के बाद इस पूरे अंचल में कोई दूसरा दलित नेता नहीं उभरा है।

कांग्रेस के रणनीतिकार फिल्म अभिनेता से नेता बने राजब्बर, हाल ही में यूपी के चुनाव प्रभारी बनाये गये गुलाम नबी आजाद और बुजुर्ग नेत्री एवं  दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सहारे यूपी की जंग जीतना चाहती है, लेकिन इन तीनों ही नेताओं ने यूपी में कभी कोई संघर्ष नहीं किया है। इस आधार पर इनकी गणना बाहरी नेताओं के रूप में हो रही है। शीला दीक्षित तो दिल्ली की मुख्यमंत्री रहते दिल्ली को गंदा करने के लिये यूपी-बिहार वालों को ही कटघरे मंे खड़ा कर चुकी थी। एक तरफ यूपी कांग्रेस में बाहरी नेताओं का डंका बज रहा है तो दूसरी तरफ  यूपी के दिग्गत नेताओं में शुमार पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद, आरपीएन सिंह,संजय सिंह आदि नेता उन्हें पार्टी में को कोई महत्व नहीं दिये जाने से नाराज है।

सियासी रूप से यह बात काफी अखरने वाली है। कुल मिलाकर राहुल गांधी को बस अपने रणनीतिकार पीके पर ही भरोसा नजर आ रहा है और उनके ही कहे अनुसार वह चल भी रहे हैं। इसी लिये वह अयोध्या में हनुमानगढ़ी तो जाते हैं, लेकिन रामलला के दर्शन करने से उन्हें गुरेज रहता है। वह राहुल से पूर्व राजीव गांधी और इंदिरा गांधी भी ऐसा कर चुकी हैं।  लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी के पास विजन की कमी है। उनका आई क्यू और प्रजेंट आफ मांइड भी काफी कम है। वह रट्टू तोते की तरह बोलते रहते हैं। इसके अलावा उन्हें न कुछ दिखाई देता है न कुछ सुनाई पड़ता है।

किसी गंभीर मुद्दे पर वह पांच मिनट भी बोलने की काबलियत नहीं रखते हैं। अज्ञानतावश कई ऐसे मुद्दों को उठा देते हैं जो उनकी जग हंसाई का कारण बन जाते हैं। केन्द्र सरकार ने दुरंतो, शताब्दी और राजनधानी एक्सप्रेस  टेªनों में ‘फ्लैक्सी फेयर सिस्टम’ लागू कर दिया।  इससे इन टेªनों का किराया काफी बढ़ गया। केन्द्र सरकार के इस फैसले का विरोध जायज है,लेकिन राहुल उक्त गाड़ियों में किराया वृद्धि को गरीब जनता के साथ धोखा करार देकर प्रचारित कर रहे हैं,जबकि इन गाड़ियों में गरीब क्या औसत दर्जे के लोग भी यात्रा करने से गुरेज करते हैं।  जिन गाड़ियों में फ्लैक्सी सिस्टम लागू हुआ है,,वह वीआईपी गाड़िया हैं और इन गाड़ियों से चलने वालों के लिये चार-पांच सौ रूपये की वृद्धि कोई मायने नहीं रखती है।

लेखक अजय कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

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