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15.9.23

हैपी हिन्दी दे

अरुण श्रीवास्तव-

सभी हिंदी भक्तों, हिन्दी प्रेमियों, हिन्दी आधारित कवियों और हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित करने/कराने में दिन रात एक करने वालों को भी ... "हैपी हिन्दी डे" (आखिर इतना तो अधिकार उनका भी बनता है) हिन्दी के मास्साब इस बार क्षमा करेंगे .. उन्हें हाल ही (5 सितंबर शिक्षक दिवस पर) बधाई दी जा चुकी है। हालांकि यह बात अलग है कि अपने अंडर में शोध करने वाले छात्र का लिखा अपने नाम छपवाने वाले गुरुजी के नाम पर हम शिक्षक दिवस मनाते आ रहे हैं।

मितरों अब इन्तजार के घड़ियां खत्म हुईं ... हिन्दी दिवस आ गया...साल भर से उपेक्षित लोग आज पूजे जाएंगे... 1949 से यही हो रहा है। 
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी‌। पहला हिंदी दिवस 1953 में मनाया गया था।
 इन्हें साल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाएगा। सरकारी कार्यालयों,केंद्र सरकार के उपक्रमों मसलन बैंको बीमा कम्पनियो में हिंदी दिवस , हिन्दी सप्ताह , हिन्दी पखवाड़ा या हिन्दी माह मनाया जाएगा तो सरकारी  स्कूलों में निबंध प्रतियोगित्ता करवाई जाएगी... 
वैसे भी जब आपका बच्चा हिन्दी पर निबंध लिखने या लखवाने की जिद करने लगे ...तो समझ जाइए की हिन्दी दिवस आने वाला है..
फिलहाल बैंकों इंश्योरेंस कंपनियों सहित निजी कार्यालयों इन दिनों  हिंदी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा का पोस्टर-बैनर "झाड़-पोंछकर" निकाला जाने लगा है.. 
एक कहावत है " घूर जहां (कूड़ा फेका जाता है) के दिन भी १२ साल में फिर जातें  है " तो ये बेचारे राष्ट्रभाषा के पहरुवा ठहरे इनका तो दिन फिरना ही चाहिए...
दिवस पर फिर कभी बात करेंगे आज सिर्फ हिन्दी पर,,, अगर विषय से भटक जाउूं तो सुधी पाठकों को यह अधिकार है की वह कान पकड़कर मुझे वापस विषय पर ले आयें इसका कॉपीराइट जल्द ही करा लूंगा नहीं तो यह हल्दीराम की भुजिया के तरह करा लेगा....
हाँ तो मैं कह रहा था कि,, सरकारी विभागों में ही नहीं निजी सन्सथानो में भी हिन्दी दिवस की तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही हैं...
अधिकारियों ने अपने चमचों को स्लोगन, भाषण या इसके बीच-बीच में पढ़ा जाने वाला शे'र की महती जिम्मेदारी सौंप दी है...कुछ ने तो उनको फ्रेंच (सरकारी कार्यालयों में डग्गेमारी टाइप वाले अवकाश को फ्रेंच लीव कहते हैं ) लीव देने का आश्वासन दिया है..लाकर में रखे बैनरों को झाड़-पोंछकर निकाला जा रहा है..
एक भरोसेमंद साथी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि साहित्य कि हाँथ आजमा चुके कर्मचारियों को को उन साहित्यकारों को मनाने का जिम्मा दिया गया है जो पिछली बार अपनी कटेगरी के हिसाब से उपहार न मिलने कि कारण हत्थे से उखड़ गए थे.....
बहरहाल अब हिन्दी के दिन बहुरने वाले हैं... बहुरे भी क्यों ना... अमूमन हर सरकारी कार्यालय हिन्दी के आगे दंडवत जो होने जा रहा है....           

मित्रों एक बार फिर "हैपी हिन्दी डे...." एक साल बाद फिर मिलेंगे...।

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