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10.9.23

बुनियादी चिंताओं का प्रतिनिधित्व करती है नंद बाबू की रचनाएं : प्रोफेसर हाड़ा

उदयपुर में नन्द चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी पर आयोजन

उदयपुर ।  प्रसिद्ध समाजवादी कवि और साहित्यकार नंद चतुर्वेदी की रचनाएं मूलतः समाज के उन सभी पक्षों का प्रतिनिधित्व करती है, जो आधुनिक समाज में परिलक्षित हो रही है. इन रचनाओं में  जहां एक ओर स्त्री के प्रति चिंता है तो दूसरी ओर समाज के प्रत्येक वर्ग के प्रति संवेदनशीलता, राजनीति और आधुनिकता पर कटाक्ष है तो मानवतावादी चिंतन का  प्रतिनिधित्व भी. उक्त विचार राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर और विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में  आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी  “नंद चतुर्वेदी : साहित्यिक मंथन” विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रख्यात समीक्षक प्रोफेसर   माधव हाडा ने व्यक्त किए.

 

प्रोफ़ेसर हाड़ा ने कहा कि नंद चतुर्वेदी हिंदी साहित्य का वह नाम है, जिन्होंने अपनी रचनाओं से अखिल भारतीय स्तर पर राजस्थान को एक विशिष्ट स्थान देने का उल्लेखनीय योगदान दिया है. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रही  श्रीमती पुष्पा शर्मा ने कहा कि नंद चतुर्वेदी एक निर्भीक और संवेदनशील कवि थे, जिनका लक्ष्य समाज में गैर बराबरी को मिटाना था.  उन्होंने नन्द चतुर्वेदी की तुलना कबीर से करते हुए कहा कि वे कबीर की ही तरह सरल और सहज अभिव्यक्ति वाले कवि थे. प्रोफेसर अरुण चतुर्वेदी ने नंद चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी पर होने वाले साहित्यिक आयोजनों का जिक्र करते हुए कहा कि नंद बाबू की प्रेरणा समाज के लिए पथ प्रदर्शक का काम कर सकती है.

तकनीकी सत्र में बोलते हुए डॉ मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि  नंद बाबू का साहित्य जहां स्त्री सशक्तता का समर्थन करता है, वही उनकी लेखनी में लोकतांत्रिक मूल्यों का भी उल्लेख नजर आता है. डॉ चंद्रकांता बंसल के अनुसार नंद चतुर्वेदी लोक मन के कवि रहे हैं  और उनकी रचनाओं में मानव जीवन का संघर्ष उजागर होता है. इसीलिए वे जीवन की सार्थकता पर सटीकता से अपनी बात कहते हैं. डॉ नवीन नंदवाना ने अपने वक्तव्य में कहा कि नंद चतुर्वेदी ने इतिहास से कविता को जोड़कर आधुनिक काल में  अपनी रचनाओं में  आशावादिता, समतावादी और स्वाधीन भावों को सफलता से प्रस्तुत किया.

उनके अनुसार नई कविता के आंदोलन के पुरोधा के रूप में  नंद चतुर्वेदी ने मनुष्यता के हक में जो कुछ लिखा वह प्रशंसनीय है. डॉ राजेश शर्मा ने  नंद चतुर्वेदी के कथेतर साहित्य  पर अपनी बात रखते हुए कहा कि उन्होंने  जिन मूल बिंदुओं पर पद्य में लिखा उन्हीं मूल विचारों को विस्तृतता अपनी गद्य लेखनी में भी प्रदान की. डॉ शर्मा ने नंद बाबू की विशिष्ट लेखन शैली  और भाव अभिव्यक्ति पर प्रकाश डाला. श्री किशन दाधीच ने नन्द चतुर्वेदी को मानवतावादी साहित्यकार के साथ एक स्वतन्त्रता सेनानी बताया जिन्होंने अपने जीवन मूल्यों को लोक जीवन पर आधारित किया. इससे पूर्व आयोजन सचिव डॉ सरस्वती जोशी ने संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की. संस्थान निदेशक डॉ तेज प्रकाश शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ मनोज राजगुरु ने किया. संगोष्ठी में  सदाशिव श्रोत्रिय, हिम्मत सेठ, गोपाल बम्ब, अनुराग चतुर्वेदी, सुयश चतुर्वेदी, डॉ रतन सुथार, डॉ समीर व्यास, डॉ अर्चना जैन, डॉ नीरू श्रीमाली सहित उदयपुर के  कई साहित्यकार, अकादमिक सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित थे. कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव डॉ सरस्वती जोशी ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया.

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