Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

4.3.08

अमर उजाला में ब्लागिंग पर कवर स्टोरी पूरी यहां पढ़ें

अमर उजाला ने इस बार के रविवार को अपने साप्ताहिक फीचर परिशिष्ट संडे आनंद में कवर स्टोरी के रूप में हिंदी ब्लागों की कहानी अपने पाठकों तक पहुंचाई। मुंबई समेत देश के कई शहरों के भड़ासियों का कहना है कि उन्हें यह स्टोरी पढ़ने को नहीं मिली क्योंकि वहां अमर उजाला का प्रकाशन नहीं होता है, सो उनके अनुरोध पर अमर उजाला डाट काम के सौजन्य से स्टोरी को आनलाइन पढ़ाने की व्यवस्था कर रहा हूं, आप नीचे दिए लिंक को क्लिक करें और पूरी स्टोरी पढ़ लें.....


अमर उजाला संडे आनंद में ब्लाग राग

((उपरोक्त लिंक पर क्लिक करने के बाद कुछ कंप्यूटरों पर फांट की समस्या भी आ सकती है जिससे आप उपरोक्त लिंक वाले पेज पर उपर दिए गए फांट डाउनलोड के आप्शन को क्लिक करके व इंस्टाल करके निपट सकते हैं))

जय भड़ास
यशवंत

2 comments:

विजय पाण्डेय said...

कवर स्टोरी
ब्लॉग राग
मैं जो कहता हूं उसे दुनिया सुने, मैं जो करता हूं उसे दुनिया देखे! इस तरह के विचार किसके मन में नहीं आते हैं? लेकिन साथ ही एक सवाल भी आता है कि ‘कैसे?’ इस ‘कैसे’ का जवाब ढूंढ़ने की प्रक्रिया में ही मीडिया का विकास हुआ, लेकिन मीडिया पर भी सब की आवाज को जगह मिल पाना संभव नहीं था। इस असंभव को संभव बनाया है ब्लॉग ने। अब कोई भी आदमी ब्लॉग बनाकर अपनी बात सारी दुनिया के सामने रख सकता है।

अब आप जो कहेंगे, उसे दुनिया सुनेगी। यह सुविधा उपलब्ध हुई है ब्लॉग की बदौलत। इंटरनेट पर आपके लिए उपलब्ध इस पर्सनल-स्पेस से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां

क्या बला है ब्लॉग?

इंटरनेट पर ब्लॉग की सैकड़ों परिभाषाएं मौजूद हैं, लेकिन मोटे तौर पर कह सकते हैं कि ब्लॉग इंटरनेट पर मिलने वाला ऐसा स्पेस है, जिसमें आप अपने मन की बात कह सकते हैं। दरअसल ब्लॉग शब्द वेब लॉग का संक्षिप्तीकरण है, लेकिन आमभाषा में आप इसे अपनी निजी डायरी, निजी मैगजीन या एलबम कह सकते हैं, जिस पर आप अपने विचार, लेख, कविता, कहानी, टिप्पणी, अपील कुछ भी प्रकाशित कर सकते हैं। और इसके लिए न तो किसी पत्र-पत्रिका का दरवाजा खटखटाना है, न किसी न्यूज चैनल पर दस्तक देने की जरूरत है। आप कंप्यूटर पर एक बटन दबाकर सारी दुनिया के सामने अपनी बात प्रकाशित या प्रसारित कर सकते हैं। इसीलिए इसे पुश बटन पब्लिशिंग भी कहा जाता है। चाहें तो गुमनाम रहकर या नाम बदलकर भी ब्लागिंग कर सकते हैं।

ब्लॉग का इतिहास मुश्किल से दस साल पुराना है। लेकिन इन दस वर्षों में ही कई देशों में वे पारंपरिक मीडिया को प्रभावित करने की स्थिति में आ गए हैं। ब्लॉग्स की संख्या बढ़ने के साथ इनकी ताकत और बढ़ेगी। ब्लॉग्स की वृद्धि को इस तरह आंक सकते हैं कि 2005 में कुल 80 लाख ब्लॉग थे, महज दो वर्षों में यह आंकड़ा 7 करोड़ को पार कर गया। हिंदी में ब्लॉगिंग दो-तीन साल पहले ही शुरू हुई है, लेकिन अब यहां भी 3000 से अधिक ब्लॉग हैं।


कानपुर से टोरंटो तक

हिंदी ब्लॉगिंग का दायरा बहुत बड़ा है। कानपुर के फुरसतिया यानी अनूप शुक्ल और टोरंटो के समीर लाल उर्फ उड़नतश्तरी हिंदी के पुराने ब्लॉगर्स में से हैं। लखनऊ की कंचन सिंह चौहान, रांची की पारुल, इंदौर के परेश टोकेकर, दिल्ली के संजय मिश्रा, चेन्नई के समर्थ वशिष्ठ और भोपाल के अजित वडनेरकर जैसे लोग देश के कोने-कोने से हिंदी ब्लॉगिंग में हाथ आजमा रहे हैं। यहां उदय प्रकाश, विष्णु नागर, वीरेन डंगवाल, लाल्टू, बोधिसत्व, सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हैं, तो युवा पीढ़ी के हरे प्रकाश उपाध्याय, शशि प्रकाश, प्रमोद रंजन, प्रदीप मिश्र आदि भी अपने तेवर के साथ मौजूद हैं। ये सब पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं, पर ब्लॉग्स पर पर बड़ी तादाद ऐसे लोगों की भी है, जिन्हें पत्र-पत्रिका में जगह नहीं मिल पाती है।


ब्लॉग की ताकत

ब्लॉग्स को व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का माध्यम माना जाता है, लेकिन जब बहुत से लोग एक उद्‌देश्य या विचार को लेकर एकजुट हो जाएं, तो वे बड़ी ताकत भी बन जाते हैं। ब्लॉग्स की ताकत का अंदाजा 2007 में ऑस्ट्रेलिया के आम चुनाव में देखने को मिला। वहां जॉन हावर्ड की हार का माहौल बनाने में ब्लॉगर्स की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना गया। ऐसा इसलिए हो पाया कि संपूर्ण आबादी में वयस्क ब्लॉगर्स का प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया में सर्वाधिक है। हमारे यहां भी ब्लॉग राजनीतिक ताकत दिखाने लगे हैं। एक ब्लॉग पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बारे में एक टिप्पणी छपी, तो जोगी के बेटे अमित ने ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी कर प्रतिवाद जताया। हिंदी में मोहल्ला, चोखेरबाली और भड़ास जैसे कम्युनिटी ब्लॉग्स पर सामूहिक-ताकत नजर आने लगी है, जहां अपनी-अपनी स्टाइल में वाद-विवाद-संवाद जारी है।


बुश का ब्लॉग और बेनाम टिप्पणी

2004 में जॉर्ज बुश ने अपना ब्लॉग शुरू किया। 1 अगस्त 2004 को उन्होंने पहली पोस्ट लिखी: आई फाइनली स्टार्टेड माइ ब्लॉग (अंतत: मैंने अपना ब्लॉग शुरू कर दिया)। इस पोस्ट पर जो पहली टिप्पणी मिली वह यह बताने के लिए काफी है कि ब्लॉग्स ने लोगों को बोलने की कितना आजादी दी है। इस अनाम टिप्पणीकर्ता ने लिखा, ‘तुम राष्ट्रपति बने रहने की कोशिश करने के बजाय ब्लॉग पर ही डटे रहो। क्योंकि तुम हत्यारे, झूठे और चोर हो। ईश्वर की कृपा से तुम जेल या नर्क, जो भी पहले पड़ेगा, जरूर जाओगे।’


ब्लॉग से कमाई

ब्लॉग से कमाई भी हो सकती है, इस बारे में लोगों का ध्यान तब गया जब वेबलॉग डॉट आईएनसी को अमेरिका ऑलनाइन ने 2 अरब 50 लाख डॉलर में खरीद लिया। ब्लॉगर्स के सपनों को पंख तब लगे जब लैबनॉल ब्लॉग के मॉडरेटर अमित अग्रवाल ने खुलासा किया कि अपने ब्लॉग से वे एक हजार डॉलर रोज कमाते हैं। हिंदी में अभी रवि रतलामी ही ऐसे ब्लॉगर हैं, जो इससे कुछ कमाई कर रहे हैं और बताते हैं कि यह कमाई भी नाममात्र की है। पर जब हिंदी ब्लॉगिंग का दायरा बढ़ेगा, हिंदी ब्लॉग पर भी विज्ञापन मिलेंगे।


महिलाओं की ‘चोखेर बाली’

माडरेटर-सुजाता

चोखेर बाली अभी कुछ दिनों पहले ही बना है। हमारा मकसद है कि स्त्री संबंधी मुद्‌दों को एक सामूहिक चेतना के साथ उठाया जाए। हम देखते हैं कि जैसे ही कोई स्त्री समाज में अपने लिए स्पेस जुटाने लगती है या अपने हक की बात करती है, तो वह पुरुष प्रधान समाज की आंखों में किरकिरी की तरह चुभने लगती है। इसीलिए हमने इस कम्युनिटी ब्लॉग का नाम चोखेर बाली यानी आंख की किरकिरी रखा है। इसके शुरू होते ही जैसी प्रतिक्रियाएं मिली हैं उससे साबित होता है कि हमारी बातें वास्तव में चोखेर बाली ही हैं।


बहस वाला मोहल्ला

माडरेटर- अविनाश

अभी हिंदी में करीब तीन हजार ब्लॉगर हैं, अगले दो तीन सालों में जब ये दस हजार हो जाएंगे तो एक बड़ी ताकत बन जाएंगे। ब्लॉगर्स कोई क्रांति कर देंगे, ऐसी खुशफहमी हमें नहीं पालनी चाहिए। हां, वे इस तरह रोल निभाएंगे कि ब्लॉग-जगत में चलने वाली बहसें पारंपरिक मीडिया को भी प्रभावित करेंगी। यह भी हो सकता है कि ब्लॉग कोई गंभीर मुद्‌दा उछाले और कोई राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन उसे उठाकर जनता में ले जाए। इस तरह ओपीनियन मेकिंग में ब्लॉग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मोहल्ला मैंने अकेले शुरू किया था, लेकिन इसका स्वरूप शुरू से ही कम्युनिटी ब्लॉग जैसा था। जब मोहल्ले में वैचारिक हलचल बढ़ने के साथ लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ने लगीं तो मुझे लगा कि इसे चलाना मेरे अकेले के बस की बात नहीं है। लिहाजा इसे अनौपचारिक कम्युनिटी ब्लॉग से औपचारिक कम्युनिटी ब्लॉग में बदल दिया। फिलहाल मोहल्ला में 50 सदस्य हैं। सदस्यता देने के मामले में हमारे कुछ मापदंड हैं।


कुंठा भगाने वाली भड़ास

माडरेटर- यशवंत

हमारी हिंदी पट्‌टी जिस सामंती कुंठा की शिकार है, उससे मुक्ति दिलाने की आकांक्षा का परिणाम है भड़ास। दरअसल हम सब दमित इच्छाओं की गठरी लिए घूमते हैं। भड़ास एक ऐसा मंच है, जहां आप बेहिचक इस गठरी को खोल सकते हैं। पहले अकेले शुरू किया था, फिर मुझे लगा कि मैं अकेला ही क्यों, हिंदी मीडिया में मेरे जैसे तमाम लोग हैं जिन्हें मन की बात कहने का मंच नहीं मिलता। तो मैंने भड़ास को खुला मंच बना दिया। इस तरह यह एक कम्युनिटी ब्लॉग बन गया। आज यह हिंदी के मीडियाकर्मियों का सबसे बड़ा ब्लॉग है, जिसमें 226 सदस्य हैं और 500 हिट्‌स रोज मिलती हैं। करीब 20 हजार लोग रोज पढ़ते हैं। सब की एक ही मंशा है कि हिंदी वाले कुंठा से मुक्त हो जाएं और अंग्रेजी को लतियाएं।


पहचान बनाने का माध्यम- विनीत

मैं ब्लागिंग को पहचान बनाने का माध्यम मानता हूं। अब आपको अपनी पहचान के लिए किसी रसूखदार चाचा, ताऊ, मामा का रेफरेंस देने की जरूरत नहीं है, सीधे ब्लॉग पर लिखो, दुनिया खुद आपकी प्रतिभा देखेगी और आपको पहचानेगी। मैं आजतक से पत्रकारिता छोड़ कर मनोरंजन प्रधान चैनलों की भाषिक संस्कृति पर रिसर्च कर रहा हूं, ऐसे में पत्रकारिता से अपने को जोड़े रखूं, इस दृष्टि से ब्लॉग एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मेरी राय में ब्लॉग एक आल्टरनेटिव मीडिया है और इसे अनिवार्यत: आल्टरनेटिव मीडिया ही रहने दिया जाए।


आम को खास बनाने वाला ‘हिंदयुग्म’-शैलेश भारतवासी

सोनभद्र, उत्तर प्रदेश का रहने वाला मैं, जब लेखन की दुनिया में आया तो पता चला कि यहां तो बड़े-बड़े नाम ही छपते हैं, नए लोगों की रचनाएं खेद सहित लौटा दी जाती हैं। मुझे लगता था कि कोई एक ऐसा माध्यम हो जहां नए लोगों को अपनी रचनाएं प्रकाशित करने का मौका मिले। जब मैंने ब्लॉग के बारे में जाना तो जैसे मेरे मन की मुराद पूरी हो गई।इस तरह हिंद युग्म का जन्म हुआ। हम न सिर्फ नए रचनाकारों को प्रकाशित करते हैं बल्कि यूनीकवि और यूनी पाठक पुरस्कार भी देते हैं। इसके अलावा हम हिंदी को इंटरनेट पर बढ़ावा देने के लिए ब्लॉग बनाने का प्रशिक्षण भी देते हैं।


जैसा समाज, वैसे ब्लॉग-मनीषा

ब्लॉग एक स्पेस उपलब्ध करा रहा है, लेकिन इसके सामाजिक असर की बात करने से पहले हमें यह भी सोचना होगा कि इस उपलब्ध स्पेस का उपयोग करने वाले कौन हैं? हमारे समाज, साहित्य, संगीत कला, सिनेमा का जैसा परिदृश्य है, ब्लॉग उससे अलग कैसे हो सकता है। यहां, कहने की आजादी कुछ अधिक है, लेकिन इससे समाज को बदल देने की बात करना कुछ ज्यादा बड़ी उम्मीद करना है। समाज बदलने की लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया होती है। ब्लॉग इस प्रक्रिया को कुछ प्रभावित जरूर कर सकते हैं। बदलाव की बात शुरू होती है तो बदलाव का विरोध करने वाली ताकतें भी सक्रिय हो जाती हैं। ब्लाग तो दोनों को स्पेस देता है।

लेखक : अरुण आदित्य

mangal font me lekha ka anand lijiye

vijay

Anonymous said...

DADA NE JAGAH BATAYA AUR AAPNE JAGAH PAR PAHUNCHA DIYA THANK U BHAI ''HALLABOL''