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12.3.08

अब अंधेरे देने लगे हैं सुकून


अब अंधेरे देने लगे हैं सुकून मुझको।
न जाने कब दूर मुझसे यह रोशनी होगी।।

तमाम लोगों के लिए तमाम किरदार जीया।
क्या अपने लिए भी कोई जिंदगी होगी।।

या खुदा अब लोग कहने लगे मुझे काफिर।
अब इससे बढ कर क्या तेरी बंदगी होगी।।

अपने पसीने से सींचा है इस जमीं को हमने।
अब इस सहरा में भी पूरी नमी होगी।।

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