होली का सुरूर हम सब पर छाया है। हर ओर रंग बरस रहे हैं। बाजार रंगीन हो गए हैं और हमारी सोच भी। सब कुछ अपने हिसाब से चल रहा है। जेबें भी हमारी गरम हैं। कुल मिलाकर टोटल मस्ती है। खैर मुददे की बात पर आते हैं। हमारे एक मित्र हैं। होली पर घर जा रहे थे, सो भांजे के लिए पिचकारी खरीदना चाहते थे। दोनों जने बाजार गए। रंग और पिचकारी की दुकान दिखी तो पहुंच गए वहां। दुकानदार ने कुछ पिचकारियां दुकान के आगे टांग रखी थीं और कुछ एक गत्ते में भरी पडी थीं। मैने गत्ते से कुछ पिचकारियां निकालीं और देखने लगा। आश्चर्य तब हुआ जब पैकिंग के उपर मेड इन चाइना पढा। मैंने दुकानदार से पूछा आपके यहां क्या सारी पिचकारियां चाइना मेड हैं। उसने हां में जवाब दिया। साथ में दलील भी दी कि हमारे यहां तो केवल वही एक घीसी पिटी पंप वाली पिचकारी बनती है, जबकि चीन की बनी पिचकारियों पर हजारों वैराइटियां मौजूद हैं। साथ ही इनकी कीमत भी काफी कम है। एक और बात यह कि इन पिचकारियों को बच्चे होली के बाद भी खिलौनों के तौर पर खेल सकते हैं। इसके अलावा चाइना मेड रंग और चाइना के गुब्बारे इस बार हमारे बाजारों में होली खेल रहे हैं। इससे पहले दीपावली पर चाइना मेड लाइट झालर और भगवान गणेश से लेकर माता लक्ष्मी तक चीन हमे मुहैया करा रहा है। यही नहीं देश की साइकिल इंडस्ट्री भी चीन से दुखी है। देश में दिनोंदिन स्टील की कीमतें बढती जा रही हैं उधर चीन सस्ती साइकिलें देश में सप्लाई कर रहा है।वह दिन दूर नहीं जब आपके बाजारों से मेड इन इंडिया लापता होगा। हर चीज मिलेगी मगर मेड इन चाइना की। हमारे उद्योग दम तोड चुके होंगे तब चीन हमारी कमर तोडेगा। फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे। अभी तो थोडे सस्ते के चक्कर में हम चीन को अपने घर की चौकठ दिखा रहे हैं। वह वक्त भी आएगा जब चीन हमारे बेडरूम में होगा और हम घर के बाहर। सोचने की जरूरत है।
सरकार की भूमिका पर सवाल
इस पूरे मसले पर सरकार की भूमिका पर सवाल खडा होता है। जिस पैमाने पर चाइना के माल हमारे देश के बाजारों में बिक रह हैं उससे एक बात तो तय है कि यह माल चीन से तस्करी के माध्यम से नहीं आ रहा। अगर तस्करी के माध्यम से नहीं आ रही तो सरकार इसकी मंजूरी दे रही है और बाकायदा कस्टम डयूटी लेकर चाइना मेड सामानों को इस देश में बेचने में मदद कर रही है। इससे साफ है कि सरकार देश के उद्योगों पर ताला लगवाने में अहम भूमिका अदा कर रही है। लोगों को यह बात समझनी होगी। नहीं तो हम अपने ही देश में पराए हो जाएंगे। अपने ही बाजार से बेदखल भी। फिर अरूणांचल भी हमारा नहीं रहेगा और दिल्ली भी हमसे जाएगी। सोचने की जरूरत है।
आप सब इस मुददे पर अपनी राय दें।
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