आ बचवा , चल चिलम लगा दे
रात भई, जी अकुलाता है
कैसा तो होता जाता है
ऊ ससुरा राम्दास्वा सरवा
अब तक राम चरित गाता है
राम्दास्वा जल्दी सो जाए
ऐसा कोई इल्म लगा दे
आ बचवा , अन्दरावा आजा
हौले से जड़ दे दरवाजा
रामझरोखे पे लटका दे
तब तक यह बजरंगी धाजा
हाँ , अब सब कुछ बहुत सही है
फट से फायर फ़िल्म लगा दे
यह कविता चर्चित युवा कवि राकेश रंजन की है . चाहें तो अपनी राय उन्हें बताएं. मोबाइल -09934841876
12.3.08
गुरु कौ बचन
Labels: कविता है है यह
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