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16.3.08

"पत्थर दिल"

कभी-कभी क्यों हम उन लोगों को गलत मान लेते हैं,जिनका कोई कसूर नहीं होता......
और कभी कभी क्यूँ हम उन्हीं से दुरियाँ बना लेते हैं,जिन्हें कभी हम अपना मानते थे.......
कभी कभी क्यों हम उन्हीं से नज़र भी नहीं मिला पाते,जिनकी नज़रों में कभी हम अपने आप को देखा करते थे......
और कभी कभी क्यों हम उनसे मिलना भी नहीं चाहते,जिनसे कभी हम मिलने के बहाने तलाशते रहते थे....
कभी कभी क्यों हम अपने दिल का दर्द उन्हें बता नहीं पाते,जिनके दिल में कभी हम रहते थे.....
और कभी कभी क्यों हम इतने "पत्थर दिल" हो जाते हैं...की किसी का दिल उसी पत्थर दिल से तोड़ देते हैं......

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सुनील भाई,लगता है कि आपने कुछ साजिश करी है कि भड़ासियों को इमोशनल करके रुलाना है । अरे यार सतही विचार लिखा करिये गहरी बातें आजकल लोगों को नापसंद हो चली हैं....
हम सब तो मोम के दिल वाले हैं भाई....

XYz said...

kya bat hai....lge rho g