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31.3.08

अपनों की बेरुखी

  • मंतोष कुमार सिंह
लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही सभी पार्टियां मतदाताओं को लुभाने की जुगत में जुट गई हैं। कई ऐसे मुद्दे उखाड़े जा रहे हैं जो वर्तमान में औचित्यहीन हैं। सभी राजनीतिक दल अपने आपको इस रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं कि जैसे वही एक मात्र जनता के हितैषी हैं। ऐसे में वामपंथी दलों की बैसाखी पर टिकी केंद्र की यूपीए सरकार भी एक-एक कदम फूंक-फूंककर रख रही है लेकिन विपक्ष की भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ केंद्र को समर्थन दे रहे सहयोगी भी सरकार की टांग खिंचने में लगे हुए हैं। चुनावी साल में केंद्र सरकार विपक्ष से ज्यादा अपनों की बेरुखी से बेचैन है। अभी अमरीका के साथ असैन्य परमाणु करार का मसला सुलङा भी नहीं है कि वामपंथी दलों ने महंगाई और छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन की धमकी दे डाली है। वहीं मौके की नजाकत को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भी पाशा फेंक दिया है। भाजपा ने वामदलों को चुनौती दी है कि वे केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेकर दिखाएं। यह सच है कि वेतहाशा बढ़ती महंगाई ने आम आदमी को मुश्किल में डाल दिया है। रोजमर्रा की सभी वस्तुओं की कीमतें सातवें आसमान पर हैं। केंद्र सरकार के तमाम दावों और उपायों के बावजूद महंगाई में निरंतर वृद्धि जारी है। फल, सब्जियों, मसूर, जौ, कच्ची रबर, सरसो, बिजली, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल, आटा, गुड़, खांडसारी, रवा, सूजी और मैदा के महंगे होने से मुद्रास्फीति की दर १५ मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में ०.७६ प्रतिशत की तीव्र बढ़ोतरी के साथ ६.६८ प्रतिशत पर पहुंच गई। मुद्रास्फीति का यह स्तर ५९ सप्ताह में सबसे ज्यादा है। सकल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति का आलोच्य सप्ताह का स्तर २७ जनवरी २००७ को समाप्त हुए सप्ताह के ६.६९ प्रतिशत के बाद सर्वाधिक है। पिछले साल १७ मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में मुद्रास्फीति ६.५६ प्रतिशत और इस वर्ष आठ मार्च को ५.९२ प्रतिशत थी। ऐसे में सहयोगी दलों को सरकार के साथ होना चाहिए। सहयोगियों को महंगाई से निपटने के लिए एक मंच पर बैठकर मंथन करना चाहिए न की सरकार की खिंचाई करनी चाहिए। क्योंकि खिलाफत करने से समस्या का समाधान संभव नहीं है। इससे परोक्ष रूप से विपक्ष को ही फायदा होगा। अगर ऐसा ही रहा तो निश्चित तौर पर वामदलों की बेरुखी का खामियाजा केंद्र सरकार को लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा। सरकार को भी इसका एहसास हो गया है। इसलिए वह कोई भी कदम काफी सोच समङा कर आगे बढ़ा रही है।

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सिंह साहब ,अगर आपके पास संबंधित किसी मंत्री का पोस्टल एड्रेस हो तो भड़ास पर डाल दीजिये हम सब मिल कर अपने पुराने जूते-चप्पल पार्सल से भेज देंगे उन्हें....
जय जय भड़ास

Anonymous said...

भाई,
गन्दा है पर धंधा है ये।
तभी तो राजनीती है। चुनाव आते ही सभी को अपने नाव की तलाश रहती है । चुनाव के बाद हरे भरे नाव जो सरकारी खजाने से चलते हैं मैं जाने से किसी को कोई गुरेज नही होता। वैसी भी विपक्षों और सहयोगियों का तल कटोरा तो हम सभी पिछले कई सालों से देखते आ रहे हैं। चाहे वो N D A की सरकार हो या U P A की या और कोई गठबंधन सभी के जूतम पैजार लोग आदि हो गए हैं और हमे ये भी पता है की ये सभी एक ही तलब मैं नहाने वाले कीडे हैं।
जय भड़ास
जय जय भड़ास