साल के एक दिन केवल याद करने के लिए है महिला दिवस। अगर ऐसा न होता तो जो मर्द महिला दिवस के बारे में लिखते हैं, वो अपने घरों में अपनी महिलाओं--मां, बेटियों, पत्नी....को कभी कैद करके नहीं रखते। ये तो कैद ही है ना...कि तुम कहां गई थी, किससे बात कर रही थी, क्या पहन रखा है, छत पर क्यों खड़ी थी, टाइम से खाना क्यों नहीं बनाया, तुमने क्यों सब खा लिया, सड़क पर वहां क्या कर रही थी, घर देर से क्यों लौटी, किसका फोन आया था, इतनी देर तक क्यों सोती रही.....
सैकड़ों सवाल इसी तरह के मर्दों की जुबान से निकलते हैं और स्त्रियों को एक सवाल के रूप में खड़ा कर देते हैं। उनकी आत्मा धीरे धीरे इन सवालों के अनुरूप बनने के लिए तैयार होने लगती है। इस प्रकार बन जाती है एक ऐसी स्त्री जो खुद होते हुए भी खुद नहीं होती।
महिला दिवस पर इन तमाशाइयों से केवल एक सवाल करना चाहिए। केवल एक सलाह बोलना चाहिए....आप अपने घर में कृपया अपनी महिलाओं को आजाद कर दो, उन्हें पुरुषों जैसी छूट और अधिकार दे दो, उन्हें रोको टोको मत, वो समझदार हैं, उन्हें खुद पता है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
सेक्स और शरीर की पर्यायवाची बन चुकी स्त्रियों को मुक्ति तभी मिलेगी जब वो सेक्स और शरीर से उपर उठें और यह तभी संभव है जब वो अपने पैरों पर, अपने कदमों पर, अपने दिमाग के आधार पर जीना, चलना, बोलना और लड़ना सीख लें।
नारेबाजी करने वाले पुरुषों, बौद्धिकता झाड़ने वाले विद्वानों, खुद को सहज और सरल बताने वाले मर्दों से अनुरोध है कि जितना वो अपने बेटे को प्यार देते हैं, जितना वो अपने पुत्र को छूट देते हैं, जितना वो अपने लाडले के लिए चिंतित रहते हैं, बस....उतना ही, न उससे ज्यादा और न उससे कम, अपनी बिटिया, अपनी पत्नी, अपनी बहन और अपनी मां के लिए करें। तभी हम सही मायनों में महिला दिवस को सार्थकता प्रदान करेंगे।
सभी साथियों को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हुए अंत में रघुवीर सहाय की चार लाइनों को सिर के बल खड़ा करके उनसे आठ-दस लाइनें निकालकर लिखना चाहूंगी..
मत पढिए गीता
मत बनिए सीता
मत स्वीकार कीजिए
किसी मूर्ख की बनना परिणिता
मत पकाइये भर भर
तसला भात
मत खाइए सब कुछ करके
भी लात
आपही के हाथ में है
आपकी शान
आपको ही बचानी है
खुद की आन
हर पल, हर पग पर लड़ना पड़े
तो लड़िए
पर चीज के लिए कहना पड़े
तो कहिए
बहुत सुना, बहुत रोया, बहुत सोचा
अब चलिए
बहुत सहा, बहुत झेला, बहुत पूछा
अब करिए
निकलिए दर ओ दीवार के पार
दूर तक फैली है धरती
दूर तक फैला है आसमान
छू लो चूम लो उस तारे को
जो अकेले में भी चकमक
अड़ा है खड़ा है बनकर महान
आपकी
गंदी लड़की
7.3.08
तमाशा है महिला दिवस, अपने घर की स्त्रियों को तो आजाद करो
Labels: गंदी लड़की, तमाशा, महिला दिवस
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3 comments:
GANDI LADKI JI...VAH ..PARIVARTAN KI BAYAR ISKO KAHTE HAIN.AAPNE JIN SHABDON SE SAHAS KA YAH RUP DIKHLAAYA HAI VAH VAKAI KAABILE TARIF HAI.HAM JAB TAK APNA AAVRAN NAHI UTARENGE TAB TAK SAMANTA KI KALPNA BEMANI HOGI.SALAM AAPKO AUR SWAGAT AAPKE SOCH KEE...
JAI BHADAS
JAI AAP JAISI SOCH
JAI PARIVARTAN
मनीष भइया, जय यशवंत लिखना भूल गये या कुछ और बात है कि जिधर जैसा माहौल देखा वैसा नारा लगा दिया लेकिन आप ठीक हैं गणेश जी के मंदिर में जय भोलेनाथ तो नहीं बोलेंगे न पर ये महिला दिवस मनाने वाले लोगों से मुझ जैसे ढ़ाई करोड़ से ज्यादा लोग कैसे छूट जाते हैं । अपनी बहन की बात का बुरा मत मानना मेरे भाई मैंने जीवन में पहली बार भड़ास पर आकर मजा़क करना सीखा अब मैं खुल कर हंसती हूं पहले हरदम अपनी कमी पर रोती ही थी । आप में से किसका किसका जय बोलूं सब तो मेरे भाई हैं इसलिये सभी भाई बहनों की जय और जय भड़ास
he gndi ldki tum mhan ho pyari...lekin mangne se kuchh milega nhi....aurt utr jae is hd pr kr lo kya krte ho...mai to krungi apne mn ki...
jai gndi ldki
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