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12.3.08

हिंदी के ये कनफ्यूज बौद्धिक ब्लागर कब सुधरेंगे??

जान लीजिए, ट्रेंड सेट करने का आपका जमाना गया और जो लोग आज ट्रेंड सेटर बने हैं, वो चाहे भड़ास हो या कोई और, उनका भी जमाना जायेगा...क्योंकि आ रहे हैं अपने जन, अपने लोग, अपनी जनता....उन गली कूचों मोहल्लो गांवों कस्बों से जहां सब कुछ आदिम और अनगढ़ है और प्रकृति के नजदीक है। आप शहरी बाबू लोग, एक्सट्रा सेंसेटिव होने के नाटक कर रहे लोग, कनफ्यूज लोग, अपने परिवार व मास से कटे हुए लोग.....केवल रोयेंगे और रोते रोते एक दिन हार्ट अटैक के कारण मर जायेंगे क्योंकि आपने जीवन में सिवाय अपने सुख, अपनी इगो, अपनी बुद्धि के अलावा कुछ जिया ही नहीं, कुछ किया ही नहीं।

झांकिए अपने अंदर
क्योंकि साथी बड़ा आसान है किसी को गरिया देना
बड़ा आसान है हर सबको प्यार करना
अपने ही जन हैं जो बिगड़े हैं
अपने ही जन हैं जो आ रहे हैं
अपने ही जन हैं जो सुधरेंगे
इन्हें प्यार करो, चूमो
इनके आने की खुशी में उत्सव करो
खुश हो, खुश रहो....
कि सदियों के जख्म भरने वाले हैं
सदियों की तपस्या पूरी होने वाली है
हिंदी की जय होगी, हिंदी वालों की जय होगी
अपनी पूरी भदेस और बिगड़ैल तेवरों के साथ
हिंदी छाती रहेगी, गाती रहेगी....
क्योंकि इनके साथ है वो अनगढ़ जनता
जिसने आज तक बचा रखा है प्रकृति को
मनुष्य को करीब, भाषा को जिंदगी के करीब


उपरोक्त बातें लिखने के पीछे का संदर्भ भी जान लें आप। अभी मैं मुंबई के एक कथित बौद्धिक हिंदुस्तानी ब्लागर की पोस्ट पढ़ रहा था। उन्हें उबकाई और छी छी आ रही है। भड़ास के ज्यादा पढ़े जाने, भड़ास के सर्वाधिक पसंद किए जाने, भड़ास की भाषा, भड़ास के ट्रेंड सेटर बनते जाने.....से उन्हें बड़ी दिक्कत है। उन्हें पूरे हिंदी समाज पर तरस आ रहा है। उथलेपन पर रोना आ रहा है। और आज उन्हें कुछ नहीं मिला तो इसी पर पेल दिया अपना आलेख। ब्लागवाणी की टाप रैंकिंग की फोटो खींची और जुट गए की-बोर्ड पटकने में। गरियाओ, सबको गरियाओ....तभी तुम महान बन सकते हो। और एक ही लेख में उन सबको, जिनसे जिनसे उन्हें उबकाई आती है, गरिया दिया। और अंत में हर विद्वान लेखक की तरह...द इंड करते समय हिंदी समाज, देश व संस्कृति आदि की चिंता जताते हुए हाय हाय करते हुए आंसू बहाते हुए ....लेख खत्म कर दिया और कंप्यूटर टर्नआफ करके निकल लिए। अपनी रोजी रोटी पर, अगली सुबह फिर खोलेंगे कंप्यूटर और सोचेंगे कि आज किसे थू थू करके गरिया दिया जाए या क्या लंतरानी पेल दी जाए ताकि लोग पढ़ें और कहें, वाह वाह वाह वाह, आप महान, अदभुत, शानदार, बिलकुल सही कहा.....तो, ठीक है भइये....लगे रहो......रणनीति अच्छी है.....।

वो मुंबई का कथित बौद्धिक ब्लागर कोई एकमात्र नहीं है। ब्लागिंग में ऐसे ढेर सारे दुखी आत्मपीड़ित और कोई काम न होने पर देश समाज की दशा दिशा पर हाय हाय करने वाले ब्लागर हैं। पिछले दिनों इन्हीं दुखों से दुखी लोगों की ऐसी ही कई पोस्टें आईँ, आ रही हैं, और भी आएंगी.....

ये लोग कौन हैं? इन्हें जानना बहुत जरूरी है। क्योंकि दरअसल ये चाहे भले कुछ न करे, कनफ्यूजन तो फैला ही देते हैं। और मालूम है, सबसे ज्यादा कनफ्यूजन कौन फैलाते हैं, जो खुद सबसे ज्यादा कनफ्यूज लोग होते हैं।

मेरा बहुत साफ मानना है कि दरअसल हिंदी समाज में अब भी खुले दिल दिमाग वाले बुद्धिजीवियों का घोर अकाल है। और जो बुद्धिजीवी हैं वो घोर कनफ्यूज लोग हैं। अपनी जड़ों से कटकर शहर आए और आत्मकेंद्रित होकर बैठ गए। अपने लिए कमाना, अपने लिए जीना और लिखना पढ़ना पूरी दुनिया और देश के लिए। जिनके जीवन में कहीं सामूहिकता न हो, जो अपने लोगों अपने परिजनों को दुत्कारता हो, अपने लाभ और अपने हित के लिए किसी हद तक गिर उठ सकता हो....ऐसे लोगों को अगर आप बुद्धिजीवी मानेंगे तो हो चला काम।

सवाल उठता है बुद्धिजीवी होता कौन है?

मैं जो अब तक समझ बूझ पाया हूं उसके मुताबिक बुद्धिजीवी समाज व देश का असल प्रतिनिधि होता है, उसे अपने लोगों, अपने समाज, अपने देश का हर रोयां रेशा ठीक-ठीक पता होता है। मैं बात आंकड़ों की नहीं, लोगों के दिल, लोगों के समूह, लोगों के संप्रदाय, लोगों की जाति, लोगों की पीड़ा, लोगों के सुख, लोगों की प्रवृत्ति, लोगों की दिक्कतें, लोगों का इतिहास, लोगों की कुंठाएं, लोगों के सपनों...... । असल और अपने जन का बुद्धिजीवी कभी कनफ्यूज नहीं होता, कभी हाय हाय नहीं करता, कभी रोता नहीं। उसका विजन अपने जन को लेकर, अपनी भाषा को लेकर, अपनी संस्कृति को लेकर बिलकुल साफ होता है। उसे अपने दुश्मन ठीक ठीक पता होता है। वो अपने जन का बुद्धिजीवी अपने बच्चों को कभी नहीं डांटता, उनकी कमजोरियों पर कभी नहीं चिल्लाता, उन्हें प्यार से समझाता बुझाता और उनके ही अनुभव के आधार पर उन्हें सही दिशा में ले जाने की कोशिश करता है क्योंकि उसे पता होता है कि ये मिट्टी के घड़े हैं, ये ऊर्जावान हैं, ये नई पीढ़ी हैं, इन्हें मस्त रहने दो, इन्हें विचरने दो, इन्हें छाती फुलाकर सांस भर लेने दो, इन्हें आसमान के तारे गिन लेने दो,,,क्योंकि कल ये ही लोग अपन जन को नेतृत्व देंगे, अपने जन के लिए लड़ेंगे मरेंगे.....। तो जो अपने जन का बुद्धिजीवी होता है उसे कभी गुस्सा नहीं होता, दादा जी की तरह क्योंकि उन्हें सब पता होता है।

पर हाय अपने हिंदी के नफासतपसंद बुद्धिजीवी। देसज लोगों की भाषा हिंदी और गांवों की भाषा हिंदी और उत्तर प्रदेश बिहार की भाषा हिंदी के बुद्धिजीवी दरअसल बुद्धिजीवी नहीं बल्कि वो कुंठित पलायित और भटके हुए लोग हैं जिन्होंने जीवन में कभी सामूहिकता को जी ही नहीं सके है। और तो और, इन्हें अगर अपने ही दादा चाचा काका मामा की ज्वाइंट फेमिली के साथ रहने को कह दिया जाए तो कुछ ही दिनों में ये अपने घर वालों को ही चूतिया घोसित कर नालायक व बेवकूफ बताकर अकेले चूल्हा जलाने को निकल लेंगे।

तो भइये....मुंबई के कथित बौद्धिक ब्लागर ने जो उबकाई और थू थू और छी छी महसूस की है, वो अभी और भी ढेर सारे लोग महसूस करेंगे क्योंकि अब इनका बौद्धिक प्रलाप टार रेटिंग से उतर रहा है तो इन्हें कष्ट होना लाजिमी है। दूसरा, हम हिंदी वाले अनगढ़ और देसज लोग अगर अपनी अनगढ़ भाषा व बोली में अपनी बात पूरी चिल्ल पों के साथ कह रख रहे हैं तो इन भगोड़े देसजों को खराब लगेगा ही।

ये नास्टेल्जिक लोग हैं जो अपनी मिट्टी व अपने गांव को सिर्फ इसलिए महसूस करते हैं क्योंकि उससे लेखन में बड़ी उर्जा मिलती है और खुद को बुद्धिजीवी साबित करने का मौका मिल जाता है। पर ये भटके हुए हिंदी के चिंतकों के पास अपनी भाषा और अपनी माटी और अपने जनों की मुक्ति के लिए कोई भी सामूहिक संकल्प, योजना, मिशन, सपना....हो, कतई संभव नहीं। क्योंकि ये सब करने के लिए आदमी को फक्कड़, औघड़, सूफी, फकीर बनना पड़ता है और अपना सब छोड़कर दूसरों को अपना मानकर एक सामूहिक जीवन जीना पड़ता है। जो लोग अपना परिवार और अपने परिजनों को नहीं संभाल सकते, वे दूसरों को कैसे गालियां देकर गंदा बता सकते हैं, मुझे समझ में नहीं आता।

हमें इंतजार रहेगा उन बड़े हृदय, सहज आत्मा, सरल व्यक्तित्व के हिंदी बुद्धिजीवियों का जो गाली से लेकर सौंदर्य तक के पीछे छिपे दर्शन को बेहद सहजता से समझते हों और उन्हें एक दिशा में निरुपित करने में मास्टर हों।

हे बौद्धिकों, बड़ा आसना होता है चिंता करना, गरियाना, थू थू करना....पर बेहद मुश्किल होता है अपने जनों को प्यार करना, उनमें अच्छाई देखना, उनकी बुराई को अच्छाई में तब्दील कर पाने की क्षमता रखना....। आखिर इसी अपने समाज के बुरे भदेस देहाती लड़कों, लड़ाकों, साथियों, पढ़े लिखों, अपढ़ों की ताकत के साथ ही हम हिंदी समाज में काया पलट कर पाने की सोच सकते हैं और आप चूतिये इन्हीं को गरिया रहे हो और अपने को महान बता रहे हो तो जरूर कोई खोट आपकी सोच में है। वरना, लोग आप को हिंदी समाज का नेता मानकर आपके घर के सामने नारे लगा रहे होते...। पर हाय, आप तो अपनों की फोन पर भी खबर नहीं लेते, पूरी हिंदी समाज के कल्याण उत्थान के लिए कैसे कुछ कर सकते हो।

बस केवल आप गाल बजा सकते हो, हवा में शब्द उछाल सकते हो....और फिर रोजी रोटी कमाने के लिए चमकती शर्ट व कोट पहनकर निकल जाते हो.....।

तो हे हिंदी के कनफ्यूज लोगों, एक बात गांठ बांध लो, आप लोगों का वजदू बस केवल कुछ दिनों का है। ये जो नई खेप आ रही है ना, उसमें अगर मैं खुद भी उनके प्यारे साथी के रूप में काम नहीं कर पाया तो वे लात मारकर भगा देंगे और कहेंगे कि निकल जाओ चूतियों, हम अपनी लड़ाई खुद लड़ लेंगे, तुम जैसे कनफ्यूज की जरूरत नहीं।

हिंदी के उत्थान, अभियान, व मुक्ति के इस दौर में हम सभी हिंदी बुद्धिजीवियों को अपने सभी अच्छे बुरे लोगों को एक साथ लेकर चलने की सोचना चाहिए। इसके लिए हिंदी बुद्धिजीवियों को अपने एक किलो के इगो को खत्म करना होगा और अपने जन की सोच व सुंदरता को समझने की कूव्वत रखना होगा।

खैर, एक कहावत है न, लात के भूत बात से नहीं मानते तो हिंदी बुद्धिजीवियों के साथ भी यही है। जब उनके ही जन उन्हें लतियायेंगे तो वो समझ पायेंगे कि दरअसल वो गलत सोच रहे थे और फिर वे खुशी खुशी अपने जन की सामूहिक सोच व खुशी के साथी बन सकेंगे।

जय भड़ास
यशवंत

8 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,मेरे दिल की बात बस कुछ पहले कह दी क्योकि मैं भी इसी मुद्दे पर टिपटिपा रहा था ,मै तो मानता हुं कि हिन्दी के नवोदित ब्लागरों को प्रोत्साहन के लिये भड़ास की ओर से पुरुस्कार की व्यवस्था करी जाए और जिसकी जलती है तो हम लोग फ़ायर ब्रिगेड का आफ़िस नहीं खोल कर बैठे हैं कि उनकी बुझाएं । बुद्धिवादियों को ईश्वर छोटा सा दिल भी दे दे ऐसी प्रार्थना है .....
जय जय भड़ास

rakhshanda said...

u r right sir...very nice

Anonymous said...

DADA...LAAT KAA DEVTAA SACHMUCH BAAT SE NAHI MAANEGAA,ISLIYE AAPNE JO AAHVAAN KIYAA HAI US PAR CHALNE KE LIYE PURI JOR LAGAAUNGAA.
JAI BHADAS
JAI YASHVANT
MANISH RAJ BEGUSARAI

अनिल रघुराज said...

यशवंत जी, आपकी भावना से शत-प्रतिशत सहमत हूं। मुझे भी, "इंतजार रहेगा उन बड़े हृदय, सहज आत्मा, सरल व्यक्तित्व के हिंदी बुद्धिजीवियों का जो गाली से लेकर सौंदर्य तक के पीछे छिपे दर्शन को बेहद सहजता से समझते हों और उन्हें एक दिशा में निरुपित करने में मास्टर हों।"
हमारे समाज में ऐसे ही मंथन की जरूरत है। आपने कन्फ्यूज्ड कहा, सही है। यही कन्फ्यूजन तो दूर करने में लगा हूं। लेकिन यह गफलत मत पालिएगा कि लातों के भूत कहने से डरकर मैं आपको यह 'सफाई' दे रहा हूं।

यशवंत सिंह yashwant singh said...

shukriya anil sir, aap ka badappan hai jo ham achhuton ke edhar aakar comment kar rahe hain.

wakayi sochne ki jarurat hai ki ham loag gaali kyo dete hain. Bhadasi to ghosit gaalibaaz hain, dheere dheere sudhar jayenge lekin aap jaise sudhre aur sabhya loag jab gaali dete hain to kast hota hai ki aakhir dil ka badappan kab aayega jab ham apne gande, achhut, bhatke, kunthit bayiyo ko gale laga payenge, jaadu ki jhappi de payenge, unhe bata payenge ki tum jaiso bhi ho, sundar aur natural ho, bas sikhte huwe aage badh.....

khair, phir kabhi vistaar se baat hogi lekin aap jaise loag agar Bhadas jaise mancho ka positive use na karke kewal gaali denge to sthiti aur bigdegi.... agar wakayi chahte hain ki ham sab positive hokar sochen to bhadasiyo ko pyar se samjhana ho...

dr. rupesh na Blogvani Ka Nash Ho namak post me jis mudde ko uthaya, uspe kisi ne baat nahi ki, gaali aur shabdon ko sab pakad lete hai. ye ham logon ka mental level hai.....

thanks again for ur comment.

yashwant

Unknown said...

are guruon emotional kaahe hote ho bhaiye....are lge rho andhera jit loge...sbko bolne do, khud bhi bolo...bat niklegi to dur tk jaegi...
keep smile dear...

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

यशवंत सर,आज आपसे बात किया तो थोड़ा डर था मन में ,अब खत्म हो गया और अधिक इज्जत बढ़ गयी । आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं ।
अब गाली भी देंगे जरूरत पर तो हिन्दी में देंगे...
जय भड़ास

Anonymous said...

DADA HAM JARUR JITENGE,NANGAI SE UNKE AAVRAN KO NOCHKAR FENKENGE HAM AUR HAMARA BHADAS.AB''CHOD'' SHABD KI JAGAH 'BHOG' KA ISTEMAL KARENGE HAM. VYAVHAR MEIN JO JI RAHE HAIN US KO SHABD KA RUP DEKAR GAANR MEIN ACID DAALENGE HAM.KYUNKI HAM NAALI KE KIRE UNKE GHAR KI NALI MEIN GHUS CHUKE HAIN AUR AB HAM UNKO PAAD-PAAD KAR SUNGHAA SUNGHAAKAR EHSAS DENGE KI TU AUR TERI MENTALITY KITNI INCENSE STICK KI MAAFIK MAHAKTI HAI.
JAI BHADAS
JAI YASHVANT
MANISH RAJ BEGUSARAI