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9.11.09

हिन्दी - ठंडा.. पर अंग्रेजी - कूल !!

आज यह लेख पढ़ रहा था.. तो सोचा कि चूँकि मैंने अपने पिछले पोस्ट में अब क्रियाशील होने की बात कही है तो उसे पूरा क्यों ना करुँ भला?

सबसे पहले ये बता दूं पिछले पोस्ट में मुझे यह टिप्पणी मिली.. उसका उत्तर दे देता हूँ..

जनाब 1 बात मेरे अन्दर घर कर गयी है.. जिसे मैं उतना नहीं मानता था पर अब मेरा भी इस पर सत-प्रतिशत विश्वास हो गया है | आपने कहा कि लड़कियों की बातें अगर मैं सुन लेता तो मुझे पोस्ट में लिखने के लिए और भी विषय मिल जाते |
बुजुर्ग जो भी कहते हैं वो उनके बुजुर्गियत का निचोड़ होता है और उन्होंने सच ही कहा है कि औरतों को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है (ये तो डॉन जैसा डायलॉग है :) ).. और यह बात को मैं गाँठ बांधकर चलता हूँ..
अगर आप कहते हैं कि उनके दुःख को समझकर मैं कुछ लिखूं तो मुझे तो बख्श ही दें.. उनके दुःख तो ऐसे बदलते हैं जैसे कोई लड़का अपनी गर्लफ्रेंड बदलता हो (इस बात पर आपको विश्वास करना ही होगा.. बड़े शहरों का तो खेल है ये) !! आज वो इसलिए दुखी हैं.. और कल किसी और के लिये.. बेचारा दुःख भी उनसे दुखी हो चुका है..
तो मैं बेहद खुश हूँ कि मैंने उनकी दुःख भरी बातें नहीं सुनी.. और ना ही लोगों को दुखी किया (अगर सुनकर पोस्ट कर देता तो कितने लोगों की बददुआएं लगती.. सोचिये !!).. तो यही मेरा उत्तर है..

अब इस पोस्ट के शीर्षक की बातें करूँ?
हिन्दी हमारी मातृभाषा होते हुए भी.. पता नहीं अन्दर 1 गाँठ सी पड़ी है.. लोगों को ये इतनी गिरी हुई भाषा क्यों लगती है? अंग्रेजी में कहें तो - "सो मिडिल क्लास टाइप".. जब तक जबान पे अंग्रेजी की खिट-पिट शुरू नहीं होती तो लोगों को ऐसा लगता है मानों कोई गंवार बक-बक कर रहा था..

आखिर ऐसी क्या बात है कि हिन्दी में बात करना हमारे लिए "कूल" नहीं होता है? ठीक है माना कि हम शुद्ध हिन्दी नहीं बोल सकते (अगर ऐसा हुआ तो भारत की आधी जनता आत्महत्या कर सकती हैं यह मेरा दावा है !!)..पर हिन्दी की दुर्गति (बोले तो वाट्ट) क्यों कर रहे हो महानुभावों? ऊपर वाले लिंक में जनाब ने कहा कि हमें कट्टर नहीं होना चाहिए.. हम ट्रेन को लौहपथगामी नहीं कह सकते.. ठीक है माना.. पर ऐसा कहने को कौन बोल रहा है? हम कट्टर तो नहीं है पर कम-स-कम साफ़ हिन्दी तो बोलो | हर 2 शब्दों के बाद जो अंग्रेजी अपना चेहरा सामने ले आती है उसका कारण यही है कि हम कट्टर नहीं हैं.. वरना पता चला कि हम तालिबानियों की तरह हो गए और 1 अंग्रेजी शब्द निकलते ही काम तमाम ! हा.. ऐसा तो हम कह ही नहीं रहे हैं |

भारत में मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की आधी जनता को हिन्दी आती ही नहीं है.. और क-ख-ग वाली अक्षरावाली तो कम से कम 90% लोग पूरा सही बोल ही नहीं पाएँगे (और इसपर शर्म की बजाय गर्व से कहेंगे - "दैट इज सो मिडिल क्लास टाइप").. और अभी पूछो - "बेटा A-B-C बोलो.." तो वो दो साल का छुटकू सा बच्चा फर्र से बोल लेगा..
गलती उन लोगों की नहीं है जो हिन्दी बोलते, लिखते हैं और पूजते हैं.. गलती तो हम बच्चे के बचपन से ही करते हैं..

मैं तो कहता हूँ की A-B-C सिखाने से पहले उसे क-ख-ग सिखाया जाय.. देखें की वो आगे चलकर कम-स-कम साफ़ हिन्दी बोल पाता है कि नहीं..

हम शुरू से ही उस मासूम के आस-पास ऐसा परिवेश तैयार कर देते हैं जिससे उसमें हिन्दी के प्रति हीन भावना जागृत हो उठती है.. मैं जिन सामाजिक नेट्वर्किंग साइट्स में शामिल हूँ, उनमें से शायद 1 या 2 लोग ही हैं जिन्होंने हिन्दी उपन्यास पढ़े हों.. अंग्रेजी पढ़ना कोई बुरी बात नहीं है.. पर हिन्दी को भी उतनी ही प्राथमिकता देने की ज़रूरत है..

अंग्रेजी स्कूलों में अंग्रेजी पहली भाषा होती है विषय के तौर पर और हिन्दी दूसरी भाषा है.. क्या यह आश्चर्य और दुःख की बात नहीं है कि जिस राष्ट्र की मातृभाषा हिन्दी है, उसी राष्ट्र के 50 से ज्यादा प्रतिशत स्कूलों की पहली भाषा हिन्दी नहीं है? !
सरकारी स्कूलों के बारे में मुझे सही-सही मालूमात नहीं है पर वही भेड़-चाल हर जगह अपने पैर घर कर चुकी है.. वहां भी हिन्दी से ज्यादा अंग्रेजी का ही बोलबाला है..

*इस पोस्ट में 1 ऐसी बात है जो मैं अंत में आप सबके सामने रखूँगा और आपको वह पढ़कर बिलकुल भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि सच आश्चर्यचकित करने के लिए नहीं वरन आँखें खोलने के लिए होती है..

साथ ही साथ दुःख की बात यह है कि बिट्स पिलानी जैसे श्रेष्ठतम कॉलेज में भी हिन्दी लिखने वाले बहुत कम है.. और जहाँ तक मेरी जानकारी है, कैम्पस के जिन्दा(जो कम-स-कम महीने में एक बार अद्यतन होते हैं) हिन्दी ब्लॉग में केवल 1 या 2 लोगों का ही नाम आ सकता है..

तो यह तो हिन्दी का दुर्भाग्य ही है कि राष्ट्र भाषा होते हुए भी सड़कों के आवारा पशुओं की भाँती उसे देखा, सुना जाता है..
पर इसमें उसकी भी क्या गलती है.. गलती तो हम जैसे "सो कॉल्ड" यूथ की है जिन्हें हिन्दी बोलना/लिखना ठंडा पर अंग्रेजी बोलना/लिखना उतना ही कूल लगता है !!

तो ना ही हम कभी कट्टर रहे और न ही कभी रहेंगे और शायद यही 1 बिंदु है जो हिन्दी की दुर्गति को कभी रोक नहीं पाएगा.. अब फैसला तो आप पर है.. क्या कट्टर हो कर हिन्दी को बचाएं? या नर्म रह कर हिंगलिश को बढ़ावा दें?
तो आप इस कट्टर प्रश्न पर मंथन करते रहिये और हम इस विराट सागर में एक बूँद पानी का योगदान ऐसे छोटे-छोटे लेखों से करते रहेंगे..

जाते जाते एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ :
आशुतोष राणा जो कि हिन्दी फिल्म जगत के जाने-माने कलाकार हैं, 1 बार किसी विदेशी से भारत में मिले..
विदेशी : How are you?
आशुतोषजी : मैं बढ़िया हूँ.. और आप?
(किसी ने अंग्रेजी में बताया कि वो क्या कह रहे हैं..)
इस पर उस विदेशी को बड़ी हैरत हुई की इन्होने हिन्दी में जवाब क्यों दिया...पर कुछ पूछा नहीं..

कुछ महीनों बाद आशुतोषजी उसी विदेशी के शहर पहुंचे..
इस बार :
विदेशी : आप कैसे हैं? (उसने हिन्दी ख़ास आशुतोषजी के लिए सीखी थी !!)
आशुतोषजी : I am doing fine. What about you? क्यों अचंभित हुए कि मैंने इस बार भी उल्टे भाषा में जवाब क्यों दिया? बताता हूँ : पिछली बार जिस तरह आपने अपनी भाषा का सम्मान किया, उसी प्रकार मैंने भी अपनी भाषा का सम्मान किया और इस बार जिस तरह आपने मेरी भाषा का सम्मान किया, ठीक उसी तरह मैं भी आपकी भाषा का सम्मान करता हूँ..

तो ऐसे लोग भी हैं जो कट्टर न होते हुए भी लोगों को जीत लेते हैं... ऐसे लोगों को हमेशा नमन..

हाल फिलहाल प्रेमचंदजी की गोदान और गबन पढ़ी.. अन्दर से हिल गया बिलकुल...
वो आदमी को अन्दर से प्रस्तुत करते हैं और ऐसा लगता है मानों पूरे समय कोई फिल्म चल रही हो ठीक आपके सामने..
ऐसे लेखक को सौ बार नमन है..

*इस पोस्ट की ख़ास बात : मैंने सभी अंकों को अंग्रेजी में ही रख छोडा है क्योंकि मुझे पूर्ण भरोसा है कि १,२,3,४,५,६,७,८,९.. यह भी भारतीय जनता के लिए याद रख पाना समुद्र में से मोती ढूँढ निकालने के बराबर का काम है.. :)

इस पोस्ट का गाना पढ़ते जाइये :
ब्रेथलेस (बेदम.. अगर मैं कट्टर हो जाऊं तो :) )
शंकर महादेवन का एक बेहतरीन गाना..

आदाब.. खुदा हाफिज़..

1 comment:

Madho Doordarshi said...

Letter to RAJ Thakre
हम हिन्दी का उतना ही सम्मान करते हैं जितना अन्य या आपकी मराठी का । कितनी मरवाओगे अपनी हरकतों से बाज आओ। और माफ़ी मांगो। मैं तुमसे या तुम्हारे चमचों से नहीं डरता क्योकि हम to अपने दिल का भरास लिखे गा ही। मूर्खिस्तान Jindia बाद ! MNS झंडू बाम।
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