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6.1.11

बनारस के जल कुंड में जहरीली काई

वाराणसी के कई मोक्ष दायिनी समझी जाने वाली जल कुंड घातक बीमारियों का कारक बन चुके हैं। इसमें स्नान या जल ग्रहण करने से आप लीवर सिरोसिस या त्वचा संबंधी रोग का शिकार हो सकते हैं। इस तथ्य का खुलासा काशी हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के एक रिसर्च पेपर से हुआ है। जिसमें प्रसिद्घ कुंडों के पानी को अत्यंत जहरीला बताया गया है। माइक्रो सिस्टिस नामक काई को इसकी मुख्य वजह बताया गया है। 

सदियों से हिंदू समाज में यह मान्यता है कि काशी के कुंडों में स्नान या जल के ग्रहण करने से मुक्ति मिलती है। लेकिन अब इन कुंडों का पानी ग्रहण करने से मुक्ति तो नहीं अलबत्ता शारीरिक रोगों के जरूर शिकार हो सकते हैं। इस बारे में बीएचयू के बायोटेक्नॉलजी ने एक रिसर्च पेपर में कुंडों के जहरीले हो चुके पानी का उल्लेख करते हुए कहा गया कि माइक्रो सिस्टिस काई से माइक्रो सिस्टन नामक जहरीले तत्वों का उत्सर्जन हो रहा है। 

रिसर्च में बताया गया है कि वाराणसी के एक दर्जन प्रसिद्घ कुंडों में माइक्रो सिस्टिस नामक काई के कारण जलीय जीव-जंतु का जीवन भी खतरे में है। इस जल के सेवन से जहां लीवर एवं किडनी पर घातक असर पड़ सकता है वहीं स्नान से त्वचा को भी नुकसान हो सकता है। रिसर्च में बताया गया कि डब्ल्यूएचओ ने जल में एक माइक्रोग्राम तक माइक्रो सिस्टन को सुरक्षित माना है लेकिन यहां के कुंडों में इसकी मात्रा काफी अधिक है। जो लोगों के शरीर पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। 

इस तथ्य का खुलासा होते ही यूनिवर्सिटी ने इस बारे में वाराणसी जिला प्रशासन को इस बारे में अवगत कराते हुए चिह्नित कुंडों में स्नान-जल ग्रहण पर तुरंत प्रतिबंध लगाने को कहा है। ताकि लोगों को इन कुंडों के विषैले जल के दुष्प्रभाव से बचाया जा सके। साथ ही सुझाव दिया गया है कि कुंडों की पूरी तरह साफ-सफाई कराई जाए जिससे इसमें पनप रहे माइक्रो सिस्टिस जैसे जहरीले काई को समाप्त कर इनके जल को स्वच्छ रखा जा सके

2 comments:

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

दुर्गाकुण्ड के बारे में आपका क्या विचार है?समस्या का समाधान स्नान करने से रोकना नहीं..प्रशासनिक सक्रियता है...आँखे खोल देने वाला लेख...जय भारत, जय भारती

Asha Lata Saxena said...

आपने सही कहा है |अधिकाँश धार्मिक स्थलों पर पानी स्वच्छ न होने की समस्या है ,
यदि लोग खुद जाग्रत हो जाएँ और पानी में पूजन
सामग्री न डालें और कारखानों आदि का अबशिष्ट
जलस्त्रोतों से दूर रखा जा सके तो यह समस्या हल हो सकती है |
आशा