एक अप्रिल बोले तो मूर्ख दिवस की सभी को बधाई रे भाई। बहिन लोग आप को भी कारण की आप क्या लोगों को मूर्ख बनाएँगी,आप जैसी महिलाएं रोज मूर्ख बनाई जा रही हैं फ़िर भी मूर्खा मुर्खी के इस पावन दिवस पर बधाई स्वीकार कर लो...
तो रक्षंदा आपा को गुस्सा आ गया की मनीष भाई पगला गया है,भड़ास का प्रवक्ता बन कर जैसे बाबा बन रहा है,जिसको मन किया गरिया दिया,सोचा न समझा की माँ बहन भी रोज ब्लॉग पढ़ती है,उल्टा असर हो रहा है मर्यादा टूट रही है,असभ्य भाषा को बंद कर दो,प्लीज मेरे मनीष भैया...
तो दीदी ये गाली तो अपन का हथियार बन गया है, इसी गाली को लेकर हम सभ्य भाषा का प्रयोग करने वाले उन मर्दों को चुनौती देते हैं की तुम अत्याचार और अनाचार की हद पार कर दो, पुलिस वाला कुछ नही बोलने वाला, अदालत तेरी जेब में है तो संगीता जैसी औरत रोज तिल-तिल कर मर रही है, उसको विवाह के उसूल समझाने वाले रोज उसके जैसी औरत का खुले आम बलात्कार कर रहे हैं, उसके बच्चे जो आज आपके समाज के नियमों को बुझ रहे हैं, सिख रहे हैं, उन अबोधों को मर्दानगी दिखा रहे हैं की बे चुप मैं मरद हुं ....समझा क्या.....
तो ऐसे हरामी को चुम्मा लेने से बेहतर है की सालों को इतनी गालियाँ दूँ की कल प्रशासन भी चौंक जाए की इ कौन पागल है जो ऐसे बोलता है, उसको पकडो, मारो जैसे आपने ये आह्वान किया है तो दीदी मेरे जैसे पागल से ये उम्मीद भी मत करना की इन दोग्लों को मैं चुम्मा लूंगा, इनके आगे सिर झुकाउंगा की मेरे बापा जी संगीता को तुम खड़े बाजार में इज्जत उतारो, उसके मांग के सिंदूर को पोंछ डालो,हाथ की चूडियाँ तोड़ डालो मैं नपुंसक तुम्हारी आरती उतारुन्गा, तुम्हारे लिए माला ले कर खड़ा रहूंगा......ऐसे मादरचोद लोग को गाली क्या आप देखते तो जाइए इन कमीनों का इलाज तो तब सफल मानूंगा जब ऐसे को समाज का हर बच्चा सुबह-शाम गाली दे, उसके नाते रिश्तेदार गाली दें, बस चले तो उसका लिंग काट कर चौक पर प्रतिमा बना दें ताकि आगे से ऐसे राक्षस ऐसी महिला को अपना निशाना नही बना सके।
तो ऐसे हरामी को चुम्मा लेने से बेहतर है की सालों को इतनी गालियाँ दूँ की कल प्रशासन भी चौंक जाए की इ कौन पागल है जो ऐसे बोलता है, उसको पकडो, मारो जैसे आपने ये आह्वान किया है तो दीदी मेरे जैसे पागल से ये उम्मीद भी मत करना की इन दोग्लों को मैं चुम्मा लूंगा, इनके आगे सिर झुकाउंगा की मेरे बापा जी संगीता को तुम खड़े बाजार में इज्जत उतारो, उसके मांग के सिंदूर को पोंछ डालो,हाथ की चूडियाँ तोड़ डालो मैं नपुंसक तुम्हारी आरती उतारुन्गा, तुम्हारे लिए माला ले कर खड़ा रहूंगा......ऐसे मादरचोद लोग को गाली क्या आप देखते तो जाइए इन कमीनों का इलाज तो तब सफल मानूंगा जब ऐसे को समाज का हर बच्चा सुबह-शाम गाली दे, उसके नाते रिश्तेदार गाली दें, बस चले तो उसका लिंग काट कर चौक पर प्रतिमा बना दें ताकि आगे से ऐसे राक्षस ऐसी महिला को अपना निशाना नही बना सके।
तो दीदी आप ऐसे समाज की उसूलों को मान-मान कर उस समाज के पहरुए की आरती उतारिए, आपका यह भाई मर जाना पसंद करेगा लेकिन इन शब्द-वाणों की वर्षा तो अभी शुरू ही हुई है...आगे देखते जाइए अभी कितने नए-नए गाली का आविष्कार कर उसका प्रायोगिक क्लास लेता हुं।
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय
8 comments:
मनीष जी ,मैं तो नया ब्लोगर हूँ लेकिन बेगुसराय के आम लोग भी अब यह मानने लगे हैं की आप जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं उससे भले ही लोगों को बुरा लगता हो लेकिन ऐसी मानसिकता के लोगों को गाली तो क्या इन कमीनों को चौराहे पर खड़ा कर के गोली मार देना चाहिए,भले ही जेल जाना पड़े ,कम से कम आने वाली पीढ़ी तो इनके करतूत से सबक लेगी.
मनीष भैया हिम्मत मत हारो हम सभी युवा तुम्हारे साथ हैं,आप भडास पर और अधिक गाली दो,शासन -प्रशाशन का ध्यान खींचो.क्यूंकि इसी रास्ते से न्याय मिलेगा,छीन लो अपना हक़ और दिखला दो दिनकर की धरती की ताकत. पुलिस-अदालत का न्याय तो देख ही चुके,भडास कम से कम लोगों का ध्यान तो अपनी और खींचता है.इसलिए ऐसा मत बोलो की नही लिखेंगे..ताल ठोंक कर चिल्ला कर बोलो की अब रोज ऐसी गालियाँ देंगे,अगर भडास से भगा भी दोगे तो सड़क पर उतर कर ,घर-घर जा कर लोगों को बताएंगे की ''गोली और गाली'' किस विकल्प को चुनते हो आप लोग.
बस लगे रहिये जनाब.
bhayi, rakshanda ne jo kaha hai, usko aapne dusre arthon me liya hai. mere khayal se, gaaliyan aisi na ho jisse padhne waalon ko padhna band kar dena pade. hamara maksad logo ko es nek manch par jodna hai, bhagana nahi. aap apni jagah sahi ho sakte hain lekin ham sab ko ye sochna hoga ki kis tarah es manch ko mahilawon ke liye bhi kargar banaya jaye taki unhe yaha aane aur padhne me sharmindgi mahsoos na ho. mere khayal se Hare Prkash ji es mamle me koyi line length jarur denge. dr. rupesh ji bhi abhi tak chup hai, kya baat hai? dr saheb, aap ka kya kahna hai??
yashwant
बन्धुवर , रक्षंदा जी के शब्दों को अन्य अर्थों मैं ना लें वैसी भी उन्होंने भड़ास निकलने से कभी मना नही किया है परन्तु जैसा की डॉक्टर साब ने कहा की यह परिवार आवाज उठाने का और न्याय दिलाने मैं सार्थक पहल का मंच बने इसमें हमें शब्दों के चातुर्य से सभी समुदाय को बता देना होगा और सभी इसे देखें पढ़ें और विचार करें का फार्मूला देना होगा अन्यथा सिर्फ़ भड़ास निकालो और कोई पढे ही ना तो बेमतलब हो जाता है।
जय भडास
जय जय भडास
मनीष भाई,मैं आपके विचार से सहमत हूं कोई कारण नहीं है कि असहमति हो लेकिन रक्षंदा आपा से असहमत होने का भी कारण नहीं है। मुद्दा एक मजलूम को न्याय दिलाने और पीड़िता का कष्ट शिद्दत से महसूस करने का है लेकिन अगर हम जूते में शर्बत पिलाएं तो शायद ही कोई पीना चाहे जैसे सुंदर पत्र बुरे सड़े और फटे लिफ़ाफ़े में,रक्षंदा आपा शायद जो कहना चाह रही हैं मैं समझ पा रहा हूं क्योंकि आप तो गाली दे रहे हैं वो तो गोली मार देना चाहती हैं,जय हो ...जय हो...जय हो साक्षात दुर्गा का अवतार प्रतीत होती हैं इस बात से तो ,उनका कहना है कि मुंहचोदी(रक्षंदा आपा माफ़ करें) करने से अच्छा है कि जो करना है शाब्दिक तौर पर नहीं बल्कि प्रयोग के तौर पर कर ही लिया जाए। जब दस बीस लोगों के लिन्ग काट लें तो भड़ास पर सूचित करें मनीषा दीदी ऐसे लोगों को नैसर्गिक नहीं दुर्घटनाग्रस्त लैंगिक विकलांगों में मान कर अपनी जमात में स्वीकारने को सहर्ष तैयार हैं
manish bhaee rupesh bhaiya aur yshvant bhaiya ki bat ka jra dhyan rakhna , ye log hmare-tumhare liye hi kah rhe hain aur bilkul thik kah rhe hain, jra sochna...baki yhik hai lge rho, badhaee
lagta hai Manish bhaiya ko meri baat buri lagi hai,koi baat nahi,bhaiyon ko manana kon sa mushkil hai...abhi gussa hain to thodi der mein hans denge...lekin itna main jaanti hun ki meri baat aap ne samajh li hai....thanks
जी रक्षंदा दीदी,मैंने आपके सलाह को दिल में बसा लिया है...और जहाँ तक सवाल है बुरा मानने का टू दीदी भाई बुरा मान कर आख़िर जायेगा कहाँ,फ़िर तो अपनी बहन के बिछोह में पागलों की तरह खोजता फिरेगा. सो सौरी दीदी...अगर आप सचमुच बुरा मान गई होंगी तो छोटे भाई को माफ़ कर दीजिये...पिलिज बोलो न माफ़ कर दिया न.....
ye bhai bahan ka pyaar kuch jyada hi out of place nahin lag raha?mujhe to lag raha hai, kam se kam ek jagah to ho jahan jiske jo man mein aaye kah sake, unedited...uncensored...bhadas shabd ka matlab hi yahi hota hai. aur jin ladkiyon ko gaali bardasht nahin hoti wo yahan aati hi kyon hain...ye padhna koi majboori to nahin ho sakti.
to jis blog community ka maksad hi dil ki baat ko juban par laana hai usmein censorship kyon aane lagi.aisi acchi acchi batein to har koi apne personal blog par likh sakta hai aur likhta bhi hai.par kai baar jaise dam ghut-ta hai aur ek jwalamukhi apne andar daba kar rakhna bardast nahi hota, waise mein agar kah dete hain to bura kya hai...aur wo bhi gaaliyon ke sath.soch ko censor kar rahe hain log...taki soch nahin sake koi.
ummid hai manish ji aap apni bhadas apne shabdon mein nikalte rahenge.
puja
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