मित्रों जैसा की आप सब जानते हैं मीडिया दिग्गजों के बारे में एक सीरीज़ जल्द ही मैं भड़ास पर शुरू करूँगा...जिसका मकसद सिर्फ़ इतना हैं की उन दिग्गजों का मानवीय और दिलचस्प चेहरा आप सबको दिखाना...आज जरुर वे बडे बड़े नाम हैं लेकिन हैं वे बिल्कुल हमारी ही तरह....खैर....इस सीरीज़ के शुरू होने से पहले हमारे वरिष्ठ साथी रुपेश जी ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए मुझे एक सलाह दी और कहा की यार किसी की इतनी चीरफाड़ मत करना की हाजमा ख़राब हो जाए...रुपेश जी सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा की आपने अभी तक जो शैली और रूप देखा है वही मेरा असल रूप है...मैं पहले भी कह चुका हूँ की अपने छुटपन का एहसास है मुझे बड़ी अच्छी तरह से ....तोः मैं किसी को क्या बेइज्जत करूँगा ..और भगवान् की दया से आज तक ऐसा करने की जरुरत भी नही पड़ी....सबके विचार व्यक्त करने के अपने तरीके हैं...और मेरा भी....लेकिन आज तक जीवन में ऐसा कुछ नही किया है जिसके लिए मुझे या मेरे प्रियजनों को शर्मिंदा होना पड़े....ये मैं आपको संतुष्ट करने या भड़ास के किसी सदस्य विशेष को संतुष्ट करने के लिए नही कह रहा बल्कि कई चिंताओं को ख़त्म करने के लिए भी कहना जरुरी समझता हूँ...साथ ही सबसे यही इल्तजा है की भड़ास गरियाने का नही बल्कि कुछ बेहतर चीजें और विचार रखने का मंच है....गुस्सा है अगर किसी चीज को लेकर तोः यार उसे बदलने का हौसला दिखाओ....हाँ गरियाना है तोः पहले ख़ुद को गालियाँ दीजिये फिर जमाने को...क्यूंकि आप भला तोः जग भला...रुपेश जी अभी भी कुछ कहने की जरुरत है......खासकर पत्रकार मित्रों से इतना ही कहना चाहूँगा की बड़े-बड़े विचार पेलने के बजाय ख़ुद और अपने आसपास अगर कुछ बदलने का हौसला कर सकें तोः जरुर कीजिये...कमसेकम आपके ऐसे अभियानों में आपके साथ हूँ....यार भड़ास सामाजिक बदलाव का बेहतर साधन बन सकता है तोः इस तरफ़ भी कुछ सोचा जाए...बाकी महिला और पुरूष दोनों बेफिक्र रहें मेरा लिखा कोई भी आराम से पढ़ सकता है......गुस्सा है मुझमे भी पर में अपने तरीके से समाज को बेहतर बनाने में जुटा हूँ...उसके लिए भडास पर गालियाँ दूँ इसकी कोई वजह नजर नही आती और हाँ इसे व्यक्तिगत रंजिश से भी दूर रखने के प्रति प्रतिबद्ध हूँ...
हृदयेंद्र
13.4.08
बेफिक्र रहें रुपेश जी- हृदयेंद्र
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4 comments:
महाशय,
आपके विचारों से सहमत होने की इच्छा होती है. सोच मिलते जुलते प्रतीत होते हैं. पर मुझे लगता है समाज बदलने के लिए कभी-कभी गालियों की भी जरूरत पड़ती है. कुछ भाई लोग ऐसी मिट्टी के बने होते हैं जिन्हें गालियों की भाषा ही समझ में आती है या कम से कम बेहतर समझ में आती है . अब इलाज तो मरीज देख कर ही करना होगा न . वैसे आपके उस पोस्ट का इंतजार है जिसका जिक्र आप दो पोस्टों में कर चुके हैं
वरुण राय
सिंह साहब,अनावश्यक गालियों को मैं कड़वी दवा का overdose मानता हूं किन्तु मेरे लिये गालियां कभी भी विरोध का या परिवर्तन की उम्मीद का अनिवार्य अंग नहीं रहीं हैं। आप छोटे नहीं हैं आप जो लिखेंगे हम उसे सिर झुका कर आदर से सुनेंगे-गुनेंगे अगर कभी मतैक्यता न जमी तो जरूर बताएंगे। आपके लेखों की श्रंखला की प्रतीक्षा है...
बहुत खूब।
आपकी सीरिज का इंतजार कर रहा हूं।
chaliya bhai ab jaldi se forye bhi.......
aap to intejaar ka pura imtehaan le rahen hai.
kah daliye or paka daaliye saare bhadaasiyon ko.
Jai Jai Bhadaas
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