१० अप्रिल को बिजनोर में जिलाधिकारी कार्यालय के प्राँगण में एक किसान ने आत्मदाह कर लिया ! आज अस्पताल में उसकी मोत हो गई !
आज अखबारों में फोटो देखकर अनेक लोगों ने फोटोग्राफर से कहा की वे चाहते तों उसकी जान बचा सकते थे ! मोंके पर पुलिस भी थी ,पर वह आत्मदाह करने वाले को नही जानती थी !मीडिया बाले कुछ उसे पहचानते थे। वे उसपर नजर रखे थे ! किसान केम्पस में बने शोचालय मे गया ,। अपने पर पेट्रोल डाला ! दरवाजा खोलकर बाहर पाँव रखा और आग लगा ली। एक मिनट में किसान ९५ प्रतिशत जल चुका था । कुछ पत्रकारों,जनता और पुलिस ने मिटटी डाल कर आग बुझाई पर कुछ नही हो सका . मीडिया का कहना है की हमारा पेशा अनुमति नही देता कि वह पुलिस को बताऍ! उनका यह भी कहना था कि उन्हें यकींन ही नही था की यह ऐसा कर लेगा। आप की राय में क्या होना चाहिए था !
11.4.08
क्या होना चाहिए था
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2 comments:
मधुप जी, ये सवाल हममें से कई लोग खुद से करते रहे हैं कि क्या समाजसेवा और पत्रकारिता का आपस में कोई भी संबंध नहीं है? अगर चाहिये कि फोटो जरूरी है तो खींच ले भाई, लेकिन उसके बाद तो बचाया जा सकता है कि पूरा जल कर जब कोयला हो जाये तब तक उसके फोटो लेते रहेंगे मैं इसे बस वणिकता मानता हूं जैसे कफ़न का बेंचना.....
satay kaha sarkaar,
waisai is bechare ki bhi galti nahi hai, kya kare ye bhi bechare ke gaand main laat jo padi rahti hai exclusive lane ki.
bhai nokri baja le pet bhara rahega to samajseva ki bhi sochenge.
Jai jai Bhadaas
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