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4.4.08

कुछ लोग जमाने में

कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं,घर जाकर रोते हैं
बीवी की नजरों में अच्छे हैं वो शौहर
बच्चों के कपड़ों को,जो शौक से धोते हैं
जागा किये खिदमत में रातों में जो बीवी के
जाते ही वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
कुरसी पर लदे रहना बस फितरत है इनकी
कुरसी के ये खटमल हैं,बेपैंदी के लोटे हैं
पंखों में परिंदों के उड़ने की तमन्ना है
ये बात क्या समझेंगे पिंजरे के जो तोते हैं?
सीने में हिमालय के कुल्फी के खजाने हैं
क्यों ख्वाब में चुस्की के पलकों को भिगोते हैं?
पं. सुरेश नीरव

4 comments:

अबरार अहमद said...

बडे भईया प्रणाम स्वीकारें। जिंदगी की सच्चाई उभार दी आपने इन 12 लाइनों में। दिल खुश हो गया। बच्चे को आशीर्वाद दें।

Anonymous said...

nirav da...jai ho jai ho prabhu lage rahie aur sikhaate rahie.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,सोंटा लेकर धूल झाड़िये जो हम लोगों की अंतरआत्मा तक तह ब तह जम गई है....

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

BADE BHAI
Sat shri akal.
PIECE IS MARVELLOUS.Poetry of Suresh Neerav has the same spontenious flow of emotions as in 1980,1990,1995,2001,2005 and APRIL2008.

Anil bharadwaj
09417487280