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24.4.08

पं. सुरेश नीरव की एक चुलबुली गजल

(सभी भड़ासियों से स्वासथ्य पर इसका बड़ा आयुर्वेदिक असर पड़ेगा)
किसी के हुस्न का जादू जगाने का इरादा हैसभी कुछ दांव पर अब तो लगाने का इरादा है
है मिसरी-सी जुवां तेरी,शहद टपके हैं बातों सेतुम आफत हो बड़ी कितनी बताने का इरादा है
सहमकर शाम को तनहा मिलोगी जब बगीचे मेंतुझे नाजुक शरारत से सताने का इरादा है
कभी फूलों की घाटी से,कभी पर्वत की चोटी सेतुझे दे-देकर आवाजें थकाने का इरादा है
मुहब्बत की शमा दिल में हुई रौशन न सदियों सेतेरे जलवों की तीली से जलाने का इरादा है
तुझें लहरों की कलकल में,तुझे फूलों की खुशबू मेंतुझे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है
फटाफट तुम चली आओ,मेरी उजड़ी हवेली मेंतुझे टूटे खटोले पर सुलाने का इरादा है
ठिठुरकर शाम ने ओढ़ा है देखो शॉल कोहरे कातुझे जलते अलावों पर बुलाने का इरादा है
हँसी देखी है जोकर की, न देखे आंख के आंसूहजल से आज नीरव को हँसाने का इरादा है।

8 comments:

भागीरथ said...

बहुत खूब नीरव जी, आपका इरादा को बहुत नेक है। निरंतर लिखते रहें। गजल सचमुच चुलबुली और गंभीरता का पुट लिए हुए है।

Ankit Mathur said...

नीरव जी कविता तो एकदम धांसू है, लेकिन
एक बात जो पढते हुए मेरे दिमाग में खटकी है
आपको बताना चाह रहा हूं।
गुस्ताखी लगे तो माफ़ कर दीजियेगा।
"सहमकर शाम को तनहा मिलोगी जब बगीचे में
तुझे(तुम्हे- कैसा लगेगा?) नाजुक शरारत से सताने का इरादा है"
उसी प्रकार से
"तुझें लहरों की कलकल में,तुझे फूलों की खुशबू मेंतुझे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है"
की जगह अगर हम ऐसा कहें:
""तुम्हे लहरों की कलकल में,तुम्हे फूलों की खुशबू में तुम्हे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है""

अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजियेगा॥
धन्यवाद
अंकित माथुर...

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

Excellent, Waiting for new gazals.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अंकित भाई,जैसा कि पंडित जी ने लिखा है कि आयुर्वेदिक प्रभाव से परिपूर्ण ही जान पड़ी ये ग़ज़ल; यदि तुझे के स्थान पर तुम्हे लिखा जाए तो नजदीकियों में वात के साथ-साथ पित्त का भी प्रभाव संभावित है :)

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

पंडित जी ,
लोग पता नही क्या कहें क्या नही परन्तु जग तो सभी की गयी होगी ,
बड़ा ही रोचक है और वैसे भी आयुर्वेद के लिए हामरे पास रुपेश भाई तो हैं ही,
जय जय भडास

subhash Bhadauria said...

भड़ास के ज्ञानी मोडरेटर्स को क्या इतना भी पता नहीं कि कि ग़ज़ल को कैसे लिखा जाता है ?
इसे इस तरह करलें-

किसी के हुस्न का जादू जगाने का इरादा है
सभी कुछ दांव पर अब तो लगाने का इरादा है.

सहमकर शाम को तन्हा मिलोगी जब बगीचे में,
तुझे नाज़ुक शरारत से सताने का इरादा है.

इसे यों देखें-
किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है.
परस्तिश की तमन्ना है शिकायत का इरादा है.

जैसे की उपरोक्त पाठकों ने तुझे की जगह तुम्हें करने को कहा है वह सही है इससे बात और भी बनती है.
यहां प्रारम्भ की पंक्तियाँ जिनमें जगाने,लगाने का काफिया एवं रदीफ का इरादा है रदीफ कही जायेगी.
शेर जिसकी पहली पंक्ति जिसमें काफिया रदीफ ज़रूरी नहीं पर दूसरी पंक्ति में जरूरी हैं.
जैसे-
सहमकर शाम को तन्हा मिलोगी जब बगीचे में,
काफिया रदीफ नहीं हैं बाद की पंक्ति में आये हैं.
काफिया मतलब प्रास तुक जगाने लगाने,सताने.
रदीफ का मतलब ऐसा शब्दगुच्छ जो निरंतर एक सा रहता है.जैसे का इरादा है.
अब छंद यानि बहर की बात-
उपरोक्त ग़ज़ल में एक पंक्ति में चार रुक्न हैं.
1222 1222 1222 1222
मफाईलुन-मफाईनुन मफाईलुन-मफाईलुन.
ये उर्दू की मशहूर बहर बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम है.
जैसे -
हुई मुद्दत की ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पे कहना कि यूँ होता तो क्या होता.

यहां वो वु तो को तु पढना पढ़ेगा.
इसे आसानी के लिए हिन्दी फिल्म का ये गीत इसी छंद में हैं.
मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता.
अगर तूफां नहीं आता किनारा मिल गया होता.

शिल्प के बाद हमारा जिस शेर पर दिल आगया वो है-
फटाफट तुम चली आओ मेरी उज़ड़ी हवेली में,
तुम्हें टूटे खटोले पर सुलाने का इरादा है.
पर यहाँ टूटे खटोले पर सुलाने में कार्यवाही सुचारू ढंग से नहीं चल सकेगी.
भई वाह यही तो असली लीला है जिसके पीछे सब बौराये फिरते हैं.ज़ारी रहे-
सारे आलम पे मैं हूँ छाया हुआ.
मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.(मीर तकी मीर)

Ankit Mathur said...

डा० साहब बडे दिन बाद आये और पूरे रंग में आये।
छा गये हैं आप।
कहां गायब रहे इतने अर्से से?
आ जाईये भडास पर उसी सक्रियता से जिस सक्रियता से आप भडास के पूर्व जन्म में आते थे।
धन्यवाद
अंकित...