Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

4.4.08

बचना ऐ भादासियो लो मै आ गई

प्यारे भडासी दोस्तो , नमक -से । ओह सोरी , नमक-से नही नमस्ते क्युकी आजकल नमक भी महंगा हो गया है। मै आपको सीधे -सीधे नमस्ते कहना चाह रही थी फंश गई नमक के चक्कर मै । माफ़ करना करू भी तो क्या करू आजकल सब इतना महंगा हो गया है की महंगाई के सिवा कुछ भी याद नही रहता।रोटी जो खानी है और जी भी तो इशी के लिए रहे है न । वो कहते है न ---पहले पेट पूजा फिर काम दूजा। चलिए छोडिये इनसब बातो को नमस्ते ,सलाम, sasriyakaal । आपको प्यारे भाई -बहिन नही कह रही क्युकी ये राज्नेतावो का फेवरेट शब्द है । और क्युकी मै राज्नेतावो की तरह झूट नही बोल सकती इसलिए उनका यह प्रिय शब्द भी इस्तेमाल नही कर सकती ना । बात ये नही की मुझे राजनीति पसंद नही बल्कि बात बस इतनी सी है की मुझे उनकी तरह समाज को उन्ही की झूटी तस्वीर दिखाना नही आता । मै तो समाज को सच्ची , सिर्फ़ सच्ची तस्वीरे ही दिखाना चाहती हूं वो भी उन्ही की और उनके ही बारे मै । ओफो मै भी ना, कहा फस जाती हूं बार -बार और आपको भी फंशा रही हूं । मै आपसे दूसरी बार मिल रही हूं। पहली बार आपसे अच्छी तरह नही मिल सकी क्युकी जल्दी थी अपने लेख को भडास पर देखने की । और उसपर आपके कमेन्ट पाने की । आपका प्यार देखकर बता नही सकती की कितनी खुशी मिल रही है । आप सबने मुझे इतना प्यार दिया आपका बहुत-बहुत धन्यबाद । आगे भी इशी तरह अपना प्यार देते रहियेगा । मै भी कुछ अच्छा वह भी पूरी इमानदारी के साथ लिखने की कोशिश करुँगी । कोशिश कामयाब होती है या नही यह तो समय और आप ही बताएँगे। हो गया हमारा और आपका मेल-मिलाप ।
चलिए अब आपको कुछ सुनाती हूं। -------
पर समझ नही आ रहा

आपके सामने क्या पेश करू
सोच रही हूं आज
कोण सा नया केश करू ?
वेशे मुझे अभी-अभी अपनी एक कविता याद आई है
जिसे बड़ी मुस्किलो से मेने
ख़ुद ही पकाई है
अभी -अभी पकी है
जिशे किसी ने भी नही चखी है
इसलिए कह नही सकती की आपको केशी लगेगी
या तो वाह-वाहिया मिलेगी
या फिर शायद जुतिया ही पड़ेंगी
पर आपसे मेरी बस इतनी ही फरमाइश है
अच्छी लगे तो सुनना
बुरी लगे तो मेरी गलतियों को चुनना
पर हाथ जोड़कर कहती हूं
जैसी भी लगे इशे खामोशी से सुनना।
सुन ली...............................अरे यही तो कविता है ।

केशी कही ?

7 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

कमला जी,मैं तो सोचता हूं कि अगर सुबह के नाश्ते,दोपहर के भोजन और शाम की चाय के संग रात्रि भोजन पर आपकी ऐसी ही कविताएं वगैरह खाने चबाने को मिलती रहें तो कितना अच्छा होगा,मुझे माताजी की याद आ रही है....

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

अरे बचना ए हसीनो लो मैं आ गया, हुस्न का आशिक........ अपनी अदा है यारों से जुदा...
कमला बहन आपकी अदा कितनी भी जुदा हो हम आपसे बचने की कोशिश कभी नहीं करेंगे चाहे आप कुछ भी करें बल्कि हम ही आपके गले पड़े रहा करेंगे..............

Unknown said...

bahut achchha kamla jee, aap to jldi hi sachchi bhadasi ban gaeen. badhaee....

गौरव मिश्रा (वाराणसी) said...

kamla jee kya baat hai kam sabdoon mai sari baat keh gai aap ki pyari si kawita hai...jay bhadas

KAMLABHANDARI said...

rupesh ji aapko meri kavita acchi lagi yah jaankar bahut accha laga .
ishi tarha mera hausla badhate raheyega.

Anonymous said...

kamla jee,
bachne ki baat khatam.

waisai bhi aap ke bhadaas ne kamal kiya, ab to hum bhi aapke fan hain (maaf kariyega pankhe wala nahi :-P) or ab to hum hi aapko nahi chorne wale so bach ke to aapne rahna hai.

Jai Bhadaas
Jai Jai Bhadaas

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

कमला बहन,मैं ईश्वर से हमेशा यही मांगता हूं हरदम कि, "मन्जिल न दे चिराग़ न दे हौसला तो दे" और इसी हौसले में से हमेशा थोड़ी-थोड़ी खुराक की पुड़िया बना कर आपको देता रहूंगा अगर आपको चाहिये तो आप उसे सुबह दोपहर शाम को अपनी कविताओं की भावनाओं के शर्बत के साथ ले लीजियेगा।