सब से पहले 1 April के लिए सारे भडासी भाइयों और बहनों को April fool कह दूँ(बुरा लगे तो भी आज हर बात माफ़ है) पता नही मेरी पोस्ट का इंतज़ार भी रहता है किसी को या नही,पर कोई बात नही, आज दिन ही ऐसा है तो थोडा बोर हम भी कर लेते हैं. काफी दिन हो गए भड़ास वालो को बोर किये हुए…अब थोडा सीरियस हो जाते हैं…अबरार अहमद भाई की राखी सावंत वाली पोस्ट अच्छी है,वाकई में उन्हें April fool बनाया गया,जहाँ तक मेरा ख्याल है,मुझे Mr.R.Roshan की ये हरकत बहुत बुरी लगी है,राखी सावंत जैसी भी हों,हो सकता है,लोगो की नज़रों में उनकी इमेज अच्छी न रही हो,लेकिन मेरे ख्याल में वो एक सीधी साधी और साफ दिल की सच्ची लड़की हैं,जो उनके दिल में होता है,वही उनके होंठों पर होता है,दिल में कुछ और जुबां पर कुछ और वाली लड़की वो नही हैं,और उनकी इसी सच्चाई का लोगों ने हमेशा फाएदा उठाया है,ये दुनिया ही ऐसी है,सीधे सच्चे लोगों का गुज़ारा यहाँ नही है,ऐसे लोग हमेशा बेवकूफ समझे जाते हैं,और ऐसे में लड़की होना उनका सब से बड़ा गुनाह है,एक लड़की सीधी साधी हो और बोल्ड हो तो दुनिया के लिए राखी सावंत बन जाती है,जिस का जैसे दिल चाहे अलग अलग मसालों में उसे पेश करते रहिये,बहेर्हाल,,कहाँ की बात कहाँ चली जाती है,आज मैं कुछ ज़रूरी बातों पर आप सब का ध्यान दिलाना चाहती हूँ,ये बातें मैं पहले ही लिखना चाहती थी पर समय न मिलने की वजे से नही कर पायी..कुछ दिन पहले की बात है,भड़ास पर आई तो एक नई पोस्ट पर ध्यान गया,ऊपर कोई कविता थी,जिसे रंगीन अक्षरों से लिखा गया था,पढ़ना चाहा तो अजीब हालत हो गई,उसकी भाषा….उफ्फ्फ़,,मेरे जैसी लड़की के लिए बर्दाश्त के काबिल नही थी,मैंने एकदम पढ़ना बंद कर दिया,दूसरे दिन दोबारा भड़ास पर आई तो,ध्यान से देखा तो वो पोस्ट मनीष भइया की थी ,एक पल को विश्वास नही हुआ,फिर भी मैंने उसे वो कविता छोड़कर पढ़ा तो समझ में आया कि इस में तो एक बहुत गंभीर मुद्दे को उठाया गया है,एक बहुत दुखी स्त्री,जिस के साथ लोगो ने दरिंदगी की हद कर दी,और जिसे पढ़ कर एक पल को बस यही मन करता है,हाथ में पिस्तोल हो,और जाकर ऐसे ज़लील लोगों के सीने में उतार दें,लेकिन------दिल चाहता है फिर भी हम ऐसा कर नही पाते,,क्योंकि हमें पता है कि कानून हाथ में लेना जुर्म है,और हमें अपने गुस्से को पीना पड़ता है,गुस्सा बहुत सी बातों पर आता है,कई बार दिल करता है कि हम ऐसे लोगों का कुछ कर नही सकते तो उन्हें बुरी भली सूना तो दें,लेकिन----बात फिर वही कि हम इंसान हैं,कुछ भी करने या कहने से पहले हमें ये भी देखना पड़ता है कि कहीं हमारी कही बातें,हमारी कहे अल्फाज़,अश्लीलता कि कैटिगिरी में तो नही आते?
मैं मनीष भइया से एक बात कहना चाहती हूँ,आप ने एक बहुत ही संवदनशील मुद्दे को उठाया,एक दुखी ओरत को इन्साफ दिलाने के लिए कलम उठाया,लेकिन सोचिये,भड़ास को हजारों लोग पढ़ते होंगे,जिस तरह मैंने पहली बार उस कविता को पढने के बाद,बाकी लेख पढे बिना उसे बंद कर दिया, हज़ार में से अगर कुछ प्रतिशत लोगों ने ऐसा किया होगा तो क्या आपको नही लगता कि आपकी मेहनत बेकार हो गई?
मैं जानती हूँ जज्बात क्या होते हैं? गुस्सा जब आता है तो इंसान सही ग़लत भूल जाता है,मुझे भी गुस्सा आता है,इराक में मासूम लोगों के मरने की ख़बर सुनती हूँ तो खून खोलने लगता है,जोर्ज बुश से मुझे दुनिया में सब से ज़्यादा नफरत है,लेकिन फिर भी उस जैसे इंसान के लिए भी कोई ग़लत अल्फाज़ मेरे होंठों से नही निकलते,क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं जो बोलूंगी,वो उस से ज्यादा मुझे नुकसान पहुँचायेगा,मनीष भइया,आप लोगो ने भड़ास के लिए बहुत मेहनत कि है,और आज वो जिस मुकाम पर है,वो मकाम उसे आप लोगो ने ही दिया है,सो अब आप को ही उसे इस मुकाम पर बनाये रखना है,ऐसा न हो कि ब्लॉग कि दुनिया का ये सरताज ‘अशलील ब्लॉग साईट ’ कह कर नकार दिया जाए…हम कितने ही बोल्ड और स्पष्टवादी क्यों न हों,रहना हमें इसी समाज में है,और समाज के उसूलों को मानना ही समझदारी है.
12 comments:
खरी खरी लिखने के लिए बधाई। रक्षंदा जी आप अपनी जगह सही हैं। लेकिन सभी भडासी आपसे सहमत होंगे मुझे इसमें संदेह है। खैर भाषा पर थोडा संयम तो रखना ही चाहिए।
सही कह रही हैं रक्षंदा जी। भडास एक बडा मंच है इसलिए सभी भडासी साथियों को थोडा संयम रख भाषा पर ध्यान देना चाहिए। बधाई।
Rakshandaji,
Aapne bilcul sahi likha hai, par ek nivedan jaroor sare bhadasiyon se karna chahunga ki wo apni bhasha par thoda to niyantran rakhen.
aapne apni baat puri emandari se rakhi hai. mai niji taur par wada karta hun ki meri lekhni me aapko thoda parivartan milega
Rakshanda ji aap ne bilcul sahi kaha apni dil badhas nikalne key liye sayad en sabdo ke estemal se un per koi aser ho per en sabdo per her kisi ki nazer jaroor jaati hai kuch alug sa ehsas hota hai
आपने सही कहा है और हमारे इस परिवार को वैश्विक मान्यता और पहचान के लिए जरूरी है की हम तथ्यों और विषयों पे जोर दे। क्या करें इस तरह की घटनाएँ इसी होती हैं की भडास ही भडास होता है दिल मैं। मगर आप से मैं सहमत हूँ .
देखिये इस मुद्दे पर गाहे बगाहे, जाने कितनी
बार बहस मुबाहिसा हो चुका है। कुछ मसलों पर
सभी की सर्वसम्मति बनी थी कि जहां पर भडास
बिना गाली दिये निकल ही नही सकती केवल बहीं पर गालियों को पनाह दी जानी चाहिये, लेकिन
कभी कभी ऐसा होता है कि अपने लेखन में
जबरिया गाली गुफ़्तार घुसाने की कोशिश की जाती
है। माना कि भडास पर सभी सदस्य अपनी बातों
विचारों को खुलकर लिख सकते हैं लेकिन
सभी मेम्बरान का ये भी दायित्व बनता है, कि
हमारे लेखन से हमारे ब्लाग पर कोई प्रतिकूल
प्रभाव तो नही पड़ रहा। आपने सही लिखा है कि
कहीं भडास को अश्लील ब्लाग साईट ना करार दे दिया जाये, लेकिन इसके अस्तित्व को नकार पाना
किसी के बस की बात नही।
आपका धन्यवाद कि आपने एक बार फ़िर भडास पर
भाषा संबन्धी बहस को जन्म दिया।
निजी स्तर पर मै भी अत्यधिक गाली गुफ़्तार
के पक्ष में नही हूं, लेकिन जहां आवश्यक हो वहां
कोई सेंसर भी नही होना चाहिये।
धन्यवाद...
अंकित माथुर...
रक्षंदा आपा,आपकी बात निःसंदेह कम से कम मेरे लिये तो विचारणीय है क्योंकि मैं हमेशा इस बात के बारे में सोचता रहा हूं कि गालियां क्रोध और आक्रोश की अभिव्यक्ति के लिये कितनी आवश्यक हैं। इस विषय पर एक बार मुनव्वर आपा ने लिखा था bhadas.blogspot.com/2008/02/blog-post_7862.html इसे जरूर पढिएगा। बस इतना ही कहना है कि मुण्डे-मुण्डे-मतर्भिन्ना
aapa, rakhi savnt ji pr aapki tippni bahut achchhi lgi. baki baten bhi yhik hain, pr manish ke jis post ka jikr aapne kiya hai usme kvia kahan hai...vh to ek samnt-kroor-mrdvadi ki bhasha ka istemal krte hue uski bhasha ka pol-ptti kholna, uska makhaul udana hai...use ek vyng ke roop me diya gya hai....aapne use kvita smjha, isse mai bahut dukhi hoon...chijon ko dhairy se padhna chahiye...ho skta bahar se buri lgti chij bhitr se aisi ho, jo hme apna murid bna de.
sab se pahle to aap sabhi ka bhot bhot shukriya ki aapne mujhe samajhne ki koshish ki,specially yash dada,jahan tak Harey bhai ne kaha ki chizon ko dhairy se padhna chahiye to main itna kahna chaahungi ki baat ko is tarah kaha hi kyon jaaye ki kisi ko dhairy rakhne ki zaroorat pade..itna gambheer mudda to sab ki nigaahon mein bina kisi dhairy ke aana chahiye..am i wrong Hare bhai?
हाँ रक्षंदा आपा यहाँ आप ग़लत हैं,हरे भैया ने जिस धैर्य की बात कही है वह इसलिए सही है की संगीता का धैर्य इन लोगों ने छीन लिया है,अब हम लोग उन सालों को उनका चैन छीन कर रख देंगे.
वैसे फ़िर से बुरा नही मान लेना आपा जी आप.
u r good aapa, lekin dhairy badi chij hai....ise aajmana chahiye...
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