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23.4.08

patarkaar

पुलिस, पब्लिक और पॉलीटिशियन हरदम जिसके दिल में रहते हैं
यह है वो शख्सियत जिसे पत्रकार हम कहते हैं
पुलिस मारे डंडे इनको, नेता डाले केस
फिर भी हारें न यह जीवन में अपनी रेस
आजकल पत्रकार पर जो कर दे टेढ़ी नजर से वार
उसे समझा जाता है लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर प्रहार
जो जुडे़ है इस फील्ड से, सबको उनपर नाज है
लोगों के लिए जो कल है, उनके लिए वह आज है
अपने लिए यह लड़ते नहीं, दूसरों के लिए लड़ते हैं
दिन-घूम इकट्ठी करें, जो खबरें सुबह हम पढ़ते हैं
सच्चाई के लिए जो कुछ भी करने को तैयार है
सही मायने में उस समय वह सच्चे पत्रकार हैंजो
पत्रकारिता को समझे गुरु की बाणी, पत्रकारिता को कुरान भी
पत्रकारिता उसका धर्म भी हो, पत्रकारिता उसका इमान भी
उनकी पत्रकारिता में जोश हो, लिखने का जूनून भी
उनमें सच लिखने का दम है अगर तो डरता है कानून bhi
patrakaar चांद जैसे नर्म भी हैं, सूरज जैसी आग है
जो बिक जाएं झूठ की खातिर, वह पत्रकारिता पर दाग है
ऐसे लोगों को दूर करें, आप अपने आप से आज से
इनके कारण ही गिरती है पत्रकार की साख समाज सेमैं
भी बनना चाहता हूं एक अच्छा पत्रकार
कुछ सीखा है, कुछ सीखने को हूं तैयार
जो सीखूंगा यहां से, दूसरों से काम लाऊं
तभी सही मायने में मैं पत्रकार kahalaaoon

vijay jain

6 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

क्या बात है, अपने नए भड़ासी भाई विजय जैन भी कवि निकले। और कलम चलाई भी तो सबसे पहले खुद की बिरादरी बोले तो पत्रकारों पर। सही लिखा है। प्रयास अच्छा है। लिखते रहिए....

vrij Nandan said...

क्या खूब लिखा है आपने अपने परिवार के ही ऊपर ....

Unknown said...

wah patrakaro ke kam ko bahut shandar tarike se shabdo main piroya hai. dhnya ho aap... or dhyan hai apki lekhni. or likhe apna kavi bnane ka kida mitaye, meri shubhkamnayain sath hai.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईसाहब,पत्रकारिता की इस परिभाषा में आने वाले लोग आजकल शायद म्यूजियम्स में पाये जाते होंगे वरना जो हाल है न होता लेकिन अगर हम स्वप्नजीवी हैं और यथार्थ से डरते हैं तो कविता के तौर पर बहुत सुन्दर है,पत्रकारिता के प्रारंभ में मैंने भी ऐसी ही कविताएं लिखी थीं। अगर आप चाहें तो दो चार हम भी जबरन पेल देंगे.....
जय जय भड़ास

Anonymous said...

patarkaro ke liye yeh joshila bhara ho sakata ho. lekin jamini hakikat kuchh aour hai. patarkar bahut kuch likhta hai. lekin chapta wahi hai. jo big boss chahte hain. bhaiyo bura na manna mai dr. Rupesh shrivastava ji ki bat se sahmat hun.

Anonymous said...

भाई ,
कविता तो शानदार है मगर शब्दों का हेरफेर हो गया सा लगता है....... अर्र.र .र , नेरा मतलब कविता तो सही है मगर बीते दिनों के हिसाब से है आज कल तो ये सब कहीं नही दिखाई देता है , हे हे हे , क्या करें कभी कभी थोड़ा सही कह देता हूँ, वैसी भाई मालिक के नोकर हो पत्रकार बनोगे तो नोकरी चली जायेगी और नोकरी करनी है तो मालिक की सुनो,
जय जय भडास