पत्रकार की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन आजकल के भागमभाग के दौर में उसकी भी एक कैटेगरी निर्धारित हो गई है। चाहे मालिक हो या संपादक वह युवाओं को पसंद करता है। पत्रकारिता में 40 पार होने के बाद पत्रकार एक्सपायर माने जाने लगे हैं। लोगों का मानना है कि इस लाइन में जोश और जज्बे की जरूरत होती है, जोकि 40 पार होने पर संभव नहीं है। युवाओं की बात की जाए तो उन्हें भी दो कैटेगरी में रखा जा सकता है। एक सीखने का वक्त और दूसरा सिखाने का। जाब लगने के बाद काम करने और सीखने का मौका मिलता है। इस एज में युवा पूरे दमखम के साथ काम करते हैं। और इसी जोश और जज्बे की वजह से वे आगे बढ़ते रहते हैं। आजकल उन्हें खुलकर खेलने का भी मौका मिलता है। 30 साल की उम तक वे पत्रकारिता की अधिकांश सीढ़ियां चढ़ चुके होते हैं। इसके बाद वे एक स्थायी पद पर नियुक्त हो जाते हैं। हम बात कर रहे थे एक्सपायर यानी 40 पार लोगों की, जोकि जानकार तो बहुत होते हैं, लेकिन वे अपने पुराने सोच में परिवर्तन नहीं कर पाते हैं। जिस वजह से वे मात खा जाते हैं और जो अपने सोच में परिवर्तन करते रहते हैं, वे आगे चलकर संपादक बन जाते हैं। हालांकि इस तरह की खबरों को एक्सपायर लोग सिर्फ अफवाह करार देते हैं।
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7 comments:
ठीक कहा भाई, हर संस्थान में ऐसे दो-चार लोग पाए ही जाते हैं। बेचारे...
बुजुर्गों की क्यों फाड़ रहे हो। उनकी तो वैसे ही फटी पड़ी है, लेकिन आपने उसे जगजाहिर कर दिया। रही बात युवाओं की तो वे हर जगह सफल है। इस लाइन में उन्हीं की जरूरत है।
ka ho alok, aisan prakash kahe faila rahe ho jo jagjahir hai. halanki badhiya likha.
Alok tum bachpana chodo. Yadi chalish ke par shooh lege to tum teesh bhi pure nahi kar payoge.
mera kisi ko personali heart pahuchana nahi tha.
अलोक भाई,
बात आपने सच्ची की है और कोइ दो राय नही कि सच कडवा होता है सो लोगों को लगेगा भी, मगर एक बात जो मैं कहना चाहूंगा कि अनुभव एक ऐसा जोहरी है जो हीरे को तराशता है सो हीरे को कभी नाज करके जोहरी को छोटा नही समझना चाहिये कयोंकि जोहरी के बिना हीरा पत्थर से ज्यादा नही है।
जय जय भडास
Najariya hi ekdum ghatiya hai. kuchh log 30 se pahle hi bude ho jate hain. kuchh 40 ke bad bhi javan rahte hain. apvad har jagh hote hain.
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