कोई कपड़ो में गया, कोई तौलिये में गया
हमाम में हर कोई नहाने ही गया।
जिंदगी में जो भी सीखा था अच्छा बुरा,
हमाम में वो गुनगना के ही गया।
घिन आने लगी है जाने में अन्दर,
कोई इतना हमाम को गंदा कर गया
जल रहा था जो बल्ब वो भी साथ ले गया
उसकी नियत में साथ खोट था तभी तो
बल्ब के साथ बो साबुन भी लेकर गया।
खुद तो खूब नहाया हमाम में वो पर
जाते जाते किसी के न नहाने लायक कर गया।
सीना जोरी तो देखिये उसकी आप
जाते जाते कुंडी भी बन्द कर के गया।
शौक से नहाने वालों के वो दुखी कर गया।
और अजीत धुन में कविता लिख गया।
-अजीत कुमार मिश्रा
10.6.08
नीरव जी को समर्पित
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1 comment:
भीतर से हूं पिलपिला ऊपर से दानेदार
परिचय है मेरा शशिभुद्दीन थानेदार
पढ़कर गजलें आपकी करता हूं बारंबार
लिख पाउंगा मैं भी कभी यूं गजलें लच्छेदार?
होनेवाला शीघ्र हूं मैं भी बच्चेदार
वरना शैली अपनी थी बड़ी ही गच्चेदार
प्रभु नमस्कार..नमस्कार तुमको हजार बार।
आपका मुल्जिम
शशिभुद्दीन थानेदार
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