उपरोक्त दो पोस्टों को लिखने वाले जगदीश त्रिपाठी जी ने मेरे दिल में बड़े गहरे अपनी जगह बना ली है। क्या कबीराना, फक्कड़पना, सूफियाना अंदाज है, बोलने-लिखने और जीने का। पढ़िए आप। किस तरह एक व्यक्ति खुद की धुलाई कर कर बिलकुल साफ निर्मल और सरल बन जाता है। वाकई, मुझे तो बहुत दिनों बाद भड़ास पर किसी असली भड़ासी संत के दर्शन हुए हैं।
जगदीश त्रिपाठी लिखते हैं---
वरुण भाई, मैं वाकई बहुत बदतमीज,बदजुबान हूं. मेरी वाणी में मिठास रहे इसलिए आपकी भौजाई कुछ साल पहले तक मुझे सुबह उठते ही दो चम्मच चीनी खिलाती थीं.एक दिन घर में चीनी खत्म हो गई तो उस दिन मैंने उनकी दो मीठी-मीठी चुम्मी से काम चला लिया. चुम्मी चीनी की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही कारगर साबित हुई तो तब से उसी को नियमित कर दिया.
है किसी में हिम्मत जो इतनी सहजता से इतनी बड़ी बड़ी बातें कह दे। फटे पाजामे टाइप के लोग पूरे दिन इस कोशिश में रहते हैं कि किस तरह लोग उन्हें अच्छा और भला कहें, इस चक्कर में वो ढोंग पर ढोंग, पाखंड पर पाखंड, झूठ पर झूठ बोलते कहते जीते जाते हैं और नतीजा होता है कि वे एक सड़े हुए आदमी की तरह भेड़चाल के हिस्से बन जाते हैं, न अच्छे बन पाते हैं, न बुरे हो पाते हैं, बस बीच में चकरघिन्नी की तरह घूमते घामते निपट जाते हैं।
जगदीश जी की कुछ लाइनें और पढ़िए
मैं २४ कैरेट का शुद्ध ब्राह्मण हूं. ब्राह्मण यानि कि भूसुर यानि की पृथ्वी लोक के देवता. शास्त्रों के अनुसार जो सुरा का सेवन करते हैं वे सुर होते हैं और जो सुरा का सेवन नहीं करते वे असुर होते हैं. २४ कैरेट के शुद्ध भूसुर होने के नाते देवसुलभ प्रवृत्ति अर्थात सुरा पान करना, अप्सराओं पर मोहित होना मेरे स्वाभाव में है. हां इतना जरूर है कि सुंदरियों से अभिसार मात्र मानिसक ही होता है.इसके दो कारण हैं. पहला मैं दुनिया के हर दुष्कर्म बेहिचक कर लेता हूं लेकिन किसी के भरोसे को चोट पहुंचाना मेरी फितरत में नहीं है. दूसरा कारण यह भी है कि कहीं इस बात का पता मेरी लैला को चल गया तो वह लैला अली बन जाएंगी और मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा.
अपनी नवीनतम पोस्ट में जगदीश जी लिखते हैं....
बंधु मैं, सुर हूं. भूसुर. असुर नहीं. जो सुरा का सेवन करते हैं वे सुर होते हैं. जो नहीं करते वे असुर होते हैं. आपने मुझे असुर कह कर मेरी तौहीन की है. यह घोर अपराध है. आपको इसका प्रायशिचत करना होगा. उत्कृष्ट कोटि का सुरापान कराना होगा अन्यथा...मैं रोने लगूंगा, श्राप दे नहीं सकता क्योंकि छोटे भाई हो.
.....देवसुलभ गुण मसलन सुरा सेवन, परस्त्री आसक्ति के साथ-साथ देवत्व के लिए अनिवार्य न्यूनतम धूर्तताएं एवं छल प्रपंच कर येन-केन-प्रकारेण जीत हासिल करने जैसी योग्यताएं होना आवश्यक हैं. बंधुओं मेरे भीतर ये सारे गुण प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं. इसलिए मैं भला आदमी होने का दावा नहीं करता लेकिन २४ कैरेट का ब्राह्रमण होने का दावा जरूर करता हूं,क्योंकि मैं हूं. आपको बता दूं कि २४ कैरेट का ब्राह्णण होने के लिए मदिरा पान ही नहीं, मुर्ग भक्षण भी आवश्यक है.क्यों ? अगले अपलेख में बताऊंगा.....
जगदीश जी, मैं तो आपके लिखे का फैन हो गया। अपने हरे भइया, पंडित सुरेश नीरव जी, डाक्टर साहब समेत समस्त सुर असुर भड़ासी जनों से निवेदन करता हूं कि चरम भड़ासी जगदीश जी के भड़ासलोक पर प्रकट होकर समस्त जन गण के मन को तृप्त करने के इस मौके पर उनका हार्दिक अभिनंदन किया जाए, वंदन किया जाए और उनके सम्मान में कुछ शब्द बोले-गढ़े-पेले जाएं।
जय भड़ास
यशवंत
1 comment:
दादा,जगदीश जी से एक निवेदन है कि मैं तो न उनकी तरह ब्राह्मण हूं न ही बन सकता हूं आप जानते हैं न कि साफ़्टवेयर की समस्या है लेकिन अगर आप चाहते हैं कि कुछ मीठा बोला जाए तो जगदीश जी को सुरा और मुर्ग से अलग कुछ मुझ गरीब,उनकी मिठास पर ललाए-ललचाए को कुछ मीठा पदार्थ दान करना होगा.....
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