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23.6.08

ब्लागर बालक के सवाल, गुरुवर अनिल यादव के जवाब

ब्लाग विवेचन कौमुदी
- अनिल यादव -
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अयं कः?
-अयं ब्लागरः

ब्लागरं किं करोति?
-कटपट-पश्यति-खटपट- पश्यति, क्लिकति पुनपुनः मूषकम्।

ब्लागर कौन होता है?
-जिसके पास कम्प्यूटर होता है।

कंपूटर किसके पास होता है?
-जो साक्षर होता है।

क्या कंपूटर होने से कोई प्राणी ब्लागर होता है?
-नहीं, सिर्फ मनुष्य अब तक ब्लागर होता पाया गया है और इंटरनेट कनेख्शन भी अपरिहार्य है।

इंटरनेट किसके पास होता है?
-जो शुल्क देता है।

यह शुल्क लेता कौन है, क्या वणिक?
-चुप वे देवता हैं जो ज्ञान, सूचना और अभिव्यक्ति और मनोरंजन के समुद्र में तैरने के लिए कास्ट्यूम और उसके खारे जल की हानियों से जिज्ञासुओं की त्वचा को बचाने के लिए आसुत जल और तदुपरांत लोशन देते हैं। साधु, साधु।

किंतु कंपूटर किसके पास होता है?
-जिसके पास उसे रखने के लिए एक मेज हो।

मेज किसके पास होती है?
-जिसके पास उसके समक्ष रखने के लिए एक कुर्सी हो।

कुर्सी किसके पास होती है?
-हां यह भी एक तरह की खामोश, अनुल्लेखनीय सत्ता है, अधिक काल तक उस पर वही बैठ पाता है जो नितंब-दाह से बचने के लिए उस पर कुशन रखता है।

कुशन किसके पास होते हैं?
-जिसके पास अन्य कुशन होते हैं अर्थात वे समूह में रहते हैं।

अन्य उपादान?
-नेत्र हानि से बचने के लिए चश्मा, पानी के लिए जलछुक्कक, काफी का मग जिसमें काफी, चाय या बियरादि वैकल्पिक द्रव हों.

ये सब क्या अंतरिक्ष में अवस्थित होते हैं?
-मनुष्य जिस गुरूत्वाकर्षण का दास है उसी से आबद्ध होने के कारण कदापि नहीं, ये किसी नगर या उपनगर के किसी पुर के भवन में या भवन के एक कमरे में स्थित होते हैं।

भवन या कमरा किसका होता है?
जो उसका स्वामी होता है या किराया अदा करता है।

किराया का पण्य क्या होता है?
-मुद्रा- लीरा, डालर या रूबल देश, काल, परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय किंतु अपने मूल स्वरूप में अविचल एवं अपने समान पण्य की सभी वस्तुओं यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि को क्रय कर सकने में सक्षम. साधु साधु।

ब्लागर का संपूर्ण अपरिहार्य एवं तात्कालिक परिवेश कितने मूल्य का होता है?
-अगर वह अविवाहित, समूह में रहते हुए लैमारी का अभ्यासी या कार्यालय के संसाधनों का प्रयोग करने में निपुण नहीं है तो भारतीय मुद्रा में न्यूनतम बीस हजार रूपए।

इतनी भारतीय मुद्रा कहां से आती है?
-चाकरी, व्यापार किवां उत्कोच या चोरी करने से अन्य स्रोत भी हैं जिनका तुम्हारी हरी धनिया सी ताजी और खुशबूदार चेतना पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। साधु-साधु।

उत्पादन की प्रक्रिया का चिंतन से गूढ़ संबंध है अस्तु बीस हजार या अधिक भारतीय मुद्रा अर्जित करने की प्रक्रिया ब्लागर रूपी जातक की चेतना पर प्रभाव डालती है और उसके विचारों को कैसे रूपांतरित करती है?
-उसके मष्तिष्क का प्रतिबद्धता भाग लुप्त हो जाता है, विवेक भाग उत्तरोत्तर क्षीण होता है, अपने वर्तमान स्तर की सुरक्षा व प्रगति हेतु चेष्टा करने वाला भाग ग्रीष्म के वायु की भांति प्रलयंकर हो जाता है। तो क्या निर्धन, विकलांग, स्त्रियां, बालक या पण्यविहीन वनों में रहने वाले संन्यासी ब्लागिंग नहीं कर सकते यदि करें तो उनके विचार कैसे होंगे? किसी प्रकार की विकलांगता, लिंग या वय से इसका संबंध नहीं है इसका संबंध संसाधन एवं तकनीक के ज्ञान से है जिसके संसाधन गुड़ है जिसके पीछे ज्ञान कुत्ते की तरह विचरण करता है। साधु साधु।

ब्लागिंग का उपयुक्त काल क्या है और इसे कैसे करना चाहिए?
-प्रातः प्रातराश से पूर्व या रात्रि को कोलाहल प्रिय परिजनों के शयन के पश्चात, यदि सिद्ध हो जाए तो कभी भी किया जा सकता है।

इसका हेतु क्या है और यह क्यों आवश्यक है?
-इसका अविष्कार ग्राम सभ्यता, संयुक्त परिवारों एवं कृषि आधारित व्यवस्था के उच्छेद काल के परवर्ती भ्रष्टाचार के कच्चे माल से चलने वाले उद्योगों से प्रकीर्ण महानगरों में मनुष्य के अकेले पड़ जाने के पश्चात असुरक्षा की भावना के शमन के लिए हुआ। भली प्रकार से सुसज्जित एवं अन्य सुखकर उपादानों से आच्छादित किंतु बंद प्रकोष्ठों में बैठे मनुष्य समूह से पृथक श्रृंगालों की भांति हुंआ-हुंआ करते हैं अन्य उनकी ही ध्वनि को प्रतिध्वनित करते हैं तब उन्हें एक बार फिर समूह में होने का आभास होता है। इसी प्रक्रिया में एक अन्य रसायन का भी स्राव होता है जिससे लगता है कि श्वान काष्ट की विशाल गाड़ी की छाया में सुखपूर्वक चलने की बजाय उसे संपूर्ण बल से खींच रहा है। तदनंतर इस कल्पित पुरूषार्थ से श्वास फूलने लगता है और वत्स तुमसे यह गुप्त भेद कहता हूं कि उसकी अनुभूति संतति प्राप्ति हेतु किए गए मैथुन से श्लथ आत्मा को मिलने वाले उल्लास मिश्रित आनंद से भिन्न नहीं होती।

इन श्रृंगालों का स्वामी कौन है?
-वे आभासी विश्व में रहने के अभ्यस्त हो चले हैं अतः उनमें से अधिकांश स्वयं को स्वामी कहते है, कुछ के स्वामी आभासी विष्णु हैं जो क्षीरसागर में बीस हजार किमी से अधिक लंबे इंटरनेट केबिल रूपी शेषनाग पर लेटे लक्ष्मी से पैर दबवाते रहते हैं।

क्या विष्णु ब्लागिंग करते हैं?
-नहीं करते तो अब करेंगे लेकिन अब तुम जाओ सुत रहो। अगले सत्र में अपने मातृकुल से अनुमति से लेकर आना।

-anil yadav मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें

(अनिल यादव के ब्लाग हारमोनियम से साभार)

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

प्रभु जी कमाल के सुर ताने पड़े हो अपने बाजे पर मन मोह लिया..... पेले रहिये

PD said...

नहीं जी.. जिनके पास भवन ना भी हो, वे बस फुटपाथ पर ही सोते हों मगर जहां काम करते हों वहां एक अदद कंप्यूटर हो, वो भी ब्लौगर हो सकते हैं.. :)