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7.1.09

यहां मिलते हैं विग्यान और आध्यात्म

विनय बिहारी सिंह

यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया के फिजिक्स के प्रोफेसर मणि घोष ने एक पुस्तक लिखी है- कास्मिक डिटेक्टिव। उन्होंने कुछ पाश्चात्य वैग्यानिकों के साथ लेजर टेक्नालाजी में महत्वपूर्ण अविष्कार किए हैं। इसी वजह से आज चिकित्सा जगत में लेजर आपरेशन हो पा रहे हैं। इस पुस्तक के लिखने के पीछे अपनी सोच जाहिर करते हुए उन्होंने कहा है- मनुष्य अपनी चेतना ब्रह्मांडीय चेतना से से प्राप्त करता है। उन्होंने कहा है- बहुत से लोग कहते हैं कि ईश्वर उनके लिए अपरिचित है। लेकिन ईश्वर के बिना हमारा परिचय पूरा नहीं हो पाता। यहां विग्यान (तकनीकी कारणों से ग्य ऐसे ही लिखना पड़ रहा है।) और आध्यात्म एक में मिल जाते हैं। ऋषियों ने कहा है कि न तो हम शरीर हैं और न मन या बुद्धि। हम तो विशुद्ध चेतना हैं। ब्रह्मांडीय चेतना। जो पांच तत्व- अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश ब्रह्मांड में हैं, वही हमारे भीतर भी हैं। लेकिन हम ये पांच तत्व भी नहीं हैं। जब हम गहरे ध्यान में जाते हैं तो इन पांच तत्वों के भी पार चले जाते हैं जहां शुद्ध चैतन्य है। जब तक हम कुछ न कुछ सोचते रहते हैं, तब तक आंखें बंद रहने पर भी ठीक से ध्यान नहीं हो पाता। खुली आंखों से जो सोचते हैं, वही आंखें बंद करके सोचने लगते हैं। ऋषियों ने कहा है कि हमें सोचना बंद कर सिर्फ ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस तरह हम अपने भीतर जाएंगे और आत्मा से साक्षात्कार करेंगे। वैग्यानिक मणि घोष ने जो विचार व्यक्त किए हैं, वह हजारों साल पहले हमारे ऋषि- मुनियों ने कहा है और अगर कोई वैग्यानिक इस तथ्य को रेखांकित करता है तो इस बात की पुष्टि होती है कि हम यह गलती करते हैं कि सिर्फ अपने शारीरिक सुखों के बारे में सोचते हैं। हमें ईश्वर के बारे में भी सोचना चाहिए। इसीलिए शायद पातंजलि ने कहा है- योगश्चित्तवृत्ति निरोधः। यानी चित्त की वृत्तियों को रोक देना ही योग है।

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