आज से दस-एक साल पहले की ही बात है मैं तब से ही इस बात को जानता हूँ कि असल में हमारा नववर्ष कौन-साहै ? 1 जनवरी से प्रारंभ होने वाला या चैत्र शुल्क प्रतिपदा से। जब मैं अपने दोस्तों से इस बारे में बात करता था औरकरता हूँ तो उन्हें सिर्फ यही पता होता है कि नववर्ष को 1 जनवरी को ही आता है। मुझे बहुत दुख होता है कैस हमविदेशी त्यौहारों के चक्कर में फंस कर अपने त्यौहारों को भूलते जा रहे हैं ? अच्छा जब मैं उनसे पूछता हूँ कि 1 जनवरी से नववर्ष मनाने का क्या वैज्ञानिक कारण है ? इस दिन ऐसा क्या हुआ जो कि इसे नववर्ष की शुरूआत केरूप में मनाया जाता है। सभी अपनी बगलें झांकते नजर आते हैं। हाँ , एक जबाब जरूर होता है इस दिन ईस्वीकैलेण्डर बदलता है और कोई औचित्य व कारण उनके पास नहीं होता।
पहले उस कैलेण्डर की विसंगतियों पर चर्चा करते है जिसके हम गुलाम है। मानसिक गुलाम -
1952 में ‘‘सांइन्स एण्ड कल्चर’’ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट कहती है -
ईसवी सन् का मौलिक सम्बन्ध ईसाई पन्थ से नहीं है। यही तो यूरोप के अर्ध सभ्य कबीलों में ईसा मसीह के बहुतपहले से ही चल रहा था।
इसके एक वर्ष में 10 महीने (304 दिन) होते थे। बाद में राजा पिम्मालियस ने दो माह (जनवरी, फरवरी) जोड़ दिएतब से वर्ष 12 माह (355 दिन) का हो गया। यह ग्रह की गति से मेल नही खाता था। तो जूलियर सीजर ने इसे 365 दिन 5 घंटे 52 मिनट 45 सेकण्ड का करने का आदेश दिया। 3 वर्ष तक 365 दिन चोथे वर्ष फरवरी में 29वीं तारीखबढ़ाकर 366 दिन कर लिए जाते हैं।
अब इसमें पंगा ही पंगा है। क्या 5 घंटे 52 मिनट 45 सेकण्ड को 4 से गुणा करने पर 24 घंटे का पूरा दिन बनपाएगा ? नहीं इसमें की उनकी की गणना से सवा सात मिनट का अन्तर रह जाएगा। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई फंस गए थे 29 फरवरी के फेर में उनका जन्मदिन 29 फरवरी को पड़ता था। ईसवी कैलेण्डर कीगड़बड़ से देसाई जी 60 जन्मदिन नहीं मना पाए।
ठीक इसी तरह हिजरी सन् 356 दिन का होता है। सौर गणना से प्रायः 10 दिन कम। मौलाना साहब हिन्दू पंचांगको देखे बिना बतलाने में असमर्थ रहते हैं कि मौसमे बहार और मौसमें खिजां उनके किस महीने में पड़ेगी। जबकिहिन्दुस्तानी कैलेण्डर में तय है कि किस माह मे कौन सी ऋतु आएगी।
भारतीय काल गणना
एक अंग्रेज अधिकारी ने पं. मदनमोहर मालवीय से पूछा कि ‘‘कुम्भ में इतना बड़ा जन सैलाब बगैर किसी निमंत्रणकार्ड के कैसे आ जाता है ? तब पंडित जी ने उत्तर दिया - छः आने के पंचांग से।
अपने देश के गांवों में, शहरों में, वनो में, पहाड़ों पर या भारत के बाहर सैंकड़ो मील दूर विदेशों में हिन्दू कहीं भी रहेवह पंचांग जानता है तो अपने में त्यौहार, उत्सव, कुम्भ, विभिन्न देव स्थानों पर लगने वाले मेले की तिथिंया बगैरआंमत्रण, सूचना के उसे मालूम होती हैं यही नहीं सौ वर्ष बाद किस दिन कहां कुम्भ होगा, दीपावली कब होगी यहभी ज्योतिषी किसी भी समय बता सकता है।
पहले उस कैलेण्डर की विसंगतियों पर चर्चा करते है जिसके हम गुलाम है। मानसिक गुलाम -
1952 में ‘‘सांइन्स एण्ड कल्चर’’ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट कहती है -
ईसवी सन् का मौलिक सम्बन्ध ईसाई पन्थ से नहीं है। यही तो यूरोप के अर्ध सभ्य कबीलों में ईसा मसीह के बहुतपहले से ही चल रहा था।
इसके एक वर्ष में 10 महीने (304 दिन) होते थे। बाद में राजा पिम्मालियस ने दो माह (जनवरी, फरवरी) जोड़ दिएतब से वर्ष 12 माह (355 दिन) का हो गया। यह ग्रह की गति से मेल नही खाता था। तो जूलियर सीजर ने इसे 365 दिन 5 घंटे 52 मिनट 45 सेकण्ड का करने का आदेश दिया। 3 वर्ष तक 365 दिन चोथे वर्ष फरवरी में 29वीं तारीखबढ़ाकर 366 दिन कर लिए जाते हैं।
अब इसमें पंगा ही पंगा है। क्या 5 घंटे 52 मिनट 45 सेकण्ड को 4 से गुणा करने पर 24 घंटे का पूरा दिन बनपाएगा ? नहीं इसमें की उनकी की गणना से सवा सात मिनट का अन्तर रह जाएगा। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरार जी देसाई फंस गए थे 29 फरवरी के फेर में उनका जन्मदिन 29 फरवरी को पड़ता था। ईसवी कैलेण्डर कीगड़बड़ से देसाई जी 60 जन्मदिन नहीं मना पाए।
ठीक इसी तरह हिजरी सन् 356 दिन का होता है। सौर गणना से प्रायः 10 दिन कम। मौलाना साहब हिन्दू पंचांगको देखे बिना बतलाने में असमर्थ रहते हैं कि मौसमे बहार और मौसमें खिजां उनके किस महीने में पड़ेगी। जबकिहिन्दुस्तानी कैलेण्डर में तय है कि किस माह मे कौन सी ऋतु आएगी।
भारतीय काल गणना
एक अंग्रेज अधिकारी ने पं. मदनमोहर मालवीय से पूछा कि ‘‘कुम्भ में इतना बड़ा जन सैलाब बगैर किसी निमंत्रणकार्ड के कैसे आ जाता है ? तब पंडित जी ने उत्तर दिया - छः आने के पंचांग से।
अपने देश के गांवों में, शहरों में, वनो में, पहाड़ों पर या भारत के बाहर सैंकड़ो मील दूर विदेशों में हिन्दू कहीं भी रहेवह पंचांग जानता है तो अपने में त्यौहार, उत्सव, कुम्भ, विभिन्न देव स्थानों पर लगने वाले मेले की तिथिंया बगैरआंमत्रण, सूचना के उसे मालूम होती हैं यही नहीं सौ वर्ष बाद किस दिन कहां कुम्भ होगा, दीपावली कब होगी यहभी ज्योतिषी किसी भी समय बता सकता है।
बहुत महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक बात है। एक समय था जब कालगणना का केन्द्र बिन्दु उज्जैन था। जिस प्रकार आज ग्रीनविच को केन्द्र मानकर गणना की जाती है, उस प्रकार उज्जैन कालगणना का मध्य बिन्दु था। क्योंकि पृथ्वी व सूर्य की अवस्थिति के अनुसार संसार का केन्द्र उज्जैन ही है। इस कारण उज्जैन का महाकाल की नगरी माना गया था।
भारतीय नववर्ष से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पक्ष -
* चैत्र शुल्क प्रतिपदा के दिन ही बासंतिक नवरात्र का आरंभ होता है।
* सृष्टि की रचना भी ब्रह्मा ने इसी दिन की थी।
* त्रेतायुग में प्रभु श्री राम का राज्यभिषेक इसी दिन हुआ।
* महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर का नया संवत्
प्रारम्भ हुआ।
* महान सम्राट विक्रमदित्य ने इसी दिन विक्रम संवत् आरम्भ किया।
* संत झूलेलाल का जन्मदिन।
* गुरू अंगददेव जी का जन्मदिवस।
* महार्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज की स्थापना प्रतिपदा को ही की थी।
* इस दिन वसन्त का वैभव - नव किसलयों का प्रस्फुटन, नव चैतन्य, नवोत्थान, नवजीवन का प्रारंभ
कर मधुमास के रूप में प्रकृति का नया श्रृंगार करती है।
चुभने वाली बात -
हमारे वे साथी जो अपने आप को प्रगतिशील कहते हैं उन त्यौहारों का मनाने की अपील जोर-शोर
से करते हैं जिनका एक तो हमारी संस्कृति से कुछ लेना देना नहीं हैं। जबकि उन त्यौहारों का बड़े
भौड़े तरीके से मनाया जाता है। 31 दिसम्बर की रात को जिस तरह के नाटक समाज समाज हो
होते हैं सब जानते है। सिर्फ उस दिन नववर्ष मनाने के नाम पर हुडदंग होता है।
जरागौर करना एक ओर वह नववर्ष है। जिसे शराब पीकर आधी रात को सड़कों पर निकल कर
हमारे युवा मनाते है दूसरी ओर हमारा अपना नववर्ष जिसे बड़ी शालीनता के साथ सूर्य की रश्मियों
के स्वागत के साथ मनाया जाता है।
हमारा दुर्भाग्य -
हमारा दुर्भाग्य ही है कि आज भी हम अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से चल रहे हैं।
स्वतन्त्र भारत की सरकार ने राष्ट्रीय पंचाग निश्चिित करने के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाॅ. मेघनाथ
साह की अध्यक्षता में ‘कैलेण्डर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया था। इस कमेटी ने विक्रम संवत को
राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफारिश की थी।
लेकिन दुर्भाग्यवश................ जैसा हमेशा होता आया है ............. अंग्रेजी मानसिकता के नेतृत्व को यह
पसन्द नहीं आया।
अब समय है जागने का अपने आप को पहचानने का। समाज में जो करवट बदल रहा है।
उसे महशूस किया जा रहा है। उसी का परिणाम है। दस साल पहले भारतीय नववर्ष का इतनी
धूमधाम के साथ नहीं मनाया जाता था पर अब अंतर आया है। लोग फिर से अपना नववर्ष पहचाने
लगे हैं। अक्सर 1 जनवरी का मैंने कई लोगों का यह कहते सुना है - क्षमा करे यह हमारा नववर्ष
नहीं है। हमारा नववर्ष तो चैत्र शुल्क प्रतिपदा को आता है।
सभी मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।भारतीय नववर्ष से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पक्ष -
* चैत्र शुल्क प्रतिपदा के दिन ही बासंतिक नवरात्र का आरंभ होता है।
* सृष्टि की रचना भी ब्रह्मा ने इसी दिन की थी।
* त्रेतायुग में प्रभु श्री राम का राज्यभिषेक इसी दिन हुआ।
* महाभारत के धर्मयुद्ध में धर्म की विजय हुई और राजसूय यज्ञ के साथ युधिष्ठिर का नया संवत्
प्रारम्भ हुआ।
* महान सम्राट विक्रमदित्य ने इसी दिन विक्रम संवत् आरम्भ किया।
* संत झूलेलाल का जन्मदिन।
* गुरू अंगददेव जी का जन्मदिवस।
* महार्षि दयानंद सरस्वती आर्य समाज की स्थापना प्रतिपदा को ही की थी।
* इस दिन वसन्त का वैभव - नव किसलयों का प्रस्फुटन, नव चैतन्य, नवोत्थान, नवजीवन का प्रारंभ
कर मधुमास के रूप में प्रकृति का नया श्रृंगार करती है।
चुभने वाली बात -
हमारे वे साथी जो अपने आप को प्रगतिशील कहते हैं उन त्यौहारों का मनाने की अपील जोर-शोर
से करते हैं जिनका एक तो हमारी संस्कृति से कुछ लेना देना नहीं हैं। जबकि उन त्यौहारों का बड़े
भौड़े तरीके से मनाया जाता है। 31 दिसम्बर की रात को जिस तरह के नाटक समाज समाज हो
होते हैं सब जानते है। सिर्फ उस दिन नववर्ष मनाने के नाम पर हुडदंग होता है।
जरागौर करना एक ओर वह नववर्ष है। जिसे शराब पीकर आधी रात को सड़कों पर निकल कर
हमारे युवा मनाते है दूसरी ओर हमारा अपना नववर्ष जिसे बड़ी शालीनता के साथ सूर्य की रश्मियों
के स्वागत के साथ मनाया जाता है।
हमारा दुर्भाग्य -
हमारा दुर्भाग्य ही है कि आज भी हम अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से चल रहे हैं।
स्वतन्त्र भारत की सरकार ने राष्ट्रीय पंचाग निश्चिित करने के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाॅ. मेघनाथ
साह की अध्यक्षता में ‘कैलेण्डर रिफार्म कमेटी’ का गठन किया था। इस कमेटी ने विक्रम संवत को
राष्ट्रीय संवत बनाने की सिफारिश की थी।
लेकिन दुर्भाग्यवश................ जैसा हमेशा होता आया है ............. अंग्रेजी मानसिकता के नेतृत्व को यह
पसन्द नहीं आया।
अब समय है जागने का अपने आप को पहचानने का। समाज में जो करवट बदल रहा है।
उसे महशूस किया जा रहा है। उसी का परिणाम है। दस साल पहले भारतीय नववर्ष का इतनी
धूमधाम के साथ नहीं मनाया जाता था पर अब अंतर आया है। लोग फिर से अपना नववर्ष पहचाने
लगे हैं। अक्सर 1 जनवरी का मैंने कई लोगों का यह कहते सुना है - क्षमा करे यह हमारा नववर्ष
नहीं है। हमारा नववर्ष तो चैत्र शुल्क प्रतिपदा को आता है।
2 comments:
आपको भी नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, ईश्वर करें विक्रम संवत 2066 आपके जीवन नई उमंगें और प्रगति ने नए प्रतिमान लेकर आए,,,एक बार फिर नए वर्ष की शुभकामनाएं,,,,,
आपको भी शुभकामना . अच्छा लेख -अच्छी जानकारी .
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