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17.5.09

2009 की दो शामें भुलाए न भूलेंगी

15 मई तक आए एग्जिट पोल से परेशान बडी पार्टी के नेताओं ने छोटे दलों के नेताओं को पटाने के लिए दूर-दूर तक जाल बिखेरा। एनडीए ने माया से लेकर जयललिता तक से बात कर ली तो वहीं दूसरी ओर यूपीए ने लालू मुलायम और पासवान जैसे लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। इस जद्दोजहद में एक शाम गुजर गई और वह दूसरी सुबह आ गई जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। पर यह सुबह कुछ ऐसी घटी जिसमें यूपीए सबको भूल गया तो छोटी पार्टियों की जमानत जब्‍त हो गई। तीसरा मोर्चा चौथा मोर्चा और पांचवें मोर्चे जैसे कुकुरमुत्‍ते की तरह उगे इन मोर्चों की मिट्टी पलीत हो गई। एनडीए के पीएम इन वेटिंग आडवाणी का दिल इस कदर टूटा की उन्‍होंने राजनीति से संन्‍यास लेने का ही मन बना लिया। पर इस चुनाव में सबसे दिलचस्‍प कहानी बिहार में घटी। लालू यादव जो कि पूरी दुनिया में अपने हिलेरियस अदा के लिए जाने जाते हैं। को बिहार ने ऐसे नकारा कि महोदय अपनी भी एक सीट से हार गए। उनकी पार्टी के पास सिर्फ दो सीटें बचीं। अब कांग्रेस उनको पिफर से रेल मंत्री बनाएगी या नहीं यह कांग्रेस की दया पर निर्भर करता है। क्‍योंकि अब तो लालू के हाथ में कुछ नहीं रहा। लालू यादव ने रामविलास पासवान के साथ कुछ इस कहावत को चरितार्थ किया, हम तो डूबेंगे ही सनम तुम्‍हें भी ले डूबेंगे। पिछले साल पासवान के पास चार सांसदों की फौज थी पर इस बार तो पासवान जी ही संसद से आउट हो गए हैं उनकी पार्टी के पास सिर्फ अब पार्टी का नाम बचा है कोई सीट नहीं। महोदय अपनी भी सीट नहीं बचा सके। ये भी दो गुजरीं शामें जिनका जिक्र हमेशा इतिहास में किया जाएगा कि किस कदर जनता ने बामपंथियों के मुंह पर तमाचा मारकर एक पार्टी को जनाधार दे दिया। इस चुनाव की सबसे बडी खासियत बाहुबलियों का हारना रहा। डीपी यादव और अंसारी जैसे लोगों के मुंह पर जनता ने ऐसा तमाचा जडा है जिसकी चोट इन्‍हें कई जन्‍म तक नहीं भूलेगी। ये था जनता का फैसला जिसने कई बडबोलों के मुंह पर ताला लगा दिया है। अब तो मुझे लगता है कि लालू यादव जी किसी हास्‍य धारावाहिक में बैठकर चुटकुलों को जज करेंगे और पैसे कमाएंगे जैसा कि शेखर सुमन और सिद्धू अब तक करते आए हैं। पर बुरा ही क्‍या है राजनीति में अगर जनता ने इनके साथ ही यही व्‍यवहार जारी रखा है तो कुछ न कुछ तो करना ही पडेगा ना।

4 comments:

kumar Dheeraj said...

हमारे कहने के लिए आपने कुछ छोड़ा ही नही है क्या लिखू । लेकिन एक बात कहना चाहूगा कि इस बार जनता ने मजा चखा दिया है

RAJNISH PARIHAR said...

EK NAI SHURUAAT HO SAKTI HAI YE...

Unknown said...

ha ha ha ha
hi hi hi hi

अमित द्विवेदी said...

भाइयों अब क्‍या कहा जाए यही हमारे देश की राजनीति है। पर पहली बार ऐसा लगा है कि जनता ने फैसला सोच समझकर एक पढे लिखे मतदाता की तरह किया है। पर देखना दिलचस्‍प होगा कि कांग्रेस लोगों के भरोसे पर कब तक खरा उतरने में कामयाब रहती है मैं तो यहीं कहूंगा कि राहुल गांधी को आगे बढकर युवा हित में कुछ अच्‍छे फैसले लेने चाहिए।